कोरियावास मेडिकल कॉलेज के नामकरण को लेकर अहीरवाल में आक्रोश, सरकार की चुप्पी पर जनता आहत
राव तुलाराम का अपमान, अहीरवाल की आत्मा पर आघात ……. धरती दी, वोट दिए — फिर भी नाम देने से इंकार क्यों?

7 जून 2025 | महेन्द्रगढ़, रेवाड़ी – स्वतंत्रता संग्राम के महानायक, 1857 की क्रांति के वीर योद्धा अमर शहीद राव तुलाराम को सम्मान देने की मांग को लेकर अहीरवाल की जनता लगभग एक माह से नारनौल के कोरियावास गांव में मेडिकल कॉलेज के बाहर धरने पर बैठी है, लेकिन हरियाणा सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही।
यह वही धरती है, जिसने न केवल देश की आज़ादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया, बल्कि आज भी राष्ट्र निर्माण में हर स्तर पर योगदान दे रही है। ग्रामीणों ने इस कॉलेज के लिए अपनी ज़मीन मुफ्त में दी, लेकिन जब बात कॉलेज का नाम राव तुलाराम के नाम पर रखने की आई तो सरकार की नीयत और प्राथमिकताएं साफ दिखने लगीं।
वेदप्रकाश विद्रोही, जो स्वयंसेवी संस्था ‘ग्रामीण भारत’ के अध्यक्ष हैं, सवाल उठाते हैं कि जब स्वास्थ्य मंत्री आरती राव खुद राव तुलाराम की परपौत्री हैं और उनके ही विभाग के तहत यह मेडिकल कॉलेज आता है, फिर भी यदि वह अपने परदादा के नाम पर इस कॉलेज का नामकरण नहीं करवा सकतीं, तो फिर उनके मंत्री होने का औचित्य क्या रह जाता है?
अहीरवाल क्षेत्र के 11 में से 10 विधायक भाजपा के, राव इन्द्रजीत सिंह केंद्र में मंत्री, चौधरी धर्मबीर लोकसभा सांसद और स्वयं जनता — सब एक स्वर में मांग कर रहे हैं कि मेडिकल कॉलेज का नाम शहीद राव तुलाराम के नाम पर रखा जाए। फिर भी, हरियाणा सरकार इसे च्यवन ऋषि के नाम पर रखने पर अड़ी हुई है।
क्या शहीदों का सम्मान अब सत्ता की सोच और संस्कृति के हिसाब से तय होगा?
क्या मनुवादी मानसिकता के चलते देश के वीरों को इतिहास से मिटाने की कोशिश की जा रही है?
विद्रोही पूछते हैं — “जब सारी परिस्थितियाँ अनुकूल हैं, फिर भी भाजपा सरकार अहीरवाल की यह छोटी सी मांग नहीं मान रही, तो अहीरवाल ने पिछले तीन लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा को एकतरफा समर्थन किसलिए दिया? क्या सिर्फ इसलिए कि हमारे वोट तो तय माने जाते हैं, और हमारी भावनाओं का कोई मोल नहीं?”
आज जब देश में परंपरा, संस्कृति और गौरव की बात होती है, तो यह सवाल और भी गूंजता है कि क्या एक शहीद का नाम भी राजनीति का मोहरा बन गया है?
अहीरवाल की सड़कों, खेतों और जवानों के घरों से एक ही आवाज़ आ रही है —
“हमने ज़मीन दी, हमने साथ दिया… अब नाम भी हमारा हो। राव तुलाराम का हो।”