दादा गुरु ब्रह्मलीन स्वामी अमरदेव और गुरु स्वामी कृष्ण देव को किया नमन

गुरु के व्यक्तित्व में समाहित होता है एक अलग ही गुरुत्वाकर्षण

आश्रम हरी मंदिर में श्रद्धापूर्वक मनाया गया गुरु पूर्णिमा महोत्सव

अनेक श्रद्धालुओं को महामंडलेश्वर धर्मदेव के द्वारा दीक्षा प्रदान की गई

फतह सिंह उजाला 

पटौदी । गुरु शब्द जितना सुनने और पढ़ने में छोटा है । इसका दायित्व और महत्व बहुत ही विस्तार लिए हुए हैं । गुरु का वर्णन करने के लिए ब्रह्मांड छोटा और सागर के बराबर रोशनी भी कम पड़ सकती है। गुरु बनाना किसी के लिए भी सहज हो सकता है, लेकिन किसी के लिए गुरु बनना और गुरु का दायित्व निर्वहन करना सरल कार्य नहीं हो सकता। गुरु पर हर शिष्य और श्रद्धालुओं की श्रद्धा, आस्था और नजरे हर समय बनी रहती है । यह बात गुरुवार को गुरु पूर्णिमा महोत्सव के मौके पर आश्रम हरी मंदिर के अधिष्ठाता महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव महाराज ने श्रद्धालुओं के बीच कही।

इससे पहले महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव महाराज ने संस्था के आदि संस्थापक और अपने दादा गुरु ब्रह्मलीन स्वामी अमरदेव तथा गुरु महाराज ब्रह्मलीन स्वामी कृष्णदेव की प्रतिमा पर श्रद्धा पूर्वक तिलक कर और माल्यार्पण करते हुए नमन किया, नमन कर आशीर्वाद लिया। अपने दादा गुरु और गुरु के द्वारा दी गई शिक्षा और दिखाए गए मार्ग को स्मरण करते हुए उनका मन श्रद्धा भाव से अभीभूत हो गया।इस मौके प्रकांड विद्वानों के द्वारा विधि विधान से मंत्र उच्चारण के बीच संस्था के आदि संस्थापक दादा गुरु और गुरु की स्मृति में धार्मिक अनुष्ठान सहित भजन कीर्तन भी किए गए।

गुरु पूर्णिमा के पर्व पर महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव महाराज का आशीर्वाद लेने के लिए भाजपा अनुसूचित मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष एवं पटौदी के पूर्व विधायक एडवोकेट सत्य प्रकाश विशेष रूप से पहुंचे। इसी मौके पर महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव महाराज के शिष्य अभिषेक बंगा, तिलक राज, संजीव, कपिल, गोविंद के द्वारा माल्यार्पण कर गुरु महाराज महामंडलेश्वर धर्मदेव के नतमस्तक होकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया गया। इस मौके पर विजय शास्त्री, एडवोकेट सुरेंद्र धवन सहित और भी अनेक श्रद्धालु मौजूद रहे।

महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव महाराज ने बताया पौराणिक कथा और मान्यता के मुताबिक भगवान शिव को ही प्रथम गुरु अथवा आदि गुरु माना गया है। भगवान शिव के द्वारा सभ्यता का प्रसार किया गया। विभिन्न ग्रंथों  में भी शिव को आदि देव और आदिनाथ भी बताया गया है । इसका भावार्थ यही है कि पहले गुरु और पहले स्वामी भगवान शिव ही मान्य है। इसी कड़ी में उन्होंने कहा वास्तव में गुरु श्रेष्ठ वही है, जो की भौतिक संसार में रहते हुए अध्यात्म का रास्ता दिखाते हुए परमपिता परमेश्वर को प्राप्त करने का ज्ञान उपलब्ध करवाए। यह ज्ञान प्राप्त होने के बाद ज्ञान प्राप्त करने वाला निश्चित रूप से भौतिक संसार की सुख, सुविधा, दुख इत्यादि से बहुत अलग हो जाता है । 

इसी कड़ी में माता-पिता को भी गुरु कहा गया है। माता-पिता बच्चों को बचपन में व्यावहारिक ज्ञान देते हैं । इसी प्रकार से वेदव्यास को भी गुरु माना गया है। इसी कड़ी में गुरु नानक देव जी को भी गुरु की मान्यता दी गई है। उन्होंने कहा गुरु जो कुछ भी क्रिया करें, उसका अनुसरण बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए । गुरु क्या क्रिया कर रहा है, उसका क्या लक्ष्य है और क्योंकि जा रही है यह केवल गुरु ही जानता है। जो क्रिया गुरु के द्वारा करने के लिए कहा जाए उसे क्रिया को गुरु के मार्गदर्शन और दिशा निर्देश के मुताबिक ही करना चाहिए। गुरु पूर्णिमा पर्व के मौके पर दूर दराज के क्षेत्र से पहुंचे भक्तों और श्रद्धालुओं के द्वारा गुरु महाराज महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव से दीक्षा भी प्राप्त की गई । 

उन्होंने कहा जीवन में संतोष अथवा सब्र होना बहुत जरूरी है । परमात्मा के द्वारा जो कुछ भी दिया गया है , उसे सहर्ष स्वीकार करते हुए परमात्मा की सबसे बड़ी अनुकंपा अथवा कृपा मान लेना चाहिए। उन्होंने अभिभावकों का आह्वान किया कि बच्चों को भारतीय सनातन संस्कृति के साथ हमारे अपने विभिन्न धार्मिक ग्रंथ, गीता, रामायण, वेद ,पुराणों का भी अध्ययन आवश्यक करवाना चाहिए। ऐसा किया जाने से युवा वर्ग में सात्विक विचार लंबे समय तक बने रहेंगे।

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