मां की अराधना से लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की होती है पूर्ति

गुरुग्राम: श्री माता शीतला देवी मंदिर श्राइन बोर्ड के पूर्व सदस्य एवं आचार्य पुरोहित संघ गुरुग्राम के अध्यक्ष पंडित अमर चंद भारद्वाज ने कहा कि शारदीय नवरात्र की नवमी, गुरुवार को मां दुर्गा जी की नवीं शक्ति देवी मां सिद्धिदात्री की उपासना के साथ नवरात्रि अनुष्ठान का समापन होगा। प्रसिद्ध देवी पुराण के अनुसार नवदुर्गाओं में माँ सिद्धिदात्री अंतिम हैं। माता के अन्य 8 स्वरूपों की पूजा उपासना शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार करते हुए भक्त दुर्गा पूजा के नौवें दिन इनकी उपासना में प्रवत्त होते हैं। सिद्धिदात्री माँ की उपासना पूर्ण कर लेने के बाद भक्तों और साधकों की लौकिक, पारलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। सिद्धिदात्री माँ के कृपापात्र भक्त के भीतर कोई ऐसी कामना शेष बचती ही नहीं है, जिसे वह पूर्ण करना चाहे। वह सभी सांसारिक इच्छाओं, आवश्यकताओं और स्पृहाओं से ऊपर उठकर मानसिक रूप से माँ भगवती के दिव्य लोकों में विचरण करता हुआ उनके कृपा-रस-पीयूष का निरंतर पान करता हुआ, विषय-भोग-शून्य हो जाता है। माँ भगवती का परम सान्निध्य ही उसका सर्वस्व हो जाता है। इस परम पद को पाने के बाद उसे अन्य किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं रह जाती। माँ के चरणों का यह सान्निध्य प्राप्त करने के लिए भक्त को निरंतर नियमनिष्ठ रहकर उनकी उपासना करने का नियम कहा गया है। ऐसा माना गया है कि माँ भगवती का स्मरण, ध्यान, पूजन, हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हुए वास्तविक परम शांतिदायक अमृत पद की ओर ले जाने वाला है। विश्वास किया जाता है कि इनकी आराधना से भक्त को अणिमा, लधिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व, सर्वकामावसायिता, दूर श्रवण, परकामा प्रवेश, वाकसिद्ध, अमरत्व भावना सिद्धि आदि समस्त सिद्धियों नव निधियों की प्राप्ति होती है। ऐसा कहा गया है कि यदि कोई इतना कठिन तप न कर सके तो अपनी शक्तिनुसार जप, तप, पूजा-अर्चना कर माँ की कृपा का पात्र बन सकता ही है। माँ की आराधना के लिए इस श्लोक का प्रयोग होता है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में नवमी के दिन इसका जाप करने का नियम है। मां सिद्धिदात्री का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस मंत्र का उच्चारण करें-
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।
ऐसे करें माता का पूजन
स्नान के बाद चौकी पर मां की प्रतिमा स्थापित करें। इसके बाद मां को फल, फूल, माला, नैवेध आदि अर्पित करें और उनके आगे हाथ जोड़ कर उनकी पूजा करें। भोग अर्पित करने के बाद देवी स्वरूपा 9 कन्याओं की पूजा करें। कन्याओं को घर बुलाकर उनके पैर धुलें और उसके बाद महावर लगाएं। फिर टिका कर उन्हें भोजन खिलाएं। फिर उपहार दें और अंत में पैर छुकर उनका आर्शीवाद लें। इस दिन ब्राह्मण और गाय को भी भोजन अवश्य कराएं।
कन्या पूजन का विशेष महत्व
नवरात्रि के अंतिम दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा के बाद हवन और कन्या पूजना का विशेष महत्व होता है। इस दिन देवी की विदाई भी की जाती है। पुराणों के अनुसार मां सिद्धिदात्री की कृपा से ही भगवान शिव को अर्धनारीश्वर रूप प्राप्त हुआ था। इस दिन देवी की पूजा से मनुष्य को हर सिद्धियों की प्राप्ति होती है। साथ ही उसकी सारी ही मनोकामनाएं पूरी होती हैं। नवमी के दिन छोटी- छोटी कन्याओं को मां का स्वरूप मानकर उनकी पूजा की जाती है और उन्हें उपहार देकर विदा किया जाता है। माना जाता है कि इन कन्याओं में देवी का वास होता है और इनका आशीर्वाद बहुत फलीभूत होता है।