Category: विचार

“इन्फ्लुएंसर जागो! अब जिम्मेदारी को भी वायरल करो”

आज सोशल मीडिया पर मौजूद इन्फ्लुएंसर्स का प्रभाव समाज और राजनीति पर तेजी से बढ़ रहा है। वे बिना किसी जवाबदेही के जनमत को प्रभावित करते हैं, विशेष रूप से…

घर के भेदी: जब भीतरघात बन जाए राष्ट्रीय संकट

गोली नहीं, अब मोबाइल से हो रहा है युद्ध; कुछ सिक्कों और रिश्तों के लालच में बिक रही है राष्ट्रभक्ति सुरक्षा गार्ड, छात्र और यूट्यूबर बन रहे हैं दुश्मन के…

साइबर ठगी अपराधियों की अब खैर नहीं

अपराधियों को जल्दी पकड़ने के लिए केंद्र सरकार ने शुरू की नई ई-ज़ीरो एफआईआर योजना वित्तीय हानियों से संबंधित शिकायतें स्वचालित रूप से ई क्राइम थाने में जीरो एफआईआर के…

भारतीय संस्कृति : आज के संक्रमणकाल में ………… आडंबर में उलझती आत्मा, विस्मृत होती मूल चेतना

– सुरेश गोयल ‘धूप वाला’ जीवन पद्धति नहीं, एक सनातन संस्कृति भारतीय संस्कृति को विश्व की सर्वश्रेष्ठ और सनातन संस्कृति का दर्जा प्राप्त है। यह केवल कुछ परंपराओं, रीति-रिवाजों या…

“गद्दारी का साया: जब अपनों ने ही बेचा देश”

मुठ्ठी भर मुगल और अंग्रेज देश पर सदियों राज नहीं करते यदि भारत में गद्दार प्रजाति न होती। यह बात आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। 1999 के कारगिल युद्ध…

साधु का स्वरूप : क्या समाज को दिशा दे रहे हैं आज के भगवाधारी?

ऋषि प्रकाश कौशिक भारत की सनातन परंपरा में साधु शब्द मात्र एक लिबास का प्रतीक नहीं, बल्कि त्याग, तपस्या, वैराग्य और समत्व की जीवंत प्रतिमा है। जिनका जीवन सांसारिक मोह…

आरक्षण: पीढ़ीगत विशेषाधिकार या वास्तविक न्याय? …….लाभार्थी कौन?

आरक्षण भारतीय समाज में सदियों से व्याप्त असमानताओं को समाप्त करने और वंचित समुदायों को मुख्यधारा में लाने का एक महत्वपूर्ण साधन है। लेकिन समय के साथ यह एक पीढ़ीगत…

“सिन्दूर: अब श्रृंगार ही नहीं ………. शौर्य का प्रतीक”

सिन्दूर, जो कभी सिर्फ वैवाहिक प्रेम का प्रतीक था, आज ऑपरेशन सिंदूर की नायिकाओं वियोमिका और सोफिया की साहसिक कहानियों का प्रतीक बन गया है। ये महिलाएं सिर्फ सजी-धजी मूरतें…

दहेज का विरोध, पर मालदार की चाहत क्यों? …..  “मालदार दूल्हा ढूंढने वालों, खुद से भी सवाल करो!”

दहेज़ लेने वालो के मुंह पे थूकने से फुर्सत मिल गई हो तो थोड़ा एकलौता मालदार लड़का ढूंढने वालो के मुंह पे भी थूक दो। यह दोहरी सोच ही हमारे…

“सोशल मीडिया पर देह की नुमाइश: सशक्तिकरण या आत्मसम्मान का संकट?”

“लाइक्स की दौड़ में खोती पहचान: नारी सशक्तिकरण का असली मतलब” सोशल मीडिया पर नारी देह का बढ़ता प्रदर्शन क्या वाकई सशक्तिकरण है या महज़ लाइक्स और फॉलोअर्स की होड़?…