बिना दोष के बिजली चोरी का आरोप, न्यायालय में जीत के बाद उपभोक्ता को मिला इंसाफ

गुड़गांव, 6 जुलाई (अशोक)। बिजली निगम द्वारा उपभोक्ता पर गलत तरीके से लगाए गए जुर्माने का मामला जब अदालत पहुंचा, तो फैसला उपभोक्ता के पक्ष में गया। लेकिन बिजली निगम ने आदेश का पालन करने में भी टालमटोल की। अंततः अदालत की सख्ती और बैंक खाता व अधिकारियों की सैलरी अटैच होने के डर ने निगम को झुकने पर मजबूर कर दिया और 89,438 रुपये की जुर्माना राशि का भुगतान ब्याज सहित कुल 2,20,454 रुपये चेक द्वारा करना पड़ा।

यह मामला गुरुग्राम पुलिस लाइन निवासी सुरेखा का है, जिनके अधिवक्ता क्षितिज मेहता ने बताया कि 1 अक्टूबर 2018 को बिजली विभाग ने उनके मुवक्किल पर बिजली चोरी का झूठा केस बनाते हुए 89,438 रुपये का जुर्माना लगाया। उपभोक्ता ने स्पष्ट किया कि न तो कोई चोरी की गई थी, और न ही मीटर चेकिंग की कोई जानकारी दी गई थी, लेकिन विभाग ने उनकी एक न सुनी और 21 फरवरी 2019 के बिल में यह जुर्माना जोड़ दिया।

बिजली काटने की चेतावनी के चलते 15 अप्रैल 2019 को उपभोक्ता ने यह राशि जमा कराई, लेकिन 30 अप्रैल 2019 को उपभोक्ता ने अदालत का दरवाजा खटखटाया।

न्यायपालिका का फैसला उपभोक्ता के पक्ष में

  • सिविल जज हिमानी गिल की अदालत ने उपभोक्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए बिजली निगम को आदेश दिया कि वह 24% वार्षिक ब्याज सहित पूरी राशि लौटाए।
  • बिजली निगम ने इस आदेश को चुनौती देते हुए 28 अप्रैल 2023 को जिला एवं सत्र न्यायालय में अपील की, जिसे 20 सितंबर 2023 को अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश तरुण सिंघल की अदालत ने खारिज कर दिया।

एग्जीक्यूशन पिटीशन के बाद मानी हार

फैसले के बावजूद बिजली निगम ने राशि नहीं लौटाई, जिसके चलते 10 सितंबर 2024 को उपभोक्ता ने एग्जिक्यूशन पिटीशन दायर की। अदालत द्वारा बैंक अकाउंट और अधिकारियों की सैलरी अटैच करने की संभावना को देखते हुए निगम ने अंततः 2.20 लाख रुपये का चेक देकर मामला निपटाया।

अधिवक्ता क्षितिज मेहता ने बताया कि यह पहला मामला नहीं है जब बिजली निगम ने झूठे चोरी के केस बनाए हों — कई मामलों में अदालतें उपभोक्ताओं को न्याय दे चुकी हैं।

यह मामला न केवल बिजली उपभोक्ताओं के अधिकारों को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि सही तरीके से लड़ने पर न्याय अवश्य मिलता है। साथ ही, यह भी स्पष्ट करता है कि बिना पर्याप्त प्रमाण के लगाए गए जुर्माने या कार्यवाही पर अदालतें सख्त रुख अपनाने को तैयार हैं।

न्याय की जीत और गलत नीतियों पर अंकुश — यही लोकतंत्र की असली ताकत है।

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