मेक्सिको बना विश्व का पहला देश जहां आम जनता ने न्यायिक पदों के लिए मतदान किया – लोकतंत्र की दिशा में सुधार या नया विवाद?

आम जनता ने सुप्रीम कोर्ट,जिला मजिस्ट्रेट व जजों के चुनाव में वोट डाले
-2700 से अधिक न्यायिक पदों के लिए 7700 उम्मीदवार चुनाव लड़े-अदालतों के राजनीतिक व आपराधिक दबाव में आने की संभावना
विश्व का पहला देश जहां न्यायिक पदों के लिए सीधे आम जनता ने वोट डाला-सिर्फ 13 पेर्सेंट वोटिंग दर्ज की गई
अदालत को लोकतांत्रिक बनाने सीधा आम जनता द्वारा चुनाव,अनोखा विवादित व लोकतंत्र का मजाक है, न्यायिक व्यवस्था राजनीतिक अपराधिक व अयोग्य व्यक्तियों के हाथों में होगी
-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

गोंदिया (महाराष्ट्र)। वैश्विक स्तर पर 2 जून 2025 को इतिहास रचते हुए मेक्सिको ऐसा पहला देश बन गया जहां आम जनता ने सीधे सुप्रीम कोर्ट, जिला मजिस्ट्रेट और अन्य न्यायिक पदों के लिए वोट डाले। इस अभूतपूर्व चुनाव में 2,700 से अधिक न्यायिक पदों के लिए 7,700 उम्मीदवार मैदान में उतरे। हालांकि, लोकतंत्र के इस प्रयोग को लेकर दुनियाभर में तीखी बहस छिड़ गई है।
सिर्फ 13 प्रतिशत वोटिंग ने इस चुनाव की वैधता और जनता की जागरूकता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अधिवक्ता और चिंतक किशन सनमुखदास भावनानी (गोंदिया, महाराष्ट्र) का मानना है कि यह प्रयोग “न्यायिक प्रणाली का राजनीतिक और आपराधिकरण” करने की ओर एक खतरनाक कदम हो सकता है।
क्या अदालतों को लोकतांत्रिक बनाने का प्रयास या न्याय व्यवस्था का मजाक?
न्यायपालिका को लोकतांत्रिक रूप देने की मंशा से शुरू की गई यह प्रक्रिया विवादों में घिर गई है। आलोचकों का कहना है कि इस प्रणाली से योग्य, स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायाधीशों की नियुक्ति बाधित होगी और राजनीतिक दलों या आपराधिक शक्तियों को न्यायपालिका में दखल देने का अवसर मिलेगा।
इस कानून को मेक्सिको में 11 सितंबर 2024 को पारित किया गया था, जिसमें वोटर को सभी स्तरों पर जजों को चुनने का अधिकार दिया गया। यह बिल संशोधन के साथ दो-तिहाई बहुमत से पारित हुआ था।
कम वोटिंग, भ्रमित मतदाता और अपारदर्शी प्रक्रिया

हालांकि यह व्यवस्था न्यायिक जवाबदेही बढ़ाने के उद्देश्य से लाई गई थी, लेकिन हकीकत में मतदाताओं की भागीदारी बहुत ही कम रही। मात्र 13 प्रतिशत लोगों ने मतदान में हिस्सा लिया – यह पिछले राष्ट्रपति चुनावों की 60 प्रतिशत वोटिंग के मुकाबले बेहद कम है।
इसके पीछे प्रमुख कारण रहे:
- उम्मीदवारों की जानकारी का अभाव
- प्रचार और पार्टी पहचान की मनाही
- मतदाता भ्रम
- चुनाव की जल्दबाजी में की गई योजना
चिंताजनक उम्मीदवार: माफिया और दागी चेहरों की दावेदारी
जिन 7,700 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा, उनमें कई ऐसे थे जो या तो ड्रग माफियाओं के वकील रहे हैं, भ्रष्टाचार के आरोप में पद छोड़ चुके हैं या फिर अमेरिका में आपराधिक मामलों में सजा भुगत चुके हैं।
कुछ उम्मीदवारों के संबंध एक ऐसे धार्मिक समूह से भी हैं, जिसके प्रमुख पर अमेरिका में बच्चों के यौन शोषण का दोष सिद्ध हुआ है। इसने न्यायिक प्रणाली की गंभीरता पर गहरा प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
सरकार का पक्ष बनाम विरोधियों की आशंका

मेक्सिकन राष्ट्रपति और उनकी पार्टी का दावा है कि यह पहल न्यायपालिका में भ्रष्टाचार समाप्त करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। उनका कहना है कि वर्षों से जनता न्याय नहीं मिलने से त्रस्त रही है, और यह चुनाव व्यवस्था को अधिक उत्तरदायी बनाएगा।
वहीं, विरोधी इसे सत्ता का केंद्रीकरण और न्यायपालिका पर नियंत्रण स्थापित करने की साजिश करार दे रहे हैं। कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह न्यायिक स्वतंत्रता पर कुठाराघात है।
चुनाव प्रणाली की सीमाएँ और खतरे
- प्रचार पर रोक: उम्मीदवार टीवी या रेडियो पर प्रचार नहीं कर सकते थे।
- पार्टी समर्थन प्रतिबंधित: कोई राजनीतिक दल उम्मीदवारों को समर्थन नहीं दे सकता।
- सोशल मीडिया छूट: केवल सोशल मीडिया और इंटरव्यू के जरिए प्रचार की अनुमति।
- अपराधी समूहों की घुसपैठ की आशंका: माफिया द्वारा स्थानीय चुनावों को प्रभावित करने का खतरा भी जताया गया है।
सत्तारूढ़ दल की पकड़ और संतुलन की समाप्ति
जिन न्यायाधीशों का चुनाव हुआ, उनमें से अधिकांश का सत्तारूढ़ पार्टी से वैचारिक साम्य और संबंध बताया जा रहा है। यह तथ्य उच्च न्यायालयों में संतुलन समाप्त होने की ओर संकेत करता है।
अधिवक्ता किशन भावनानी कहते हैं: “यह पूरा प्रयोग लोकतंत्र का मजाक है। न्यायिक प्रणाली राजनीति और अपराधियों के शिकंजे में आ सकती है, जिससे जनता का न्यायपालिका पर से विश्वास उठ सकता है। यह स्थिति वैश्विक लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा बन सकती है।”
अंतरराष्ट्रीय मंचों की भूमिका पर सवाल
लेखक का मानना है कि इस प्रयोग को संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक मंचों द्वारा अस्वीकार किया जाना चाहिए, क्योंकि यह न्यायिक स्वतंत्रता को खतरे में डालता है और न्यायिक प्रणाली की निष्पक्षता पर संदेह उत्पन्न करता है।
निष्कर्ष
मेक्सिको ने न्यायिक लोकतंत्र के क्षेत्र में जो नया अध्याय शुरू किया है, वह एक ऐतिहासिक और विवादास्पद प्रयोग बनकर सामने आया है। इसकी सफलता या विफलता आने वाले वर्षों में स्पष्ट होगी, लेकिन फिलहाल यह दुनिया भर में बहस, आलोचना और चिंता का विषय बना हुआ है।
-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यम सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र