किशन सनमुखदास भावनानी

-अंतरराष्ट्रीय राजनीति और वैश्विक अर्थव्यवस्था इस समय जिस मोड़ पर खड़ी है, वहाँ हर कदम और हर निर्णय आने वाले दशकों की शक्ति-संतुलन की रूपरेखा तय कर रहा है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा हाल में उठाए गए टैरिफ वार (Tariff War) के कदमों ने न केवल भारत बल्कि पूरे एशियाई परिदृश्य में गहरी अनिश्चितता पैदा कर दी है।भारत को अब यह समझना पड़ा है कि एकपक्षीय अमेरिकी दबाव और संरक्षणवाद के बीच अपनी अर्थव्यवस्था को टिकाऊ और सशक्त बनाए रखने के लिए बहुस्तरीय रणनीतिक साझेदारियाँ आवश्यक हैं। यही कारण है कि बदलते भू-राजनीतिक हालात और आर्थिक टकराव ने रूस-चीन-भारत (आरसीआई) त्रिकोण के उभार को गति दी है।
ट्रंप की टैरिफ नीति और भारत पर असर
ट्रंप प्रशासन की टैरिफ रणनीति का उद्देश्य अमेरिकी उद्योगों और घरेलू नौकरियों की सुरक्षा है। किंतु इसके दुष्परिणामस्वरूप वैश्विक आपूर्ति शृंखला हिल गई है।
- भारत पर भी गहरा असर पड़ा है, क्योंकि अमेरिका उसके लिए सबसे बड़े निर्यात बाज़ारों में से एक है।
- 27 अगस्त से भारतीय स्टील, दवाओं, आईटी सेवाओं और मैन्युफैक्चरिंग गुड्स पर टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी गई है।
- इस अनिश्चितता ने भारतीय उद्योगों को वैकल्पिक साझेदारियाँ और बाजार तलाशने पर मजबूर किया है।
अगस्त 2025 की घटनाएँ और आरसीआई की मजबूती
अगस्त 2025 के मध्य कई अहम घटनाक्रम हुए, जिन्होंने भारत-रूस-चीन त्रिकोण को नई ऊर्जा दीः
- 18-19 अगस्त 2025: चीनी विदेश मंत्री का भारत दौरा।
- 19 अगस्त 2025: भारतीय विदेश मंत्री का मास्को प्रस्थान।
- 31 अगस्त 2025 (संभावित): प्रधानमंत्री का बीजिंग दौरा।
यह घटनाक्रम संकेत देते हैं कि नई दिल्ली, बीजिंग और मॉस्को—तीनों के साथ निरंतर संवाद बनाए रखने की रणनीति पर काम कर रही है।
रूस और भारत के साझा हित
- रूस, पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण एशियाई बाजारों की ओर झुक रहा है।
- भारत के लिए रूस ऊर्जा और रक्षा क्षेत्र में भरोसेमंद साझेदार है।
- हाल के वर्षों में दोनों देशों ने रक्षा, ऊर्जा और तकनीकी क्षेत्रों में गहरी निर्भरता विकसित की है।
- डॉलर आधारित व्यापार से हटकर राष्ट्रीय मुद्राओं में लेन-देन बढ़ाने की चर्चा भी तेज हुई है।
चीन की भूमिका और भारत की रणनीतिक सोच
- चीन, अमेरिका के साथ सीधे व्यापार युद्ध में उलझा हुआ है और एशियाई गठबंधन मजबूत करना चाहता है।
- भारत, चीन के साथ मतभेदों के बावजूद आर्थिक और सामरिक संवाद को नई गति दे रहा है।
- चीनी विदेश मंत्री के साथ बैठक के अगले ही दिन भारतीय विदेश मंत्री का मास्को रवाना होना इस रणनीतिक समय-निर्धारण का स्पष्ट संकेत है।
आरसीआई त्रिकोण की आवश्यकता
भारत, रूस और चीन – तीनों ही अपनी-अपनी परिस्थितियों से जूझ रहे हैंः
- भारत – अमेरिका के टैरिफ और तकनीकी दबाव से वैकल्पिक साझेदारियों की तलाश।
- चीन – अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध से निकलने और एशियाई धुरी को मजबूत करने की ज़रूरत।
- रूस – पश्चिमी प्रतिबंधों से जूझते हुए ऊर्जा व रक्षा बाजार को एशिया में स्थिर करने का प्रयास।
इन तीनों की ज़रूरतें एक-दूसरे से मिलकर आरसीआई त्रिकोण को जन्म दे रही हैं, जो सामरिक, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से वैश्विक शक्ति-संतुलन बदल सकता है।
संभावित प्रभाव
- यदि आरसीआई त्रिकोण मजबूत होता है, तो यह अमेरिका-यूरोप केंद्रित व्यवस्था को चुनौती देगा।
- बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था (Multipolar World Order) को नई गति मिलेगी।
- भारत की भागीदारी त्रिकोण को विशेष महत्व देती है—क्योंकि भारत के पास जनसांख्यिकीय लाभ, तकनीकी क्षमता और भू-राजनीतिक महत्व है।
- चीन के पास आर्थिक ताकत और रूस के पास ऊर्जा व रक्षा संसाधन हैं।
- तीनों मिलकर ग्लोबल साउथ की आवाज़ को और बुलंद कर सकते हैं।
अतःअगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन करें इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि अमेरिकी टैरिफ वार ने अनजाने में ही भारत, रूस और चीन को एक-दूसरे के और करीब ला दिया है।
- जुलाई-अगस्त 2025 की घटनाएँ इस संभावना को प्रबल करती हैं कि आने वाले वर्षों में आरसीआई त्रिकोण, वैश्विक राजनीति का निर्णायक कारक बनेगा।
- भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी कि वह अपनी स्वायत्त विदेश नीति को कायम रखते हुए इस त्रिकोण का हिस्सा बने और साथ ही अमेरिका व पश्चिमी देशों के साथ भी संतुलन साधे।
विश्व राजनीति के इस संक्रमणकाल में,एशियाई शक्तियों का यह त्रिकोण केवल व्यापार या रक्षा तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि 21वीं सदी के भू-राजनीतिक नक्शे को गहराई से प्रभावित करेगा।
लेखक परिचय-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक, कवि, संगीत माध्यमा,सीए (एटीसी)एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया, महाराष्ट्र