“योग सिर्फ शरीर नहीं, विचारों की शुद्धि और चेतना का विस्तार है”
प्रियंका सौरभ

योग का मूल मंत्र : “मन ही सब कुछ है”
“जो आप सोचते हैं, आप वही बन जाते हैं।” – यह उक्ति केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि जीवन की गहराई को छूने वाली एक सच्चाई है। योग का वास्तविक उद्देश्य शरीर से नहीं, मन और आत्मा से जुड़ा होता है। जब मन विक्षुब्ध हो, तो जीवन असंतुलित हो जाता है। योग, इस असंतुलन को संतुलन में बदलने की विद्या है।
योग : शारीरिक अभ्यास नहीं, चेतना का जागरण
आज जब लोग योग को “फिटनेस फॉर्मूला” समझने लगे हैं, तब यह याद रखना ज़रूरी है कि योग आठ अंगों से बना एक दर्शन है — यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि। इनका अंतिम उद्देश्य है – चित्त की शुद्धि और आत्म-प्राप्ति।
योग और मन की भूमिका
पतंजलि योगसूत्र कहता है – “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” अर्थात् योग वह है जो मन की विक्षिप्तताओं को रोकता है। चित्तवृत्तियाँ – जैसे क्रोध, ईर्ष्या, वासना, मोह, द्वेष — हमें हमारी आत्मा से दूर ले जाती हैं। योग इन्हीं को साधने की प्रक्रिया है।
मानसिक स्वास्थ्य और आधुनिक समाज
आज दुनिया मानसिक विकारों की महामारी से जूझ रही है। अवसाद, चिंता, अकेलापन और आत्महत्या जैसे संकटों का समाधान केवल औषधियों में नहीं, योग और ध्यान जैसी प्राचीन तकनीकों में है। वैज्ञानिक शोध भी पुष्टि करते हैं कि प्राणायाम और ध्यान से कॉर्टिसोल हार्मोन (तनाव कारक) कम होता है और मस्तिष्क की तरंगें शांत होती हैं।
भारत की पहल : योग से विश्वगुरु बनने की ओर
2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की पहल ने एक नया इतिहास रचा। 21 जून अब केवल एक दिन नहीं, एक विश्व चेतना का पर्व बन चुका है। यह भारत की उस परंपरा का प्रतीक है, जो आत्म-संयम और विश्व-कल्याण के मूल्यों पर आधारित है।
मन की जीत = जीवन की जीत
महात्मा गांधी, डॉ. कलाम, नेल्सन मंडेला, गौतम बुद्ध, स्वामी विवेकानंद — सभी ने मन की शक्ति को आत्मविकास का आधार माना। उनके जीवन हमें सिखाते हैं कि मन पर विजय प्राप्त किए बिना कोई भी बाह्य सफलता पूर्ण नहीं होती।
गीता का योग – समत्व और संयम
श्रीमद्भगवद्गीता कहती है – “समत्वं योग उच्यते”। जब जीवन के उतार-चढ़ाव हमें विचलित न करें, जब हम राग-द्वेष से मुक्त हो जाएँ — तब ही हम योगस्थ होते हैं। योग कोई कौशल नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है।
निष्कर्ष : योग करें, मन से जुड़ें, जीवन को दिशा दें
जब हम दिन की शुरुआत केवल 20 मिनट ध्यान और प्राणायाम से करते हैं, तो हम न केवल स्वस्थ शरीर बल्कि शांत मन और जाग्रत चेतना के साथ समाज के लिए उपयोगी बनते हैं।
योग करो, संयम से सोचो, और अपने मन को मित्र बना लो — फिर न तुम डिगोगे, न टूटोगे, केवल खिलते जाओगे।