Category: विचार

उच्च शिक्षा सुधार की राह में रोड़ा …… “कुलपति विहीन विश्वविद्यालय: हरियाणा की उच्च शिक्षा का ठहरा भविष्य”

हरियाणा के सात से अधिक विश्वविद्यालय लंबे समय से स्थायी कुलपति विहीन हैं, जिससे उच्च शिक्षा प्रणाली में नेतृत्व का अभाव उत्पन्न हुआ है। यह न केवल प्रशासनिक शिथिलता को…

भारत ने पाकिस्तान को आर्थिक घेराबंदी कर दिया तगड़ा झटका: आयात-निर्यात पाबंदी, बंदरगाहों पर नो एंट्री, डाक पार्सल सेवाएं निलंबित

पाक पर रणनीति से आर्थिक, सामाजिक,अंतर्राष्ट्रीय थू थू रूपी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक व सेना के तीनों अंगों की कार्यवाही एक बेहतर विकल्प हो सकता है? आतंकवाद मानवता के…

“केसीसी के नाम पर चालबाज़ी: निजी बैंकों की शिकारी पूँजी और किसानों की लूट”

निजी बैंक किसानों को केसीसी योजना के तहत ऋण देते समय बीमा और पॉलिसियों के नाम पर चुपचाप उनके खातों से पैसे काट लेते हैं। हाल ही में राजस्थान में…

परशुराम जयंती या प्रतिष्ठा का तमाशा ?……..धर्म और संस्कृति के नाम पर दिखावे और स्वार्थ की मंडी

ऋषि प्रकाश कौशिक भगवान परशुराम भारत की उस परंपरा के प्रतिनिधि हैं, जहाँ धर्म, न्याय और आत्मबल सर्वोपरि माने जाते हैं। वे ब्रह्मतेज और क्षात्रबल के अद्वितीय प्रतीक हैं। लेकिन…

“इतिहास का बोझ : कब तक हमारी पीढ़ियाँ झुकती रहेंगी?”

मुझे यह सोचकर पीड़ा होती है कि आज भी हमारे बच्चों को इतिहास के नाम पर मुग़ल शासकों की गाथाएँ पढ़ाई जाती हैं, जबकि चाणक्य, चित्रगुप्त और छत्रपति शिवाजी जैसे…

“प्रेस स्वतंत्रता दिवस: “जब पत्रकारिता ज़िंदा थी…”

प्रेस की चुप्पी, रीलों का शोर: लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ट्रेंडिंग टैग बन गया। प्रेस स्वतंत्रता दिवस अब औपचारिकता बनकर रह गया है। पत्रकारिता की जगह अब सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स…

अमेरिका में मंदी के आसार: वर्ल्ड टैरिफ वॉर से 0.3% गिरावट का झटका, भारत को अवसर की उम्मीद

विश्लेषकों की राय में अमेरिकी विकास में महत्वपूर्ण मंदी है,परंतु अमेरिका में मंदी की आशंका नहीं है अमेरिकी व्यापार नीति में आए बड़े बदलाव से उत्पन्न अनिश्चितता ने बाजारों को…

“मैनेजमेंट के मखमली पर्दे के पीछे दम तोड़ती पत्रकारिता”

“PR मैनेजमेंट के चंगुल में फंसा आज का कलमकार, मैनेजर जी रहे लग्जरी लाइफ, पत्रकार टूटी बाइक पर” आज की पत्रकारिता एक गहरे संकट से गुजर रही है, जहाँ कलमकार…

अंततः देश में जाति जनगणना: प्रतिनिधित्व या पुनरुत्थान?

भारत में दशकों से केवल अनुसूचित जातियों और जनजातियों की गिनती होती रही है, जबकि अन्य जातियाँ नीति निर्माण में अदृश्य रहीं। जाति जनगणना केवल गिनती नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय…

मजदूरों का भारत : शोषण के साए में खड़ा विकास …..

“जिन हाथों ने इस देश की इमारतें खड़ी कीं, उन्हीं हाथों को आज रोटी, छत और पहचान के लिए जूझना पड़ रहा है। दिहाड़ीदार मजदूर केवल श्रम नहीं देते, वे…