“एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान – नहीं चलेंगे”
✍️ सुरेश गोयल ‘धूप वाला’ …………… पूर्व जिला महामंत्री, भाजपा हिसार

पृथ्वी पर समय-समय पर कुछ ऐसी महान विभूतियां जन्म लेती हैं जो अपने विलक्षण विचार, राष्ट्रभक्ति और प्रेरणादायक कर्मों से इतिहास के पन्नों में अमर हो जाती हैं। पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी ऐसी ही एक विभूति थे, जिन्होंने भारत की एकता और अखंडता के लिए अपने प्राणों का बलिदान देकर देश के प्रति अपना अटूट समर्पण सिद्ध कर दिया।
अद्भुत प्रतिभा के धनी
महज 33 वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति बनने वाले पंडित श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने शिक्षा के क्षेत्र में जो ऊंचाइयां हासिल कीं, वह आज भी प्रेरणास्रोत हैं। 6 जुलाई 1901 को कोलकाता के एक प्रतिष्ठित परिवार में जन्मे डॉ. मुखर्जी ने इंग्लैंड से बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी कर 1926 में भारत वापसी की और तत्पश्चात शिक्षा, राजनीति व राष्ट्रनिर्माण में अपना जीवन समर्पित कर दिया।
राष्ट्रवादी चिंतक और राजनेता
डॉ. मुखर्जी स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर भारत की एकता के लिए समर्पित रहे। उन्होंने धर्म के आधार पर हुए भारत विभाजन का पुरजोर विरोध किया और स्वतंत्र भारत की पहली कैबिनेट में महात्मा गांधी और सरदार पटेल के अनुरोध पर उद्योग मंत्री बने। किंतु जब उन्हें लगा कि राष्ट्रहित से समझौता किया जा रहा है, तो उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा देना उचित समझा।
भारतीय जनसंघ की स्थापना

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक गुरू गोलवलकर की प्रेरणा से उन्होंने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी के रूप में देश की सबसे बड़ी पार्टी बनी। विपक्ष के मजबूत स्तंभ के रूप में डॉ. मुखर्जी ने राष्ट्रवाद और अखंड भारत का स्वर मुखर किया।
कश्मीर को लेकर ऐतिहासिक संघर्ष
उस समय जम्मू-कश्मीर में अलग झंडा, अलग संविधान और मुख्यमंत्री को वजीरे-आजम कहा जाता था। डॉ. मुखर्जी ने इसका विरोध करते हुए ऐतिहासिक नारा दिया —
“एक देश में दो विधान, दो प्रधान, दो निशान – नहीं चलेंगे”
उन्होंने धारा 370 के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन छेड़ा। 1953 में उन्होंने बिना परमिट के कश्मीर में प्रवेश किया और गिरफ्तार कर लिए गए। 23 जून 1953 को जेल में उनकी रहस्यमयी मृत्यु हो गई, जिसे आज भी एक राष्ट्रीय बलिदान के रूप में याद किया जाता है।
बलिदान का प्रतिफल – धारा 370 का अंत
डॉ. मुखर्जी का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए जम्मू-कश्मीर से धारा 370 समाप्त कर दी। राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों – जम्मू-कश्मीर और लद्दाख – में विभाजित कर देश की एकता को संविधान के वास्तविक स्वरूप में स्थापित किया गया। यह कदम डॉ. मुखर्जी के सपनों की साकार पूर्ति था।
अंत में
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी आज भी देशवासियों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। वे एक ऐसे राष्ट्रनायक थे जिन्होंने निजी सत्ता या पद नहीं, बल्कि भारत की अखंडता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। उनकी राष्ट्रभक्ति, दूरदृष्टि और साहसिक नेतृत्व को भारत सदैव कृतज्ञता से स्मरण करता रहेगा।
बलिदान दिवस पर यही संकल्प हो — एक भारत, श्रेष्ठ भारत।
जय हिन्द