– डॉ. महेन्द्र शर्मा

पाँच सौ वर्ष पूर्व गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा था —
“द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन, नहिं कोउ मान निगम अनुसासन”
(ब्राह्मण वेद बेचेंगे, राजा प्रजा का शोषण करेगा और कोई अनुशासन का पालन नहीं करेगा।)
आज की राजनीति में यह पंक्ति अक्षरशः सच प्रतीत हो रही है।

मेरे विवाह को 40 वर्ष हो चुके हैं। मैं अक्सर अपनी पोतियों के साथ बैठकर पुराने वीडियो और फोटो एल्बम देखता हूँ—उन रिश्तेदारों, मित्रों को याद करता हूँ जो अब हमारे बीच नहीं हैं। उस समय VCR पर फिल्में देखी जाती थीं, आज विज्ञान इतना विकसित है कि पूरा रिकॉर्ड एक पेन ड्राइव में सिमट जाता है। सरकार भी गर्व से कहती है कि अब सारे सरकारी रिकॉर्ड डिजिटल हो रहे हैं—ई-टिकटिंग, ई-बैंकिंग, ई-ट्रेडिंग, ई-टैक्सेशन, और नौकरियों की परीक्षाएं भी ऑनलाइन।

सरकार का दावा है कि डिजिटल सिस्टम में डेटा सुरक्षित है, बदला नहीं जा सकता और पारदर्शिता बनी रहती है। लेकिन सवाल है—जब सब कुछ संभव है, तो चुनाव आयोग 45 दिन बाद चुनावी वीडियोज़ और डेटा क्यों डिलीट करता है?

हाल ही में कांग्रेस को चुनाव आयोग से मिले रिकॉर्ड का विश्लेषण कर राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में तथ्य रखे। उन्होंने मात्र एक लोकसभा सीट की एक विधानसभा सीट का डेटा दिखाया। आयोग ने जवाब देने के बजाय उनसे शपथपत्र मांगा! असल सवाल आयोग से है, लेकिन जवाब लाभार्थी केंद्र सरकार दे रही है—जैसे खुद कटघरे में हो।

यही वह बिंदु है जहां देश समझने लगा है कि—

  • भाजपा पर एंटी-इनकंबेंसी का असर क्यों नहीं होता,
  • चुनाव इतने चरणों में क्यों कराए जाते हैं,
  • और चुनावी रिकॉर्ड इतनी जल्दी क्यों मिटा दिए जाते हैं।

सच यही है कि आज के दौर में लोकतंत्र अंतिम सांसें गिन रहा है। राजनीति, अनुशासन, नियम, संविधान—सब औपचारिकताएं बनकर रह गए हैं। सत्ता की भूख ही एकमात्र जीवित तत्व है। पुराने समय में अश्वमेध यज्ञ होते थे, आज सत्ता के लिए ED, CBI और आयकर विभाग उसी अश्व की तरह इस्तेमाल हो रहे हैं।

एक मीडिया चैनल का दावा है कि वास्तविक वोट बैंक महज 12% है, बाकी 23% आधुनिक अश्वमेध यज्ञ की देन है। अगर लोकतंत्र को बचाना है, तो चुनाव आयोग को डिजिटल युग की पारदर्शिता के अनुरूप अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी—डेटा छिपाना नहीं, बल्कि जनता के सामने रखना होगा। वरना इतिहास गवाह रहेगा कि इस युग में लोकतंत्र का गला घोंटने में संस्थाएं भी मौन सहयोगी रहीं।

सवाल गूंजते रहे… जवाब गायब!

सवाल 1: जब डिजिटल सिस्टम में डेटा सुरक्षित है, तो 45 दिन बाद चुनावी रिकॉर्ड क्यों डिलीट?
जवाब: … मौन।

सवाल 2: राहुल गांधी के तथ्यों पर जवाब देने के बजाय शपथपत्र क्यों?
जवाब: … मौन।

सवाल 3: चुनाव इतने चरणों में क्यों?
जवाब: … मौन।

सवाल 4: एंटी-इनकंबेंसी असरहीन क्यों?
जवाब: … मौन।

सवाल 5: एजेंसियों से वोट बैंक कंट्रोल की राजनीति में निष्पक्षता कहाँ?
जवाब: … मौन।

Share via
Copy link