धार्मिक चेतना और वैज्ञानिक सोच के समन्वय को पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता

✍️ सुरेश गोयल ‘धूप वाला’

भारतीय सनातन संस्कृति को विश्व की सबसे प्राचीन, वैज्ञानिक और जीवनोपयोगी संस्कृति के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक समग्र जीवन दर्शन है, जो मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आत्मिक विकास को समर्पित है।

जीवन को दिशा देने वाला दर्शन

हजारों वर्षों पूर्व हमारे ऋषि-मुनियों ने कठोर तप, चिंतन और अनुसंधान के आधार पर जीवन के लिए जिन नियमों की रचना की, वे आज भी प्रासंगिक और वैज्ञानिक दृष्टि से प्रमाणित हैं।
चार आश्रम — ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास — तथा १६ संस्कारों की परिकल्पना जीवन को चरणबद्ध और अनुशासित बनाती है। यह व्यवस्था न केवल व्यक्ति के, बल्कि समाज के चरित्र को भी सुदृढ़ करती है।

योग, आयुर्वेद और वैज्ञानिक परंपराएं

सनातन संस्कृति ने दुनिया को योग, प्राणायाम और आयुर्वेद जैसी वैज्ञानिक पद्धतियाँ दीं, जो आज ग्लोबल वेलनेस मूवमेंट का आधार बन चुकी हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने भी यह स्वीकार किया है कि ये प्राचीन विधियाँ तनाव, अवसाद और असाध्य रोगों में प्रभावी हैं।

धर्म का वास्तविक अर्थ

सनातन धर्म का अर्थ किसी विशेष पंथ से नहीं है, बल्कि यह एक कर्तव्यनिष्ठ जीवनशैली है। धर्म, वह व्यवस्था है जो मनुष्य को कर्तव्यपरायण, समाजोपयोगी और राष्ट्रभक्त बनाती है। सनातन दर्शन सिखाता है कि धर्म, प्रेम, करुणा और समभाव में है — न कि बाहरी आडंबर में।

अंधविश्वास और पाखंड की बढ़ती विकृति

दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि आज कुछ स्वार्थी तथाकथित धर्मगुरु और पाखंडी बाबा, सनातन के नाम पर अंधविश्वास, तंत्र-मंत्र और झाड़-फूंक को बढ़ावा दे रहे हैं। गंडा-ताबीज, टोना-टोटका और चमत्कार के नाम पर समाज को गुमराह किया जा रहा है।
चौंकाने वाली बात यह है कि पढ़े-लिखे और आधुनिक सोच वाले लोग भी इनके जाल में फंसते जा रहे हैं।

हाल ही में एक प्रमुख राष्ट्रीय समाचार चैनल द्वारा इस विषय पर चलाए गए विशेष कार्यक्रम में यह उजागर हुआ कि धर्म और आस्था की आड़ में किस प्रकार ठगी और अंधविश्वास का कारोबार फल-फूल रहा है।

समाज और शासन की जिम्मेदारी

इस सामाजिक विकृति से मुक्ति के लिए यह आवश्यक है कि केंद्र और राज्य सरकारें ऐसे पाखंडियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करें। इसके साथ ही धार्मिक और सामाजिक संगठनों को जनजागरूकता फैलानी चाहिए।
सच्चे संत, मनीषी और सनातन संस्कृति के प्रचारक यदि आगे आकर धर्म के वास्तविक स्वरूप को जन-जन तक पहुँचाएं, तो इस संस्कृति की गरिमा और विज्ञानसिद्ध आधार को पुनः स्थापित किया जा सकता है।

सनातन को पाखंडियों की गिरफ्त से मुक्त कराना समय की पुकार

भारतीय सनातन संस्कृति एक नैतिक, वैज्ञानिक और समग्र जीवनदर्शन है। इसे आडंबर, अंधविश्वास और अज्ञानता से मुक्त कर विवेक और विज्ञान आधारित सनातन धर्म की पुनः प्रतिष्ठा करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

यदि हम अब भी नहीं जागे, तो आस्था के नाम पर फैल रहा अंधविश्वास समाज को कुंठा, भ्रम और पिछड़ेपन की ओर ले जाएगा। यह हर जागरूक नागरिक, शासन और समाज की संयुक्त जिम्मेदारी है कि वह सनातन संस्कृति के वैज्ञानिक और नैतिक पक्ष को सशक्त रूप में सामने लाएं और अंधकार से समाज को मुक्त करें।

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