क्या वैश्विक डिजिटल परिदृश्य में भारत द्वारा एक क्रांतिकारी बदलाव देने की रणनीति अंतिम दौर में पहुंची?

20वीं सदी में औद्योगिक क्रांति ने दुनियाँ का चेहरा बदला तो 21वीं सदी में सूचना व डिजिटल क्रांति ने मानव जीवन को ही बदल दिया?

-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

गोंदिया-वैश्विक स्तर पर आज सूचना और प्रौद्योगिकी का युग चल पड़ा है। मानव सभ्यता का इतिहास यह दर्शाता है कि जो भी राष्ट्र ज्ञान, सूचना और तकनीक पर नियंत्रण स्थापित करता है, वही भविष्य की दिशा तय करता है। वर्तमान समय में जब वैश्विक युद्ध, टैरिफ रूपी दबाव और आर्थिक प्रतिस्पर्धा का माहौल गहराता जा रहा है, तब भारत की डिजिटल आत्मनिर्भरता पर गहन चर्चा होना स्वाभाविक है।

20वीं सदी में औद्योगिक क्रांति ने दुनिया का चेहरा बदला था, तो 21वीं सदी में सूचना और डिजिटल क्रांति ने मानव जीवन को पूरी तरह बदल डाला। इस क्रांति के केंद्र में अब तक गूगल, फेसबुक, अमेज़न और क्रोम जैसी विदेशी कंपनियाँ रही हैं। लेकिन मैं एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र मानता हूं कि आज यह चर्चा तेज़ हो चली है कि भारत ने अपना स्वदेशी सर्च इंजन विकसित कर डिजिटल स्वतंत्रता की दिशा में निर्णायक कदम उठा लिया है।

विदेशी प्रभुत्व से डिजिटल संप्रभुता की ओर

भारत इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है। 85 करोड़ से अधिक सक्रिय इंटरनेट उपयोगकर्ता और 55 करोड़ से अधिक सोशल मीडिया उपभोक्ता भारत को वैश्विक डिजिटल बाज़ार का केंद्र बनाते हैं। लेकिन इस विशाल डेटा और सूचना पर दशकों से विदेशी कंपनियों का वर्चस्व रहा है।

  • गूगल भारत के 97% सर्च इंजन मार्केट पर कब्ज़ा रखता है।
  • फेसबुक और इंस्टाग्राम सोशल मीडिया पर हावी हैं।
  • क्रोम सबसे लोकप्रिय ब्राउज़र है।

यह स्थिति केवल व्यापारिक प्रभुत्व तक सीमित नहीं रही, बल्कि भारत की डिजिटल संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी प्रश्नचिह्न खड़ा करती रही है। उपयोगकर्ताओं का विशाल डेटा विदेशी सर्वरों पर जमा होता रहा, जिससे न केवल अरबों डॉलर का मुनाफ़ा विदेश जाता रहा बल्कि सुरक्षा के लिहाज़ से भी खतरे पैदा हुए।

स्वदेशी सर्च इंजन की अनिवार्यता

इसी पृष्ठभूमि में भारत सरकार और निजी आईटी कंपनियों ने मिलकर ऐसा सर्च इंजन विकसित करने की आवश्यकता महसूस की जो भारतीय ज़रूरतों और भारतीय मूल्यों के अनुरूप हो। इसमें भारत की 22 अधिकृत भाषाओं में सहज रूपांतरण और प्रदर्शन की क्षमता हो।

इसकी प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हो सकती हैं—

  1. भारतीय भाषाओं का समर्थन – 22 अधिकृत भाषाओं और 50 से अधिक बोलियों में खोज परिणाम।
  2. लोकलाइज्ड एल्गोरिद्म – भारतीय संस्कृति, भूगोल और समाज पर केंद्रित खोज।
  3. तेज़ और सटीक परिणाम – एआई आधारित व्यक्तिगत लेकिन सुरक्षित जानकारी।
  4. वॉइस सर्च सुविधा – हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में बोलकर खोजने की क्षमता।
  5. तकनीकी संरचना – एआई, मशीन लर्निंग, बिग डेटा और एनएलपी का भारतीय भाषाओं के साथ संगम।

