संसद में हंगामा- एसआईआर प्रक्रिया मतदाता सूची से अपात्र व्यक्तियों को हटाकर चुनाव में पारदर्शिता बढ़ाना है जो सभी राज्यों में होना ज़रूरी 

संसद के पिछले कुछ सत्रों में मतदाताओं सहित पूरी दुनियाँ देख रही है,सबसे बड़े लोकतंत्र की गरिमा कैसे तार तार हो रही है

– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

गोंदिया महाराष्ट्र-भारत में संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से 21 अगस्त 2025 तक चल रहा है, पर चौथे दिन भी कोई काम नहीं हो सका। भारी हंगामे की वजह से संसद की कार्यवाही स्थगित हो रही है। विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया को लेकर विपक्ष का कहना है कि यह एक चुनावी चाल है, जबकि सरकार इसे मतदाता सूची की शुद्धि और पारदर्शिता की दिशा में बड़ा कदम बता रही है।

 हंगामे की कीमत: हर मिनट 2.5 लाख, चार दिनों में 23 करोड़ का नुकसान
संसद का हर मिनट चलना करदाताओं की जेब पर भारी पड़ता है। एक अनुमान के मुताबिक संसद का एक मिनट = ₹2.5 लाख।

  • लोकसभा में 1026 मिनट का नुकसान = ₹12.83 करोड़
  • राज्यसभा में 816 मिनट का नुकसान = ₹10.2 करोड़
    कुल नुकसान = ₹23.03 करोड़, जो जनता की मेहनत की कमाई है।

 विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR): क्या यह लोकतंत्र की मजबूती का उपाय या विपक्ष की शिकायत जायज?
विपक्ष का आरोप है कि यह एक पक्षपाती और लक्ष्यभेदी कवायद है। वहीं, चुनाव आयोग के अनुसार, यह एक नियमित प्रक्रिया है जिससे मृत, स्थानांतरित और डुप्लिकेट मतदाताओं को सूची से हटाया जा सके।

बिहार के SIR आंकड़े:

  • 20 लाख मृत मतदाता
  • 28 लाख स्थानांतरित मतदाता
  • 7 लाख नाम एक से अधिक स्थानों पर
  • 1 लाख का पता नहीं
     कुल नाम हटाए जाने की संभावना: 56 लाख

 विपक्ष की आपत्ति: संसद से लेकर विधानसभा तक विरोध प्रदर्शन
बिहार में RJD और INDIA ब्लॉक के नेता काले कपड़े पहनकर विरोध कर रहे हैं। दिल्ली तक यह सियासी आग फैल चुकी है। विपक्ष की मांग है कि इस प्रक्रिया पर संसद में खुली बहस हो। परंतु सरकार का रुख है कि चुनाव आयोग एक स्वतंत्र निकाय है, इसलिए संसद में इस पर चर्चा नहीं की जा सकती।

चुनाव आयोग की प्रक्रिया और मतदाताओं के अधिकार
1 अगस्त को ड्राफ्ट वोटर लिस्ट प्रकाशित होगी। जिनका नाम सूची से हटेगा, उन्हें आपत्ति और दावे दाखिल करने का एक महीने का समय मिलेगा।

 यानी, 56 लाख लोगों के पास अपने मतदाता होने का प्रमाण देकर नाम वापस लाने का अवसर रहेगा।

 अभी तक 98.01% मतदाता सत्यापित और 90.89% फॉर्म डिजिटाइज हो चुके हैं।

संसद में संवाद या सड़क पर संघर्ष?
संसद को लोकतंत्र का मंदिर कहा जाता है, पर विडंबना यह है कि संवाद के बजाय अराजकता बढ़ती जा रही है। विपक्ष बहस चाहता है, सरकार जिम्मेदारी चुनाव आयोग पर डाल रही है।

निष्कर्ष: पारदर्शिता का प्रयास या लोकतंत्र के साथ छेड़छाड़?
वोटर लिस्ट की शुद्धता और पारदर्शिता आवश्यक है, लेकिन इस प्रक्रिया में राजनीतिक भेदभाव या पक्षपात लोकतंत्र को आहत कर सकता है। ऐसे में जरूरी है कि सभी पक्ष जनहित में बैठकर पारदर्शिता और निष्पक्षता की दिशा में मिलकर काम करें, ताकि जनता का लोकतंत्र पर विश्वास बना रहे।

संकलनकर्ता लेखक:क़ानून विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक, कवि, संगीत माध्यम सीए (ATC),एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र

Share via
Copy link