
ट्रंप की जल्दबाजी: अमेरिकी फर्स्ट की आड़ में वैश्विक टकराव
ट्रंप जब से राष्ट्रपति बने हैं, अपनी नीतियों व बयानों से सुर्खियों में रहे हैं
ट्रंप ने अमेरिकी फर्स्ट के लिए कमर कसी- दुनियाँ के देशों की व्यापार नीति फंसी-ब्रिक्स देशों, यूरोपीय यूनियन, अफ्रीकी देशों,ग्लोबल साउथ, छटनी के लिए घेराबंदी कसी
-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

गोंदिया महाराष्ट्र-वैश्विक स्तर पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जब से सत्ता में आए हैं, अपनी आक्रामक नीतियों और विवादास्पद बयानों से चर्चा में बने रहे हैं। उन्होंने ‘अमेरिका फर्स्ट’, ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ और अवैध प्रवासियों के खिलाफ कठोर रुख जैसे नारों को मूर्त रूप देने की ठान ली। लेकिन इन नीतियों को लागू करने में जो जल्दबाज़ी और टकराव की रणनीति अपनाई गई, वह अब अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने की स्थिति में ले जा रही है।
टैरिफ वार: चीन से लेकर यूरोप और अफ्रीका तक आक्रोश
ट्रंप द्वारा शुरू किया गया टैरिफ वार अब वैश्विक व्यापार युद्ध का रूप लेता दिख रहा है। यूरोपीय यूनियन, ब्रिक्स देशों, अफ्रीकी राष्ट्रों और ग्लोबल साउथ जैसे संगठन और देश ट्रंप की नीति से प्रभावित हुए हैं। हाल ही में ट्रंप ने 1 अगस्त 2025 से मैक्सिको और यूरोपीय यूनियन पर 30% टैरिफ लागू करने का ऐलान कर दिया है, जिससे स्थिति और भी विस्फोटक हो गई है।
ब्रिक्स सम्मेलन के संयुक्त बयान में भी अमेरिका की आलोचना करते हुए कहा गया, “एकतरफा टैरिफ और गैर-टैरिफ उपायों के बढ़ने से वैश्विक व्यापार में असंतुलन और अनिश्चितता पैदा हो रही है।” यह बयान सीधे तौर पर ट्रंप की व्यापारिक नीति की निंदा करता है।
अफ्रीकी देशों से अपमानजनक व्यवहार: अमेरिका की साख पर सवाल
व्हाइट हाउस में अफ्रीकी देशों के राष्ट्र प्रमुखों के साथ बैठक के दौरान ट्रंप का व्यवहार भी विवादों में रहा। उन्होंने मॉरिटानिया के राष्ट्रपति को बार-बार बात जल्दी खत्म करने का इशारा किया, जिससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका की छवि को ठेस पहुंची।
अमेरिकी विदेश विभाग में छंटनी: आंतरिक असंतुलन भी बढ़ा
ट्रंप की नीतियों का असर केवल अंतरराष्ट्रीय मोर्चे तक सीमित नहीं रहा। 1,300 से अधिक अमेरिकी विदेश विभाग के कर्मचारियों की छंटनी और शरणार्थी कार्यालय के लगभग सभी कर्मचारियों को हटाया जाना यह दर्शाता है कि उनकी प्रशासनिक रणनीति अंदरूनी मोर्चे पर भी अस्थिरता फैला रही है।
डॉलर के वर्चस्व पर भी चुनौती: ब्रिक्स की करंसी पहल से घबराहट
ब्रिक्स देशों द्वारा साझा करेंसी की योजना और डॉलर के विकल्प की तलाश ने ट्रंप को और अधिक आक्रामक बना दिया। ट्रंप ने सार्वजनिक रूप से धमकी दी थी कि जो देश डॉलर को चुनौती देंगे, उन पर 100% टैरिफ लगाया जाएगा। लेकिन यह बयान ब्रिक्स को कमजोर करने की बजाय उनके बीच एकजुटता का कारण बन गया।
नोबेल शांति पुरस्कार की राह में रोड़े?
ऐसे माहौल में यह सवाल उठना लाज़मी है कि क्या ट्रंप वास्तव में नोबेल शांति पुरस्कार के योग्य हैं? जिस प्रकार से उन्होंने टैरिफ वार, दबाव की राजनीति और अलोकतांत्रिक व्यवहार को अपनाया है, उससे उनकी ‘शांति’ की छवि धूमिल होती जा रही है। उनकी नीतियां न केवल अमेरिका को बल्कि संपूर्ण वैश्विक व्यापार और कूटनीतिक संतुलन को नुकसान पहुँचा रही हैं।
निष्कर्ष: विश्व में अलग-थलग पड़ता अमेरिका?
उपरोक्त विवरणों के आधार पर स्पष्ट है कि ट्रंप के टैरिफ वार ने अमेरिका की छवि को कमजोर किया है। उनकी जल्दबाजी और टकराव की नीति से न केवल अमेरिका के सहयोगी देशों में नाराज़गी है, बल्कि शांति पुरस्कार जैसी गरिमामयी उपलब्धियों की संभावनाएं भी क्षीण हो गई हैं।
ट्रंप के लिए यह समय आत्ममंथन का है—क्या ‘अमेरिका फर्स्ट’ के नाम पर वह दुनिया से दुश्मनी मोल ले रहे हैं?
– संकलनकर्ता, लेखक:क़ानूनी विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक, कवि, संगीत माध्यम सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया, महाराष्ट्र