फतह सिंह उजाला

पटौदी – पटौदी को जिला बनाने की मांग को लेकर बुधवार को आयोजित बंद भले ही शांतिपूर्ण और व्यापक समर्थन के साथ सम्पन्न हुआ हो, लेकिन इस मुहिम की सोशल मीडिया रणनीति और उसमें दिए गए कुछ संदेशों ने अब गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पटौदी जिला निर्माण समिति द्वारा बनाए गए सोशल मीडिया ग्रुप में डाले गए एक संदेश ने पूरे आंदोलन की नीयत और वैधानिकता को लेकर बहस छेड़ दी है।
किसने दिया ‘1100 की पर्ची’ काटने का संदेश?
पटौदी जिला निर्माण समिति के नाम से बनाए गए ग्रुप में एक सदस्य “MEHCHANA, S. NEW HAPPY” द्वारा सुबह 8:08 बजे और फिर 8:12 बजे यह संदेश दोहराया गया:
“Koi bhi dukan khuli milne par kadi karwai ki jay or 1100 ki parcho kati jaygi”
यानि, यदि कोई दुकान खुली मिली तो उस पर सख्त कार्रवाई हो और ₹1100 की पर्ची काटी जाए।
यह संदेश न केवल दो बार डाला गया, बल्कि इसे ग्रुप में किसी ने तुरंत खारिज भी किया। एक सदस्य ने व्यंग्य में जवाब देते हुए कहा: “जीतेन्द्र भाई, आप और हमें ऑफिसियल अधिकार नहीं है चालान काटने का। क्योंकि बंद हमने किया है, सरकार ने नहीं।”
समर्थन में आया ‘स्वैच्छिक दंड’ का विचार
मामला यहीं नहीं रुका। राकेश यादव नामक सदस्य ने इस सुझाव का समर्थन करते हुए लिखा: “वैसे तो यह सुझाव सही है, जो दुकानदार ना माने, उससे ₹1100 लिए जाएं और वह धनराशि पटौदी को जिला बनाने के लिए खर्च की जाए।”
इस प्रतिक्रिया ने स्पष्ट कर दिया कि यह कोई ह्यूमर या व्यंग्य नहीं, बल्कि आंदोलन को सफल बनाने के लिए एक ‘वैकल्पिक रणनीति’ जैसा सुझाव था, जो अब सवालों के घेरे में है।
सवाल यह नहीं कि बंद क्यों किया, सवाल यह है कैसे किया?
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में शांतिपूर्ण बंद, धरना, प्रदर्शन जैसे प्रयास जनता के अधिकार हैं। लेकिन बंद को सफल बनाने के लिए यदि गैरकानूनी दबाव, धमकी या जबरन वसूली जैसे सुझाव सामने आएं, तो वह सिर्फ आंदोलन को ही नहीं, उसकी साख को भी कमजोर करते हैं।
क्या किसी निजी संगठन या समिति को यह अधिकार है कि वह दुकानों के खुले रहने पर ‘पर्ची’ काटे या जुर्माना वसूले? यदि नहीं, तो ऐसे मैसेज किसके कहने पर डाले गए और क्या ग्रुप एडमिन की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह इस तरह के संदेशों पर रोक लगाएं?
अब आंदोलनकारियों के सामने दोहरी चुनौती
इस पूरे घटनाक्रम के बाद अब पटौदी जिला निर्माण समिति के समक्ष सिर्फ जिला बनाए जाने की मांग नहीं, बल्कि आंदोलन की विश्वसनीयता बनाए रखने की चुनौती भी खड़ी हो गई है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि—
- क्या समिति ऐसे सुझाव देने वालों से खुद को अलग करेगी?
- क्या ग्रुप एडमिन इस प्रकार के गैरकानूनी विचारों को सार्वजनिक रूप से खारिज करेंगे?
- या फिर इन बातों को नजरअंदाज कर भविष्य में भी ऐसे संदेशों को मौन समर्थन मिलेगा?
पटौदी जिला निर्माण आंदोलन का यह सोशल मीडिया पहलू अब सार्वजनिक चर्चा का विषय बन चुका है — और यह तय है कि आने वाले समय में आंदोलन की दिशा और छवि, इन सवालों के जवाबों से तय होगी।