भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

आठ तारीख को किसानों और केंद्र सरकार की बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में ज्ञात जानकारी के अनुसार दोनों ओर से संवाद तो हुआ नहीं, दोनों अपनी जिद पर अड़े रहे। किसानों का कहना था कि कृषि कानून वापिस लो, जबकि सरकार का कहना था कि संशोधन करा लो।

यह स्थिति एक वार्ता की नहीं है, अपितु अब तक आठ वार्ताएं हो चुकी हैं और परिणाम शून्य है। नौवीं वार्ता का दिन 15 जनवरी रखा गया है लेकिन 11 जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय में भी तारीख है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय यह निर्णय करेगा कि क्या वार्ताओं से हल निकल सकता है? यदि न्यायालय को यह लगा कि हल निकल सकता है तो वह सरकार को और समय देगी। अन्यथा निर्णय देंगे। तात्पर्य यह है कि संवाद-संवाद के खेल में हल निकल रहा है या नहीं, यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय 11 को कर देगी।

इधर किसान संगठनों में चर्चा बनी हुई है कि हम न्यायालय में जाएंगे नहीं। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि किसान संगठनों को सर्वोच्च न्यायालय पर भी विश्वास नहीं है। वे सोचते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय भी सरकार के दबाव में काम कर रही है। और यह स्थिति प्रजातंत्र के लिए बहुत विस्फोटक है।

इधर हरियाणा में सरकार की ओर से किसान महापंचायतों का आयोजन किया जा रहा है और कुछ किसान इनका विरोध भी कर रहे हैं, जबकि किसान नेताओं का कहना है कि किसान महापंचायत किसानों को समझाने के लिए नहीं की जा रही है, बल्कि किसानों को उकसाने के लिए की जा रही हैं, जिससे किसान हमारे शांतिपूर्वक गांधीवादी तरीके से अनुशासनात्मक आंदोलन को कमजोर कर सकें। यदि किसानों को ही सरकार समझा सकती तो अगस्त माह से अब तक क्यों नहीं समझा पाई।

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