मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी पर वादाखिलाफी का आरोप, वेदप्रकाश विद्रोही बोले – “खट्टर की कठपुतली साबित हुए”

गुरुग्राम, 2 अगस्त 2025 | हरियाणा की राजनीति में इन दिनों एक बड़ा सवाल गूंज रहा है—क्या मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी अपनी भूमिका में स्वतंत्र हैं या पूर्व मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर की परछाई से बाहर नहीं निकल पाए? यह सवाल तब और तीखा हो गया जब सामाजिक कार्यकर्ता एवं ग्रामीण भारत संस्था के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही ने मुख्यमंत्री पर तीखे आरोप लगाए।
■ 27 प्रतिशत आरक्षण का अधूरा वादा
वेदप्रकाश विद्रोही ने अपनी टिप्पणी में याद दिलाया कि अगस्त 2024 में मुख्यमंत्री बनने के बाद नायब सिंह सैनी ने घोषणा की थी कि हरियाणा में प्रथम व द्वितीय श्रेणी की सरकारी नौकरियों में OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिए आरक्षण को 15 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया जाएगा। यह मांग वर्ष 1993 के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के आधार पर लम्बे समय से लंबित है।
लेकिन एक वर्ष बीतने के बाद भी न तो विधानसभा में कोई विधेयक लाया गया, और न ही प्रशासनिक आदेश जारी हुए। विद्रोही का आरोप है कि यह वादा सिर्फ चुनावी रणनीति का हिस्सा था, और इसे क्रियान्वित करने की कोई वास्तविक मंशा सरकार की नहीं रही।
■ खट्टर पर भी तीखे आरोप: “संघ की मनुवादी सोच के प्रतीक”
वेदप्रकाश विद्रोही ने सिर्फ सैनी को नहीं, बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर को भी निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि खट्टर संघ की “मनुवादी हिन्दुत्व सोच” के कट्टर स्वयंसेवक हैं और उनका पिछड़ा वर्ग एवं दलित समुदाय के प्रति नजरिया हमेशा संकुचित रहा है।
विद्रोही ने उदाहरण देते हुए बताया कि खट्टर सरकार ने वर्ष 2020 में पिछड़ा वर्ग की क्रीमीलेयर सीमा को 8 लाख रुपये से घटाकर 6 लाख रुपये कर दिया था, जिससे हजारों OBC अभ्यर्थी आरक्षण लाभ से वंचित हो गए थे। उन्होंने आरोप लगाया कि यह फैसला पिछड़ा वर्ग को योजनाबद्ध तरीके से कमजोर करने की मंशा से लिया गया था।
■ चुनावी लाभ के लिए “मुख्यमंत्री सैनी” प्रयोग?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2024 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनाना भाजपा की रणनीति का हिस्सा था। उद्देश्य था—हरियाणा के ओबीसी मतदाताओं में यह संदेश देना कि भाजपा उनके प्रतिनिधित्व को महत्व देती है।
लेकिन अब जब एक साल बीत चुका है और आरक्षण की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हुई, तब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या सैनी की नियुक्ति सिर्फ प्रतीकात्मक थी? क्या भाजपा ने उन्हें केवल “चुनावी चेहरा” बनाकर इस्तेमाल किया?
■ अब अग्निपरीक्षा की घड़ी
वेदप्रकाश विद्रोही का कहना है कि अब नायब सिंह सैनी की अग्निपरीक्षा है। वे या तो अपने समाज के साथ किए गए वादे को निभाकर इतिहास रच सकते हैं, या फिर खट्टर और केंद्र की इच्छा पर चलकर एक कठपुतली मुख्यमंत्री के रूप में अपनी पहचान दर्ज कराएंगे।
■ सामाजिक संकेत: OBC वर्ग में असंतोष
हरियाणा में ओबीसी वर्ग लंबे समय से अपने लिए न्याय और हिस्सेदारी की मांग करता रहा है। राज्य की आबादी में इनकी हिस्सेदारी लगभग 30-35% मानी जाती है, जबकि सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व काफी कम है। अगर सरकार अपने ही मुख्यमंत्री के आश्वासन को नजरअंदाज करती है, तो यह वर्ग आगामी चुनावों में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
हरियाणा में OBC आरक्षण विवाद – एक नजर में
???? वर्तमान आरक्षण स्थिति
- हरियाणा में OBC आरक्षण (प्रथम व द्वितीय श्रेणी की सरकारी नौकरियों में): 15%
- केंद्र सरकार में OBC आरक्षण: 27% (1993 के सुप्रीम कोर्ट निर्णय अनुसार)
???? मुख्यमंत्री सैनी का वादा
- अगस्त 2024: नायब सिंह सैनी ने पिछड़ा वर्ग को 27% आरक्षण देने का आश्वासन दिया
- अगस्त 2025 तक कोई कार्यवाही नहीं
???? क्रीमीलेयर सीमा विवाद
- 2020 में 8 लाख रुपये से घटाकर 6 लाख की गई सीमा – विरोध हुआ
- 2024 में विधानसभा चुनाव से पूर्व फिर से 8 लाख रुपये की गई – राजनीतिक कदम माना गया
???? पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या (अनुमानित)
- हरियाणा में OBC समुदाय की भागीदारी: 30–35%
???? प्रमुख आरोप
- वेदप्रकाश विद्रोही का दावा: “सैनी खट्टर और भाजपा नेतृत्व की कठपुतली बने हुए हैं”
- भाजपा पर पिछड़ा वर्ग को केवल चुनावी मोहरा बनाने का आरोप
???? राजनीतिक संदेश
- क्या OBC समुदाय को सिर्फ चेहरा दिया गया, हक नहीं?
निष्कर्ष
वेदप्रकाश विद्रोही के आरोप केवल व्यक्तिगत असंतोष नहीं, बल्कि उस गहरी राजनीतिक विसंगति को उजागर करते हैं जो ‘सत्ता में भागीदारी बनाम सत्ता में प्रतीकात्मकता’ के बीच झूल रही है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के लिए यह क्षण निर्णायक है। क्या वे अपने समुदाय के लिए ठोस कदम उठाएंगे या सत्ता की चुप्पी का हिस्सा बने रहेंगे—यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।