हरियाणा कांग्रेस लीगल डिपार्टमेंट ने BNS, BNSS व BSA की खामियों को लेकर उठाई पुनः समीक्षा की मांग

हिसार, 29 मई। केंद्र सरकार द्वारा बिना पर्याप्त संसदीय बहस और लोकतांत्रिक विमर्श के लागू किए गए भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita – BNSS) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Bharatiya Sakshya Adhiniyam – BSA) को लेकर देशभर में असंतोष व्याप्त है। इन्हीं कानूनों को लेकर हरियाणा कांग्रेस लीगल डिपार्टमेंट ने बुधवार को हिसार कोर्ट कॉम्प्लेक्स में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की, जिसमें तीनों अधिनियमों की खामियों पर गंभीर मंथन किया गया।

बैठक की अध्यक्षता प्रदेश लीगल डिपार्टमेंट के अध्यक्ष एडवोकेट लाल बहादुर खोवाल ने की। उन्होंने कहा कि ये कानून न्याय व्यवस्था को पारदर्शी और सुलभ बनाने की बजाय उसे और अधिक जटिल, पुलिस-केंद्रित और आमजन के लिए दमनकारी बना रहे हैं। सबसे गंभीर चिंता यह है कि इतने बड़े बदलाव बिना किसी लोकतांत्रिक चर्चा या बहस के, संसद में जल्दबाज़ी में पारित कर दिए गए।

एडवोकेट खोवाल ने कहा, “तीनों कानूनों का मसौदा किसने तैयार किया, इसकी जानकारी तक सार्वजनिक नहीं की गई। न तो बार काउंसिल, न न्यायपालिका और न ही आम जनता से परामर्श किया गया। यह प्रक्रिया लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है।”

उन्होंने बताया कि इन कानूनों में प्रयुक्त भाषा और शब्दावली अत्यंत जटिल है, जिससे कानून की व्याख्या करना कठिन हो गया है। पुलिस को अत्यधिक अधिकार सौंपे गए हैं, जिससे आम नागरिक के मौलिक अधिकारों पर खतरा मंडरा रहा है।

धारा 23 (सामुदायिक सेवा) का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इसे दिखावटी रूप से प्रचारित किया गया, लेकिन आज तक इस धारा के तहत स्पष्ट दिशा-निर्देश तक जारी नहीं किए गए हैं। वहीं धारा 377 जैसे जघन्य अपराधों से संबंधित प्रावधान को नए कानून में समाप्त कर दिया गया है, जिससे अप्राकृतिक यौन हिंसा के पीड़ितों को न्याय मिलना मुश्किल हो जाएगा।

उन्होंने कहा कि — “न्याय प्रणाली में ऐसे शब्दों का उपयोग किया गया है जिनके बहुवचनार्थ निकलते हैं। स्पष्टता के अभाव में न केवल आमजन, बल्कि वकील और पुलिस प्रशासन तक असमंजस में हैं। नये कानूनों की न तो प्रभावी व्याख्या की गई है, न ही क्रियान्वयन हेतु पुलिस को उचित प्रशिक्षण मिला है।”

बैठक में उपस्थित अन्य अधिवक्ताओं ने भी तीनों कानूनों की गहराई से समीक्षा की और कहा कि इनका क्रियान्वयन गंभीर दुष्परिणाम लेकर आ सकता है यदि इन्हें तुरंत पुनर्विचार के लिए वापस नहीं लिया गया।

इस मौके पर रतन पान्नू (जिला अध्यक्ष लीगल डिपार्टमेंट), प्रदेश सचिव श्वेता शर्मा, विकास पूनिया, पवन तुंदवाल, बजरंग ईंदल, सत्यवान जांगड़ा, आशा बहलान, गौरव टुटेजा, सीआर वर्मा, हिमांशु आर्य खोवाल, एडवोकेट शबनम, एडवोकेट मीना तिजारिया सहित दर्जनों वरिष्ठ अधिवक्ता उपस्थित रहे।

एडवोकेट खोवाल ने केंद्र सरकार से मांग की कि

  1. तीनों कानूनों को वापस लेकर संसद में पुनः खुली बहस कराई जाए।
  2. कानून विशेषज्ञों, न्यायिक संस्थानों और अधिवक्ताओं से राय लेकर आवश्यक संशोधन किए जाएं।
  3. नए कानूनों के तहत पुलिस, अभियोजन व न्यायालय कर्मियों को प्रशिक्षित किया जाए।

अंत में उन्होंने कहा कि अगर समय रहते इन खामियों को नहीं सुधारा गया तो न्याय के नाम पर अन्याय का एक नया अध्याय शुरू हो जाएगा, जिसकी कीमत देश की जनता को चुकानी पड़ेगी।

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