बच्चे हर देश के सुनहरे भविष्य की नींव है,आओ उन्हें मज़दूर नहीं शिक्षित बनाएं
भारत में बाल श्रम रोकने में श्रम विभाग,बाल संरक्षण विभाग,पोलिस, मानव तस्करी विरोधी विभाग, बाल अधिकार आयोग, की सक्रियता में कमी का संज्ञान पीएम को लेना ज़रूरी
-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

गोंदिया महाराष्ट्र – वैश्विक स्तरपर बच्चे किसी भी राष्ट्र की नींव होते हैं। उनका बचपन शिक्षा, पोषण, और प्रेम का होना चाहिए, न कि मजदूरी, शोषण और अशिक्षा का। इसीलिए हर वर्ष 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है, ताकि समाज को इस गंभीर समस्या के प्रति जागरूक किया जा सके और ठोस कार्रवाई हो सके।
साल 2025 इस दिन को और भी महत्वपूर्ण बनाता है क्योंकि यह संयुक्त राष्ट्र के उस लक्ष्य की अंतिम सीमा है, जिसमें 2025 तक सभी रूपों में बाल श्रम को समाप्त करने का संकल्प लिया गया है।
बाल श्रम की स्थिति: एक गंभीर वैश्विक संकट
संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार:
- वैश्विक स्तर पर 2020 की शुरुआत तक 16 करोड़ बच्चे बाल श्रम में लगे थे।
- भारत में जनगणना 2011 के अनुसार 1.01 करोड़ बाल मजदूर हैं, जिनमें लगभग 56 लाख लड़के और 45 लाख लड़कियां शामिल हैं।
- ये बच्चे ईंट भट्टों, कालीन बुनाई, खेत-खलिहान, घरेलू श्रम, और यहां तक कि यौन शोषण व तस्करी जैसे खतरनाक क्षेत्रों में काम कर रहे हैं।
सड़क किनारे बिकते खिलौने, ट्रैफिक सिग्नलों पर सामान बेचते या भीख मांगते बच्चे—हमारे आस-पास की हर गली और हर शहर की आम सच्चाई बन चुके हैं।
भारत में बाल श्रम उन्मूलन के लिए कानून व योजनाएं
भारत सरकार ने बाल श्रम रोकने के लिए कई कानून और योजनाएं लागू की हैं:

- बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986
➤ 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी पेशे में काम करने पर रोक। - शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE Act)
➤ 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा। - बाल श्रम (संशोधन) अधिनियम, 2016
➤ अब 14 साल से कम उम्र के बच्चों को पारिवारिक व्यवसायों में भी काम करने की अनुमति नहीं। - राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना (NCLP)
➤ बाल मजदूरों के पुनर्वास हेतु शिक्षा, प्रशिक्षण, भोजन और स्वास्थ्य सेवाएं। - खदान अधिनियम 1952
➤ 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर खदानों में काम करने पर प्रतिबंध। - राष्ट्रीय बाल श्रम उन्मूलन प्राधिकरण (NCLA)
➤ बाल श्रम से जुड़ी शिकायतों और कार्यवाहियों की निगरानी।
यथार्थ की तस्वीर और प्रशासनिक निष्क्रियता
वास्तविकता यह है कि कानूनों के बावजूद प्रशासनिक सक्रियता की भारी कमी है:

- श्रम विभाग
- बाल संरक्षण विभाग
- पुलिस प्रशासन
- मानव तस्करी विरोधी इकाइयां
- बाल अधिकार आयोग
इन सभी की संयुक्त जिम्मेदारी होने के बावजूद ग्राउंड लेवल पर कार्रवाई नगण्य है। इस निष्क्रियता का संज्ञान प्रधानमंत्री स्तर तक लिया जाना आवश्यक है।
बाल श्रम के विभिन्न प्रकार
- बाल मजदूर – कारखानों, दुकानों, घरेलू सेवाओं में काम करने वाले बच्चे।
- सड़क पर काम करने वाले बच्चे – फेरीवाले, भीख मांगने वाले।
- बंधुआ मजदूर – कर्ज चुकाने के लिए काम करने को मजबूर बच्चे।
- घरेलू सहायिका – घरेलू कामों में लगे बच्चे, विशेषकर लड़कियां।
- यौन शोषण – मानव तस्करी और यौन शोषण का शिकार बालक-बालिकाएं।
- कृषि कार्यों में लगे बच्चे – खेतों और घरेलू कृषि कार्यों में लगे हुए।
अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय लक्ष्य
संयुक्त राष्ट्र का सतत विकास लक्ष्य (SDG) 8.7
➤ वर्ष 2025 तक बाल श्रम के सभी रूपों को समाप्त करने का लक्ष्य।
राष्ट्रीय बाल श्रम नीति (1987)
➤ खतरनाक उद्योगों में बच्चों के रोजगार को प्रतिबंधित करने हेतु दिशा-निर्देश।
निष्कर्ष
“आओ बच्चों को मजदूरी नहीं, शिक्षा दिलाएं” केवल एक नारा नहीं, बल्कि हमारे सामाजिक, राजनीतिक, और नैतिक दायित्व की पुकार है।
बच्चे किसी देश की पूंजी हैं, उन्हें शिक्षित करना और उनके अधिकारों की रक्षा करना हर नागरिक और हर सरकार की ज़िम्मेदारी है।
आइए 12 जून 2025 को केवल औपचारिकता नहीं, एक संकल्प के रूप में मनाएं—कि अब एक भी बच्चा मजदूर नहीं, बल्कि विद्यार्थी होगा।
आग्रह: प्रधानमंत्री और संबंधित विभागों को चाहिए कि वे श्रम कानूनों के कड़ाई से पालन के साथ-साथ जनजागरूकता अभियान तेज करें। NGOs और सामाजिक संगठनों को भी मैदान में उतरना होगा
-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र