रेवाड़ी, 21 जून 2025: अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर स्वयंसेवी संस्था ग्रामीण भारत के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही ने समस्त देशवासियों को योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं दीं और आग्रह किया कि सभी नागरिक नियमित योग अभ्यास को अपनाकर न केवल स्वयं को, बल्कि पूरे समाज को भी स्वस्थ और सकारात्मक बनाए रखने का संकल्प लें।

विद्रोही ने कहा कि भारतवर्ष में योग की परंपरा हजारों वर्षों पुरानी है और आर्य समाज के गुरुकुलों में डेढ़ सौ वर्षों से भी अधिक समय से विद्यार्थियों को सुबह-शाम योग अभ्यास की नियमित शिक्षा दी जाती रही है। यही विद्यार्थी आगे चलकर पूरे देश में योग शिविरों और प्रशिक्षणों के माध्यम से योग को जन-जन तक पहुंचाते रहे हैं।

उन्होंने याद दिलाया कि स्वतंत्रता के बाद भारत के स्कूलों में पीटी (शारीरिक शिक्षा) की अनिवार्यता के तहत योग और अन्य व्यायाम नियमित रूप से सिखाए जाते थे, लेकिन पिछले 25–30 वर्षों में जब से तथाकथित नई शिक्षा नीतियों के नाम पर बच्चों पर पाठ्यक्रम का बोझ बढ़ा है, तब से शारीरिक शिक्षा हाशिए पर चली गई है और योग विद्यालयी जीवन से लगभग लुप्त हो गया है।

योग का बाजारीकरण और राजनीतिकरण — एक गंभीर चिंता

वेदप्रकाश विद्रोही ने साफ शब्दों में कहा कि हाल के वर्षों में योग के प्रति नागरिकों का झुकाव बढ़ा है, यह स्वागतयोग्य है, लेकिन इसी के साथ योग को व्यापार और राजनीतिक चमक का माध्यम बनाने की प्रवृत्ति भी बढ़ी है — जो योग के मूल उद्देश्यों के विरुद्ध है। उन्होंने योग को “धन कमाने का जरिया” बनाए जाने की आलोचना करते हुए कहा कि इससे योग की आत्मा और उसका प्रभाव दोनों क्षीण होते हैं।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा योग दिवस की मान्यता, लेकिन…

उन्होंने कहा कि भले ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मान्यता दी है, लेकिन भारत में भाजपा सरकार इस आयोजन को हर वर्ष मीडिया-ईवेंट और सत्ता प्रायोजित संघी कार्यक्रम बना रही है, जो योग के उच्च आध्यात्मिक मूल्यों के विरुद्ध है। योग जैसे सार्वभौमिक और आध्यात्मिक विज्ञान को राजनीतिक रंग देना संवेदनहीनता और सत्ता दुरुपयोग का प्रतीक है।

राजनीति, धर्म और लोभ से परे जाकर योग को अपनाएं

विद्रोही ने नागरिकों से अपील की कि वे धर्म, राजनीति और लोभ से ऊपर उठकर योग को एक आध्यात्मिक अनुशासन, स्वास्थ्य की कुंजी और आत्म-संयम के मार्ग के रूप में अपनाएं। उन्होंने कहा, “योग केवल शरीर की चपलता नहीं, बल्कि मन की शुद्धि और आत्मा की ऊंचाई का मार्ग है। यदि प्रत्येक नागरिक नियमित योग अभ्यास को अपनाता है, तो समाज और राष्ट्र दोनों स्वस्थ, अनुशासित और उन्नत बन सकते हैं।”

सारांश में, विद्रोही का यह संदेश योग दिवस के अवसर पर केवल एक औपचारिक शुभकामना नहीं, बल्कि एक वैचारिक मार्गदर्शन और चेतना की पुकार है — कि योग का राजनीतिक और व्यापारिक उपयोग बंद हो और इसे व्यक्तिगत और सामाजिक स्वास्थ्य का मूल आधार बनाया जाए।

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