सुरेश गोयल ‘धूप वाला’ पूर्व जिला महामंत्री, भाजपा, जिला हिसार

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का हालिया बयान, जिसमें उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की इच्छा जताई है, न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि भारत की संप्रभुता और विदेश नीति की स्पष्टता को चुनौती देने वाला भी है। ट्रम्प की ‘सुलह की पेशकश’ कोई नई बात नहीं है, पर यह उनकी सनसनीखेज राजनीति का हिस्सा मात्र है।

भारत ने हमेशा यह रुख स्पष्ट किया है कि पाकिस्तान से वार्ता तभी संभव है जब वह आतंकवाद को पूरी तरह समाप्त करे। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है — यह ऐतिहासिक, संवैधानिक और राजनीतिक दृष्टि से निर्विवाद सत्य है। यदि चर्चा का कोई विषय है, तो वह केवल पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) हो सकता है, न कि कश्मीर पर किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता।

भारत की विदेश नीति आत्मनिर्भरता, संप्रभुता और स्पष्टता पर आधारित रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर की स्पष्टवाणी में यह दृष्टिकोण बार-बार सामने आया है कि भारत किसी तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप को न पहले स्वीकार करता था, न अब करेगा।

वास्तव में, पाकिस्तान की समस्या उसकी राजनीतिक अस्थिरता, सैन्य वर्चस्व और कट्टरपंथी ताकतों की पकड़ है। जब तक वहाँ लोकतांत्रिक संस्थाएं मजबूत नहीं होंगी, आतंकवाद पर लगाम नहीं लगेगी, भारत से सार्थक वार्ता संभव नहीं।

भारत को चाहिए कि ट्रम्प जैसे नेताओं के बयानों को राजनीतिक स्टंट मानते हुए अपने दीर्घकालिक राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दे। वैश्विक महाशक्तियाँ अक्सर अपने हित साधने के लिए तीसरे देशों के आंतरिक मामलों में कूद पड़ती हैं, पर भारत अब उस दौर में नहीं है कि वह दबाव में नीति बनाए।

कश्मीर भारत का है, और रहेगा।
जो भी इस पर संदेह करेगा, उसे भारत ने हमेशा माकूल उत्तर दिया है और भविष्य में भी देगा।

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