प्रकृति ने मानव को जीवन जीने के लिए आवश्यक सभी संसाधन दिए-मानव ने अपने स्वार्थवश इन संसाधनों का दोहन किया?
धराली व किन्नौर में आपदा से तबाही- क्या यह आपदाएं प्राकृतिक चक्र है? या इसके पीछे कहीं न कहीं मानवीय हस्तक्षेप की भूमिका भी है?
-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

गोंदिया महाराष्ट्र- वैश्विक स्तरपर प्रकृति और मानव का रिश्ता अनादिकाल से रहा है। प्रकृति ने मानव को जीवन जीने के लिए जल, वायु, मृदा, खनिज, वन और जैविक विविधता जैसे सारे जरूरी संसाधन उपलब्ध कराए। परंतु जैसे-जैसे मानव का विकास हुआ, उसने इन संसाधनों का अंधाधुंध दोहन करना शुरू कर दिया। आज जब धरती जलवायु परिवर्तन, ग्लेशियरों के पिघलने, असमय बाढ़, सूखा, भूकंप और भूस्खलन जैसी आपदाओं से जूझ रही है, तो यह सवाल उठता है—क्या यह केवल प्राकृतिक घटनाएं हैं या इसके पीछे मानव का स्वार्थ, लालच और लापरवाही भी जिम्मेदार है?
धराली और किन्नौर: आपदा की आड़ में चेतावनी
उत्तराखंड का धराली गांव और हिमाचल प्रदेश का किन्नौर, हाल ही में भारी तबाही का शिकार बने हैं। 6 अगस्त 2025 को बादल फटने, बाढ़ और भूस्खलन की घटनाओं ने इन क्षेत्रों को पूरी तरह तबाह कर दिया। अनेक गांव मलबे में दब गए, सड़कें बह गईं और जन-धन का भारी नुकसान हुआ।
मुख्य सवाल यह है—क्या यह केवल प्राकृतिक घटनाएं थीं? या यह चेतावनी है उस मानवीय हस्तक्षेप की, जिसने इन शांत वनों और पर्वतों को छेड़ा?
क्या केवल प्रकृति दोषी है?
नहीं!
अगर हम हालिया आपदाओं का विश्लेषण करें, तो स्पष्ट होता है कि यह केवल प्राकृतिक चक्र नहीं बल्कि मानव द्वारा किए गए निम्नलिखित हस्तक्षेपों का परिणाम है:
- अंधाधुंध निर्माण और सड़क परियोजनाएं
- बिना पर्यावरणीय मूल्यांकन के सड़कें और सुरंगें बनाई जा रही हैं।
- डायनामाइट से पहाड़ उड़ाकर हाईवे और चारधाम मार्ग जैसे निर्माण हो रहे हैं।
- इससे पर्वतीय मिट्टी की मजबूती खत्म हो रही है, जिससे भू-स्खलन आसान हो जाता है।
- जलविद्युत परियोजनाएं और नदियों का प्रवाह
- नदियों पर बने बांधों से पारिस्थितिक तंत्र अस्त-व्यस्त हो गया है।
- किन्नौर और उत्तरकाशी जैसे क्षेत्रों में नदियों के मूल स्वभाव से छेड़छाड़ की गई।
- पेड़ों की कटाई और शहरीकरण
- हजारों पेड़ काटे जा रहे हैं और उनकी जगह कंक्रीट के जंगल उग रहे हैं।
- इससे ऑक्सीजन घट रही है, मिट्टी की पकड़ कमजोर हो रही है और जल स्तर नीचे जा रहा है।
- अवैज्ञानिक पर्यटन विस्तार
- धराली और किन्नौर अब टूरिज्म हॉटस्पॉट बन चुके हैं।
- होटल, वाहन, जैविक अपशिष्ट और जनसंख्या दबाव ने स्थानीय पारिस्थितिकी को तोड़ा है।
- खनिज और अवैध खनन
- किन्नौर में अवैध खनन ने भूगर्भीय अस्थिरता बढ़ाई है।
- स्थानीय लोगों की चेतावनियों के बावजूद प्रशासनिक चुप्पी बनी रही।
धराली-किन्नौर आपदा: सरकार और जनता की स्थिति
धराली की तबाही के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने राहत-बचाव कार्यों की समीक्षा की और सेना सहित सभी एजेंसियों को तैनात किया। 190 से ज्यादा लोगों को सुरक्षित निकाला गया, मगर मलबे में कई गांवों का अस्तित्व मिट गया।
