ऋषि प्रकाश कौशिक
हर साल 21 जून को “अंतरराष्ट्रीय योग दिवस” बड़े उत्साह और जन भागीदारी के साथ मनाया जाता है। सरकारें योग शिविरों से लेकर भव्य आयोजनों तक इसकी भव्यता को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़तीं। लेकिन ऐसे आयोजनों के शोर के बीच यह सवाल मौजूं है कि क्या योग का असल उद्देश्य – आत्मिक शांति और आत्म-संवाद – कहीं पीछे तो नहीं छूट रहा?
योग बनाम योगा — अर्थ और उद्देश्य में अंतर
भारत की परंपरा में ‘योग’ आत्मा और परमात्मा के मिलन का मार्ग है, जबकि पश्चिमी देशों में प्रचलित ‘योगा’ एक ‘फिटनेस एक्सरसाइज़’ की तरह प्रचारित हो चुका है। एक ओर जहां भारत में योग ‘अष्टांग’ आधारित साधना है, वहीं विदेशों में यह सिर्फ आसनों तक सीमित हो गया है।
ध्यान और प्राणायाम — योग का मूल, न कि विकल्प
वर्तमान में हरियाणा सरकार सहित कई संस्थाएं योग प्रचार के लिए कई कार्यक्रम चला रही हैं। लेकिन इनमें ध्यान और प्राणायाम की अपेक्षा शारीरिक आसनों पर अधिक ज़ोर दिया जा रहा है। ध्यान और प्राणायाम आत्मिक अनुशासन के प्रतीक हैं, जिन्हें दिखावे की बजाय एकांत, शांति और साधना में ही करना अधिक लाभकारी होता है।
क्या सिर्फ सार्वजनिक प्रदर्शन से योग का उद्देश्य पूरा होगा?
सरकारी आयोजनों में योग को प्रदर्शनों तक सीमित कर देने से उसका गूढ़ अर्थ छिप जाता है। ध्यान किसी कैमरे की रोशनी में नहीं खिलता, वह तो भीतर की लौ से उजास पाता है। योग कोई प्रतियोगिता नहीं है जिसे मंच पर जीतना हो, बल्कि यह एक यात्रा है – स्वयं के भीतर उतरने की।
अन्य देशों में योग का स्वरूप
विदेशों में योग को गंभीरता से आत्मसात किया गया है:
- अमेरिका में यह स्ट्रेस मैनेजमेंट का अहम हिस्सा बन चुका है।
- जर्मनी और जापान में योग को ध्यान व जीवन शैली के सुधार के साथ जोड़ा गया है।
- कनाडा व ऑस्ट्रेलिया में योग को शिक्षा संस्थानों में बाकायदा पाठ्यक्रमों में शामिल किया गया है।
क्या हरियाणा भी गंभीर योग साधना के लिए तैयार है?
हरियाणा सरकार की पहल सराहनीय है, लेकिन कार्यक्रमों में सिर्फ आसनों तक सीमित रह जाना योग के प्रति अधूरी समझ को दर्शाता है। जब तक ध्यान, प्राणायाम और आंतरिक अनुशासन पर ज़ोर नहीं होगा, तब तक योग केवल शारीरिक व्यायाम बनकर रह जाएगा।
निष्कर्ष
आज आवश्यकता है कि हम योग को सिर्फ सार्वजनिक उत्सव नहीं, बल्कि व्यक्तिगत अनुशासन, आत्मिक अनुबंधन और मानसिक समत्व की साधना के रूप में समझें।
योग ‘करने’ की नहीं, ‘जीने’ की विधा है।
इस योग दिवस पर आइए संकल्प लें कि हम योग को उसका खोया स्वरूप लौटाएंगे — न दिखावे का माध्यम, बल्कि आत्मान्वेषण का पथ बनाएंगे।