गुरुग्राम, 28 जून – वरिष्ठ कांग्रेस नेत्री पर्ल चौधरी ने कहा, 2014 से 2024 तक देश की संसद में कोई मान्यताप्राप्त विपक्ष नहीं था यह लोकतंत्र की आत्मा पर लगाया गया सबसे बड़ा प्रश्नचिह्न था। लेकिन 25 जून 2024 को राहुल गांधी ने जब लोकसभा में विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी संभाली, तो संसद में जनता की आवाज़ लौट आई। एक साल के भीतर ही उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि वे केवल विपक्ष के नेता नहीं, बल्कि देश की उस 80% आबादी की आवाज़ हैं, जो या तो भाजपा को वोट नहीं देती, या वोट ही नहीं करती, लेकिन देश में बदलाव चाहती है।
*जनता के मुद्दों को संसद के केंद्र में लाना
राहुल गांधी ने संसद में जो मुद्दे उठाए जैसे जातिगत जनगणना, मणिपुर की हिंसा, महिला आरक्षण एवं सशक्तिकरण, अग्निवीर योजना, वक़्फ़ संपत्तियों पर हस्तक्षेप, ब्रॉडकास्ट बिल, और चुनाव आयोग की निष्पक्षता, वे सब वो सवाल हैं जिन्हें केंद्र सरकार टालती रही थी ।
जहां सरकार हर असहज सवाल से कतराती है, वहीं राहुल गांधी ने आँकड़ों, संवैधानिक दलीलों और नैतिक साहस से सरकार को कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने दिखाया कि विपक्ष संसद की शोभा नहीं, उसकी संवैधानिक ज़रूरत है।
*संकट में सरकार के साथ, संविधान पर अडिग
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान राहुल गांधी ने स्पष्ट कर दिया कि जब बात राष्ट्रहित की हो, तब विपक्ष का धर्म साथ देना होता है लेकिन जब बात संविधान की हो, तो समझौते की कोई जगह नहीं होती ।
*गांधी, अंबेडकर और राहुल गांधी: एक वैचारिक सेतु
“गांधी ने हमें सिखाया कि राजनीति आत्मा की सेवा है, अंबेडकर ने बताया कि संविधान सामाजिक न्याय की ढाल है, और राहुल गांधी इन दोनों परंपराओं को आज संसद में जीवित रखे हुए हैं।”
भाजपा की राजनीति जहाँ जातियों को आपस में लड़ाने और धार्मिक ध्रुवीकरण पर केंद्रित है, राहुल गांधी वहाँ बाबा साहेब अंबेडकर की समता और महात्मा गांधी की करुणा को लेकर एक समावेशी भारत की कल्पना को मजबूत कर रहे हैं।
“जब सत्ता जातियों में जनता को उलझाये हुए है, तब राहुल गांधी जोड़ने की राजनीति कर रहे हैं, यह संघर्ष सत्ता की कुर्सी का नहीं, भारत की आत्मा की रक्षा का है।”
*कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए संदेश
हर कांग्रेस कार्यकर्ता को समझना होगा कि राहुल गांधी केवल नेता नहीं, एक विचार हैं। यह विचार राजनीति को सेवा मानता है, और सत्ता को उत्तरदायित्व। अब हमें यह विचार अपने जीवन, आचरण और संगठन में उतारना होगा।
पिछले एक वर्ष में, राहुल गांधी ने संसद को फिर से जनता के सवालों की जगह बनाया है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि विपक्ष चुप रहने का नहीं, बोलने का मंच है।
जब लोकतंत्र की दीवारें कमजोर हो रही हों, तो एक विपक्ष का नेता ही संविधान का रक्षक बन सकता है और आज वह रक्षक राहुल गांधी हैं।
राहुल गांधी आज केवल विपक्ष नहीं बल्कि उस भारत की आवाज़ हैं जो सवाल पूछना चाहता है, और जवाब चाहता है। यही आज के भारत की सबसे बड़ी सच्चाई है।
“याद रखिए, राहुल गांधी का मूल मंत्र है: ‘डरो मत’।” और जैसा राहत इंदौरी ने कहा है:
“सभी का खून शामिल है यहाँ की मिट्टी में,
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़े ही है!”