मोबाइल और स्क्रीन की लत से बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित

जंक फूड बना रहा मोटापा और हार्मोनल असंतुलन

माता-पिता के समय और संवाद की कमी सबसे बड़ी चुनौती

विशेषज्ञ बोले – बचपन बचाना समाज की सामूहिक जिम्मेदारी

विजय गर्ग ………… सेवानिवृत्त प्रिंसिपल

कभी बचपन का मतलब था – खुले मैदानों में खेल, दादी-नानी की कहानियाँ और घर के बड़े-बुजुर्गों से संस्कारों की सीख। लेकिन अब नज़ारा बदल चुका है। मोबाइल स्क्रीन, जंक फूड और बदलती जीवनशैली ने बच्चों की मासूमियत को समय से पहले छीन लिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समाज और परिवार ने अब भी चेतना नहीं दिखाई, तो आने वाली पीढ़ी शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से अधूरी रह जाएगी।

स्क्रीन पर कैद बचपन

आज मोबाइल और टैबलेट बच्चों के सबसे बड़े साथी बन चुके हैं। डिजिटल गेम्स और वीडियो का आकर्षण उन्हें वास्तविक दुनिया से दूर कर रहा है। बच्चों के व्यवहार पर भी इसका असर दिख रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि घंटों स्क्रीन पर समय बिताने से बच्चों की शारीरिक सक्रियता कम हो रही है, उनकी आंखों और दिमाग पर दबाव बढ़ रहा है और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है।

स्वाद भरा लेकिन नुकसानदायक जंक फूड

स्कूल से लौटते ही बच्चों के हाथ में अक्सर चिप्स, कोल्ड ड्रिंक या पैकेट वाले स्नैक्स नजर आते हैं। ये खाने में भले ही स्वादिष्ट लगते हों, लेकिन स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदेह हैं।
पोषण विशेषज्ञों के अनुसार, इनमें मौजूद अधिक नमक, शक्कर और प्रिजर्वेटिव्स से बच्चों में मोटापा, हार्मोनल असंतुलन और पाचन संबंधी दिक्कतें बढ़ रही हैं। लगातार सेवन बच्चों की प्राकृतिक वृद्धि को रोकता है।

माता-पिता के पास समय नहीं

तेज रफ्तार जीवनशैली ने बच्चों को और अकेला कर दिया है। पढ़ाई, ट्यूशन और प्रतियोगिता की दौड़ में माता-पिता बच्चों को समय नहीं दे पा रहे। खेल और रचनात्मक गतिविधियों से वंचित बच्चों की कमी को अक्सर मोबाइल और स्नैक्स भर देते हैं।
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चों के लिए माता-पिता का समय और संवाद ही उनकी भावनात्मक सुरक्षा का सबसे बड़ा आधार है।

विशेषज्ञों की राय – अब कदम उठाना जरूरी

शिक्षा विशेषज्ञ और समाजशास्त्री मानते हैं कि यदि अब भी सतर्कता नहीं दिखाई गई तो अगली पीढ़ी गंभीर स्वास्थ्य और सामाजिक संकट का सामना करेगी।
मलोट (पंजाब) के सेवानिवृत्त प्रिंसिपल विजय गर्ग का कहना है, “बचपन सिर्फ उम्र का नहीं, बल्कि अनुभव, संस्कार और सीख का नाम है। इसे बचाना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।”

समाधान क्या है?

  • बच्चों के लिए डिजिटल समय सीमा तय करें
  • बाहरी खेलों और शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा दें।
  • घर का पौष्टिक भोजन प्राथमिकता में रखें, जंक फूड को कभी-कभार तक सीमित करें।
  • परिवार में सकारात्मक संवाद और मूल्य आधारित माहौल विकसित करें।
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