जब हम किसी और पर आरोप लगाते हैं, तो हमको अपनी गलतियों पर आत्म-चिंतन, जवाबदेही पर भी विचार करना चाहिए।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

गोंदिया महाराष्ट्र-वैश्विक स्तरपर दुनियाँ के हर व्यक्ति को यह समझने वाली बात है कि हम जब एक उंगली किसी दूसरे पर उठाते हैं, तो तीन उंगलियां हमारी ओर उठती हैं-इस तथ्य को रेखांकित करना अत्यंत आवश्यक है। खुद को दूसरों से श्रेष्ठ आंकने की भूल से बचें।मैं एडवोकेट किशन भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र यह मानता हूं कि स्वयं को छोटा कहने वाला व्यक्ति ही वास्तव में सबसे श्रेष्ठ और गुणवान होता है।

 सृष्टि की सर्वोत्तम रचना: मानवीय जीव 

सृष्टिकर्ता ने इस खूबसूरत मानवीय जीव को रचते समय उसमें गुण और अवगुण रूपी दो गुलदस्ते भी जोड़े हैं। इसके साथ उसे 84 लाख योनियों में श्रेष्ठ बुद्धि प्रदान कर, भले-बुरे का चयन करने का अधिकार भी दिया। परंतु हम प्रायः अपने जीवन में अवगुण रूपी गुलदस्ते का चुनाव कर लेते हैं और अंत में दोष भी सृष्टिकर्ता को देते हैं कि हमारा जीवन नरक बन गया।

यह सत्य है कि “जब हम एक उंगली उठाते हैं, तो तीन उंगलियां हमारी ओर इशारा करती हैं”। इसका अर्थ यह है कि किसी पर आरोप लगाने से पहले हमें आत्मनिरीक्षण अवश्य करना चाहिए।

 निंदा का मनोविज्ञान और सामाजिक प्रभाव 

यह कहावत हमें याद दिलाती है कि जब हम दूसरों में दोष देखते हैं, तो कहीं न कहीं हमारे भीतर भी वे दोष होते हैं। दूसरों पर दोषारोपण करना, अक्सर अपनी कमजोरियों को छुपाने का प्रयास मात्र होता है।

  • निंदा से किसी की अच्छाई, सत्य, योग्यता को मिटाया नहीं जा सकता।
  • सूर्य की तरह तेजस्वी व्यक्ति पर चाहे कितने भी काले बादल छा जाएं, उसकी प्रखरता कम नहीं होती।
  • दूसरों में दोष ढूंढना, उनकी आलोचना करना, हमारे ही चित्त की दूषित वृत्तियों को प्रकट करता है।

महापुरुषों के विचार:

  • महात्मा गांधी ने कहा, “दूसरों के दोष देखने की बजाय उनके गुण ग्रहण करो।”
  • भगवान बुद्ध ने कहा, “जो दूसरों के अवगुणों की चर्चा करता है, वह अपने अवगुण प्रकट करता है।”
  • भगवान महावीर ने निंदा को “पीठ का मांस खाने” जैसा बताया।
  • ईसा मसीह ने कहा, “लोग दूसरों की आंखों का तिनका देखते हैं, पर अपनी आंख के शहतीर को नहीं।”
  • हेनरी फोर्ड ने कहा, “दूसरों के दृष्टिकोण को समझने की कोशिश करो, तभी सद्भावना बनेगी।”

 निंदा क्यों आकर्षित करती है? 

कहा गया है — “न विना परवादेन रमते दुर्जनोजन:”
अर्थात् दुष्ट व्यक्ति बिना निंदा किए आनंद नहीं ले सकता, जैसे कौआ हर रस का भोग करता है परंतु गंदगी के बिना तृप्त नहीं होता।

  • कुछ लोग निंदा को समय बिताने का साधन बनाते हैं।
  • कुछ लोग खुद को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए दूसरों की आलोचना करते रहते हैं।
  • परंतु निंदा करने से अंततः मन में अशांति ही आती है, जीवन दुःख से भर जाता है।

 समाधान और संकल्प 

 निंदा और दोषारोपण की बजाय गुणों को देखना, ग्रहण करना, बढ़ाना सीखें।
 दूसरों पर एक उंगली उठाने से पहले, अपनी तीन उंगलियों की ओर देखें।
 दूसरों से श्रेष्ठ होने की तुलना छोड़ें।
 स्वयं को छोटा समझने वाला व्यक्ति ही सबसे बड़ा गुणी होता है।
 सद्भावना, सहिष्णुता और आत्मचिंतन को जीवन का हिस्सा बनाएं।

अतः आइए, यह दृढ़ निश्चय करें —
“निंदा रूपी अवगुण को त्यागें,
गुणों को आत्मसात करें,
और दूसरों पर उंगली उठाने से पहले
स्वयं का निष्पक्ष मूल्यांकन करना सीखें।”

 संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक, कवि, संगीत माध्यम, सीए (एटीसी), एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र |

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