सरकार के दो मुख्य स्तंभों का मानसून सत्र में राष्ट्रपति से मिलना कोई बड़ा फैसला,बड़ा बिल,जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा या फिर उपराष्ट्रपति चुनाव का मामला?
सरकार के दो सर्वोच्च दिग्गजों का राष्ट्रपति से एक ही दिन अलग-अलग मिलना, किसी बड़े महत्वपूर्ण मुद्दे की ओर इशारा करता है
9 सितंबर को उपराष्ट्रपति चुनाव, मानसून सत्र के लंबित बिल, जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा—किसी बड़े फैसले की दस्तक?
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

अचानक राष्ट्रपति भवन की ओर बढ़े सत्ता के दो शीर्ष स्तंभ
रविवार, 3 अगस्त 2025 की दोपहर को राजधानी दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में उस समय खलबली मच गई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एक ही दिन, अलग-अलग समय पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की। संसद का मानसून सत्र जहां जोर-शोर से चल रहा है, वहीं राष्ट्रपति भवन में इन उच्च स्तरीय मुलाकातों ने अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है।
क्या यह कोई बड़ा संवैधानिक फैसला है?
क्या जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की तैयारी है?
या फिर उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर अंतिम मुहर लग चुकी है?
राजनीतिक गलियारों में तेज हुईं चर्चाएं
भारत जैसे लोकतंत्र में जब सत्ता के दोनों सर्वोच्च कार्यकारी स्तंभ राष्ट्रपति से अचानक भेंट करें, वो भी संसद सत्र के दौरान, तो यह सामान्य घटना नहीं मानी जाती। ऐसे समय में यह कयास लगना स्वाभाविक है कि—
- या फिर जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन को लेकर कोई बड़ा कदम उठाया जा सकता है।
- कोई महत्वपूर्ण बिल संसद में लाया जा सकता है।
- विपक्ष के विरोध के बावजूद उसे पारित करने की रणनीति बनाई जा रही है।
- उपराष्ट्रपति पद को लेकर अंदरूनी सहमति बन चुकी है।
संदर्भ: संसद का मानसून सत्र और लंबित मुद्दे
21 जुलाई से 21 अगस्त 2025 तक चलने वाला मानसून सत्र पहले ही बेहद गरम माहौल में चल रहा है।
- ऑपरेशन सिंदूर पर 32 घंटे की लंबी बहस
- बिहार के एसआईआर प्रकरण को लेकर विपक्ष का हंगामा
- कई बड़े विधेयक लंबित हैं
- संसद में बार-बार स्थगन
इन सबके बीच उपराष्ट्रपति पद का चुनाव 9 सितंबर 2025 को होना भी तय हो चुका है। ऐसे में 3 अगस्त की घटनाएं एक व्यापक रणनीतिक परिप्रेक्ष्य में देखी जा रही हैं।
राष्ट्रपति भवन से कोई स्पष्ट बयान नहीं, लेकिन संकेत गहरे
राष्ट्रपति भवन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ (पूर्व ट्विटर) पर केवल इतना साझा किया कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने राष्ट्रपति से शिष्टाचार मुलाकात की। लेकिन जानकारों का मानना है कि इस मुलाकात को ‘शिष्टाचार’ मान लेना, घटनाओं के गहन विश्लेषण को दरकिनार करना होगा।
उपराष्ट्रपति चुनाव: संख्या बल और संभावनाएं
9 सितंबर को मतदान तय
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के 21 जुलाई को इस्तीफे के बाद अब यह पद रिक्त हो गया है। 7 अगस्त को चुनाव आयोग अधिसूचना जारी करेगा।
संसद में संख्या बल का गणित
- कुल सांसद (लोकसभा + राज्यसभा): 782
- उपराष्ट्रपति बनने के लिए आवश्यक मत: 391
- एनडीए के पास समर्थन:
- लोकसभा में 293
- राज्यसभा में 129
- कुल समर्थन: 422 सांसद
संभावित जोखिम
हालांकि एनडीए का बहुमत स्पष्ट है, लेकिन इस बार केंद्र सरकार तीन पहियों पर निर्भर है। ऐसे में अन्य घटकों की सहमति जरूरी है। यदि क्रॉस-वोटिंग हुई तो विपक्ष के उम्मीदवार के जीतने की सैद्धांतिक संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
विपक्ष की रणनीति और शशि थरूर का बयान
कांग्रेस सांसद डॉ. शशि थरूर ने कहा, “यह साफ है कि जिस उम्मीदवार को सत्ता पक्ष नामित करेगा, वही अगला उपराष्ट्रपति बनेगा। हमें उम्मीद है कि केंद्र विपक्ष से भी विचार-विमर्श करेगा—लेकिन यह केवल एक उम्मीद है।”
थरूर के मुताबिक उपराष्ट्रपति चुनाव का स्वरूप राष्ट्रपति चुनाव से अलग होता है—इसमें केवल संसद के दोनों सदनों के सदस्य मतदान करते हैं, जिससे संख्या बल पहले ही स्पष्ट हो जाता है।
उपराष्ट्रपति बनने की प्रक्रिया और योग्यता
- भारतीय नागरिक होना चाहिए
- कम से कम 35 वर्ष की आयु
- राज्यसभा सदस्य बनने की योग्यता
- नामांकन में 15,000 रुपये की जमानत राशि
- 1/6 वोट न मिलने पर जमानत जब्त
- मतदान में प्राथमिकता प्रणाली का उपयोग
- गिनती में प्राथमिकता क्रम के अनुसार मतों का आवंटन
क्या जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने वाला है?
एक और गहरा संकेत यह है कि सरकार जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन और पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने के विषय में कोई निर्णायक कदम उठा सकती है। यदि ऐसा होता है तो इसे ऐतिहासिक और संवैधानिक दृष्टिकोण से बड़ी घटना माना जाएगा।
अतःअगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि एक संकेत, कई सियासी परतें
प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का एक ही दिन राष्ट्रपति भवन में जाना, वो भी संसद सत्र के दौरान, साधारण घटना नहीं मानी जा सकती। यह घटनाक्रम स्पष्ट रूप से किसी बड़े निर्णय की ओर संकेत करता है।
- क्या उपराष्ट्रपति का नाम तय हो चुका है?
- क्या जम्मू-कश्मीर का भविष्य बदलने वाला है?
- क्या कोई विशेष सत्र बुलाया जाएगा?
- या फिर संसद में किसी बड़े विधेयक को ध्वनिमत से पारित करने की रणनीति बनी है?
इन सभी सवालों का उत्तर आने वाले कुछ दिनों में सामने आ सकता है, लेकिन इतना तय है कि राजनीतिक परिदृश्य अब बेहद संवेदनशील हो चुका है।
विशेष टिप्पणी
“सत्ता के शिखरों से जब इस तरह के संकेत मिलते हैं, तब लोकतांत्रिक दृष्टिकोण से सजग नागरिकों और विश्लेषकों का दायित्व होता है कि वे सतर्क रहें, क्योंकि नीति निर्माण के हर कदम का समाज, संविधान और जनजीवन पर प्रभाव पड़ता है।”
लेखक परिचय : एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं विधि विशेषज्ञ, स्तंभकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक, कवि गोंदिया, महाराष्ट्र |