किन्नौर की स्थिति भी कम गंभीर नहीं रही। पहाड़ धंसे, सड़कें टूटीं और नदियों का जलस्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया। ये घटनाएं इस ओर स्पष्ट इशारा करती हैं कि मानव द्वारा निर्मित विकास मॉडल ने प्राकृतिक संतुलन को असंतुलित कर दिया है।
गंभीर परिणाम: जो आंखें खोलते हैं
- जमीन की पकड़ कमजोर हो रही है, जिससे भूस्खलन तीव्र हो गया है।
- पानी का स्तर लगातार गिर रहा है, क्योंकि जलस्रोत नष्ट हो रहे हैं।
- पारिस्थितिक असंतुलन स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है—जैव विविधता कम हो रही है।
- बाढ़, भूकंप, भूस्खलन और तूफान अब सामान्य घटनाएं बन गई हैं।
वैज्ञानिक चेतावनियां और वैश्विक संकेत
- ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना – समुद्र का जलस्तर हर वर्ष 1.5 मिमी बढ़ रहा है।
- धरती की धुरी खिसक रही है – मानव द्वारा खनन और बोरिंग के कारण भूगर्भीय असंतुलन बना है।
- कार्बन डाइऑक्साइड में वृद्धि – पेड़ कटने से CO₂ स्तर तेजी से बढ़ रहा है।
- ऑक्सीजन की कमी – जंगल खत्म हो रहे हैं और सांस लेने की प्राकृतिक व्यवस्था संकट में है।
- जल संकट – अंधाधुंध बांध निर्माण, रेत खनन और जल अपव्यय इसके बड़े कारण हैं।
विकास का अंधा मॉडल: आत्मघाती रास्ता?
विकास होना चाहिए, लेकिन कैसा?
आज का विकास लालच और वोट बैंक पर आधारित है। पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन के बिना सड़क, सुरंग, होटल और खनन की इजाजत देना इस आपदा को आमंत्रण देना है।
उत्तराखंड के चार धाम प्रोजेक्ट इसका बड़ा उदाहरण है जहां पर्यावरणविदों की चेतावनियों को नजरअंदाज कर सड़कों को चौड़ा किया गया और पहाड़ों को कमजोर कर दिया गया।
समाधान की ओर कुछ ठोस कदम
- सतत विकास नीति – ऐसा विकास जो प्रकृति और मानव दोनों के अनुकूल हो।
- पर्यावरण शिक्षा – नागरिकों और नीति-निर्माताओं को जागरूक बनाना।
- सख्त पर्यावरणीय कानून – अवैध खनन, अंधाधुंध निर्माण पर कड़ी कार्रवाई।
- स्थानीय लोगों की भागीदारी – विकास कार्यों में स्थानीय समुदाय की राय अनिवार्य हो।
- हरित पर्यटन नीति – बिना पारिस्थितिकी को क्षति पहुंचाए पर्यटन विकास करना।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन करें इसका विशेषण करें तो हम पाएंगे कि,धरती हमारी मां है, लेकिन हमने उसे शोषण की वस्तु बना दिया है। धराली और किन्नौर की त्रासदियां कोई पहली नहीं हैं, न ही आखिरी होंगी यदि हमने अपनी नीतियों और मानसिकता में बदलाव नहीं किया। जलवायु परिवर्तन अब भविष्य की आशंका नहीं, वर्तमान की सच्चाई है।
यदि हमने अब भी प्रकृति को चेतावनी नहीं मानी, तो अगला प्रतिशोध और भी भयंकर हो सकता है। यह समय आत्मनिरीक्षण का है। विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन साधे बिना हम सुरक्षित नहीं रह सकते।
लेखक परिचय:संकलनकर्ता, लेखक, क़र विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय चिंतक, कवि, संगीत माध्यम, सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया, महाराष्ट्र