“डेटा भारत में, भारत के लिए” – नीति की आवश्यकता

भारत का यह सर्च इंजन तभी सार्थक होगा जब वह निम्नलिखित सिद्धांतों का पालन करे:

  1. भारतीय सर्वर और डेटा सेंटर – सभी डेटा देश में सुरक्षित हो।
  2. डेटा गोपनीयता कानून – “डिजिटल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट” के तहत नागरिकों की निजी जानकारी विदेश न जाए।
  3. उपयोगकर्ता नियंत्रण – उपयोगकर्ता को अपने डेटा पर पूर्ण अधिकार हो, विज्ञापनदाता बिना अनुमति डेटा तक न पहुँच सकें।

स्टार्टअप, ई-कॉमर्स और शिक्षा के लिए नया युग

भारत में 1 लाख से अधिक स्टार्टअप्स हैं, जिन्हें गूगल-फेसबुक को विज्ञापन के लिए भारी रकम चुकानी पड़ती है। स्वदेशी सर्च इंजन उन्हें स्थानीय स्तर पर कम लागत वाला विकल्प प्रदान कर सकता है। इससे—

  • छोटे दुकानदार और ग्रामीण उद्यमी डिजिटल प्लेटफॉर्म से जुड़ेंगे।
  • “मेड इन इंडिया” उत्पादों को प्राथमिकता मिलेगी।
  • शिक्षा और शोध को प्रोत्साहन मिलेगा— भारतीय विश्वविद्यालयों के शोधपत्र, प्राचीन ग्रंथ और साहित्य आसानी से उपलब्ध होंगे।

वैश्विक चुनौती और भू-राजनीतिक महत्व

भारत का यह कदम केवल तकनीकी या आर्थिक मामला नहीं होगा, बल्कि भू-राजनीतिक दृष्टि से भी बेहद अहम होगा।

  • अमेरिका – गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियाँ अमेरिकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, वे भारत की इस पहल का विरोध कर सकती हैं।
  • चीन और रूस – पहले ही बाईडू और यांडेक्स जैसे इंजन विकसित कर चुके हैं, वे भारत का स्वागत करेंगे।
  • यूरोपीय संघ – डेटा सुरक्षा को लेकर सख़्त रुख अपनाने के कारण भारत का समर्थन कर सकता है।

यह कदम वैश्विक इंटरनेट गवर्नेंस में शक्ति संतुलन को बदल सकता है।

चुनौतियाँ और भविष्य

भारत के इस स्वदेशी सर्च इंजन को कई चुनौतियों का सामना करना होगा—

  • गूगल जैसी कंपनियों का अरबों डॉलर का अनुसंधान बजट।
  • उपयोगकर्ताओं की आदतों को बदलने की कठिनाई।
  • साइबर सुरक्षा और हैकिंग से बचाव।

लेकिन भारत की आईटी प्रतिभा, सरकारी समर्थन और जनता का विश्वास इन चुनौतियों को अवसर में बदल सकता है।

अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि 

 यह साफ प्रूफ होता है कि भारत डिजिटल स्वाधीनता और तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में तेज़ी से कदम बढ़ा रहा है। 20वीं सदी की औद्योगिक क्रांति ने दुनियाँ को बदला था, और अब 21वीं सदी की डिजिटल क्रांति भारत को वैश्विक डिजिटल परिदृश्य में एक नई शक्ति के रूप में स्थापित कर सकती है।

 संकलनकर्ता, लेखक
क़ानून विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक-चिंतक, कवि, संगीत माध्यमा, सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी, गोंदिया, महाराष्ट्र

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