विधायक-सांसद और मंत्री को अब टैलेंट चौकड़ी में दिखना बेहतर रहेगा
चापलूसी अस्त्र बनाम हुनर व योग्यता का अस्त्र
अगर पल भर को भी मैं, बे-ज़मीर बन जाता, यकीन मानिए मैं कब का अमीर बन जाता।
आधुनिक युग में राजनीतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में चापलूसों को हटाकर काबिल और टैलेंटेड साथियों की सेवाएं लेना समय की मांग है।
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

वैश्विक राजनीति में तेजी से बदलाव
गोंदिया — आज वैश्विक स्तर पर राजनीतिक क्षेत्र में बहुत तेज़ बदलाव दिखाई दे रहे हैं। एक जमाना था जब पंचायत समिति सदस्य से लेकर मंत्री तक चापलूसों से घिरे रहते थे और जी-हुजूरी में ही अपना कार्यकाल निकालते थे। मगर अब ऐसा देखा गया कि जैसे ही कोई नेता चापलूसी में डूबा दिखता है, हाईकमान तुरंत उसे बाहर का रास्ता दिखा देता है।
हमने इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया पर कई नेताओं के चापलूसी के किस्से देखे हैं, लेकिन अब जनता और हाईकमान का मिज़ाज बदल रहा है। अब नेताओं को ईमानदार, कर्मठ, योग्यता से परिपूर्ण, निष्पक्ष और कर्तव्यनिष्ठ लोगों के सानिध्य में रहना पड़ेगा।
यही वजह है कि हाल के वर्षों में हमने देखा, कई राज्यों में ऐसे व्यक्ति मुख्यमंत्री बनाए गए जो कभी चौथी कतार में बैठे रहते थे, और वर्तमान राष्ट्रपति महोदय को भी पहले बहुत कम लोग जानते थे। जनता ऐसा बदलाव चाहती है, ताकि भारत का सर्वांगीण विकास संभव हो सके।
स्थानीय प्रशासन और चापलूसी का माहौल
मैं, एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया निवासी, वर्षों से देख रहा हूं कि हमारी राइस सिटी गोंदिया में जब भी नए थानेदार, एसपी, एसडीओ या कलेक्टर पदभार संभालते हैं, कुछ समाज-ग्रुप उनका ज़बरदस्त स्वागत करते हैं और फोटो खिंचवाकर उसे सोशल मीडिया पर प्रचारित करते हैं।
असल में यह दिखाने की कोशिश होती है कि ‘देखो, हमारा कितना रुतबा और प्रभाव है’। लेकिन यह ट्रांसफर-पोस्टिंग तो नियमित प्रक्रिया है, अफसरों को अपनी जिम्मेदारी निभानी ही है। ऐसे में अधिकारियों को सतर्क रहना चाहिए कि कहीं इनके पीछे कोई स्वार्थ, चापलूसी, या गैरकानूनी व्यवसाय तो नहीं छुपा है?
ऐसा ही सजग दृष्टिकोण हमें समाज और आध्यात्मिक क्षेत्र में भी रखना होगा, ताकि चापलूस किस्म के लोग जो अपने स्वार्थ के लिए नेताओं और अधिकारियों के इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं, उन्हें जड़ से खत्म किया जा सके।
चापलूसी बनाम स्वाभिमान
भारत में ‘चापलूस’ शब्द हम अक्सर सुनते हैं, खासकर राजनीति, सामाजिक संगठनों और अन्य संस्थाओं में। जब कोई नेता या कार्यकर्ता किसी पार्टी या संस्था से अलग होता है, तो आमतौर पर यही बयान देता है कि पार्टी चापलूसों से घिर गई थी, मेरा वहां काम करना मुश्किल हो गया।
चापलूसी को हम झूठी प्रशंसा, मक्खनबाज़ी, खुशामद, दिखावटी आवभगत जैसे शब्दों से जोड़ सकते हैं। इसके विपरीत, जो व्यक्ति सच्चाई को बिना लागलपेट के कहता है, मुंहफट होता है, उसे स्वाभिमानी कहा जाता है, और वही असल में चापलूसी पर भारी पड़ता है।
हालांकि, कुछ क्षेत्रों में अभी भी चापलूसी को फायदेमंद माना जाता है। पारदर्शी और ईमानदार व्यक्तियों को ही उल्टा ‘चापलूस’ कहने का प्रयास किया जाता है — यह भी आज की एक बड़ी विडंबना है।
चापलूस संस्कृति का हर जगह फैलाव
चाहे क्लब हो, दफ्तर हो, यूनियन हो या घर — हर जगह चाटुकारिता का जाल फैला हुआ है। लोग इंसानियत को भुलाकर, चापलूसी की कला में पारंगत होते जा रहे हैं।
असल में देखा जाए तो चापलूसी भी एक कला ही है, जो स्वाभिमानी व्यक्ति कभी सीख ही नहीं सकता। इसके विपरीत, स्वाभिमानी होना एक महान कला है, जो किसी चापलूस में पैदा ही नहीं हो सकती।
चापलूसों की यह जमात सत्ता बदलते ही अपना खेमा बदल लेती है। ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ का सिद्धांत अपनाकर, वही चापलूस तुरंत नयी ताकतवर हस्ती के पीछे खड़े हो जाते हैं।
इनकी रीढ़ की हड्डी इतनी झुकी रहती है मानो उसमें फ्रैक्चर हो गया हो, और शर्म तो यह लोग सुबह-शाम गोलगप्पे के पानी में घोलकर पी जाते हैं।
स्वाभिमानी लोगों की विशेषताएं
स्वाभिमानी लोग आत्म-सम्मान के प्रति सजग रहते हैं, और अपने मूल्यों पर अडिग रहते हैं।
- वे अतीत से सीखते हैं, भविष्य की योजना बनाते हैं लेकिन वर्तमान में जीते हैं।
- कठिनाइयों से घबराते नहीं, समाधान खोजने में विश्वास रखते हैं।
- दूसरों की जरूरतों का सम्मान करते हैं, लेकिन अपने आत्म-सम्मान से समझौता नहीं करते।
- किसी भी प्रकार के हेरफेर का विरोध करते हैं, और अपने निर्णय पर विश्वास रखते हैं।
निष्कर्ष
अगर हम इस पूरे विश्लेषण को देखें तो साफ जाहिर होता है कि राजनीति में अब चापलूसों की चौकड़ी में रहने के दिन लद गए हैं। जनता पहले से कहीं ज्यादा चौकन्नी और सजग हो गई है। विधायक, सांसद, मंत्री और अन्य जनप्रतिनिधियों को अब चापलूसों की बजाय टैलेंटेड और योग्य साथियों की टीम में रहना पड़ेगा।
आधुनिक युग में राजनीतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक क्षेत्रों में चापलूसों को हटाकर योग्य और प्रतिभाशाली व्यक्तियों को आगे लाना ही देश और समाज की प्रगति का एकमात्र रास्ता है।
संकलनकर्ता, लेखक, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय चिंतक, कवि, संगीत माध्यम सीए (एटीसी), एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया (महाराष्ट्र)