डॉ मीरा

हमारे समाज में परिवार को एक सूत्र में पिरोने का काम हमेशा से हमारे सम्माननीय बुजुर्गों ने किया है यह सत्य है कि आज के युग में हम इंटरनेट से हर जानकारी हासिल कर लेते हैं लेकिन अच्छे संस्कार व आचरण हमें हमारे परिवार के वरिष्ठ सदस्यों से बढ़कर कोई नहीं दे सकता अगर हम बुजुर्गों को अनुभवों और संस्कारों का खजाना कहें तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योंकि बुजुर्गों के अपने जीवन में आए उतारचढ़ाव से मिले अनुभवों व उनकी जीवन की संघर्षमयी यात्रा वह शक्ति है जिसके बलबूते पर हमारे परिवार बुलंदियों तक पहुंचते हैं। इसके बारे में एक कहावत भी है एक बुजुर्ग एक लाइब्रेरी के समान होता है हम यह मानते हैं कि उस अनुभवी व्यक्ति को अपने जीवन में अनेक पहलुओं से जो शिक्षा मिली है वह अनमोल धरोहर हमारे लिए लाइब्रेरी में रखी विभिन्न विषयों की महत्त्वपूर्ण पुस्तकों के बराबर है।
बुजुर्गों और युवाओं में बढ़ती दूरियों से गिरते नैतिक मूल्य-
आज हम देखते हैं कि संयुक्त परिवारों की संख्या घटने से परिवार में बुजुर्गों की भूमिका भी लगातार कम होती जा रही है बच्चे मोबाइल फोन व टीवी आदि उपकरणों में उलझे रहते हैं उनके पास अपने से बड़ों के साथ बात करने का समय नहीं है जिससे सामाजिक व नैतिक मूल्यों में भी गिरावट आ रही है परिवार में बड़े सदस्यों की भूमिका क्या होती है। इसके बारे में हमें इतिहास में भी काफी उदाहरण देखने को मिलते हैं जैसे भगवान श्री राम ने पिता की आज्ञा से राज पाट का त्याग कर वनवास को अपना लिया व श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता-पिता की चार-धाम यात्रा करवाई, इसे ज्ञात होता है कि आज्ञाकारी संतान समाज में हमेशा सम्मान पाती है लेकिन आजकल हम देखते हैं कि बुढ़ापे में बच्चे माता-पिता को उनके हाल पर अकेला छोड़ देते हैं।
एक एनजीओ की रिपोर्ट के मुताबिक देश में एक चौथाई बुजुर्ग अकेले रहने को मजबूर हैं ऐसा नहीं है कि यह सब सिर्फ शहरों तक सीमित है बल्कि इस रिपोर्ट के अनुसार गांव में भी बुजुर्ग अकेलापन महसूस करते हैं भले ही गांव में यह प्रतिशत शहरों की अपेक्षा थोड़ा सा कम है।
बुजुर्गों की इच्छाएं होती हैं बहुत ही सीमित-
आज का वृद्ध व्यक्ति परिवार के सदस्यों के द्वारा उपेक्षा, घर से बेघर होने का भय व बाहर निकाले जाने पर अकेला होने का डर से जूझ रहा है। हालांकि देखा जाए तो उसके जीवन की इच्छाएं बहुत ही सीमित हैं एक तरह से देखें तो बुजुर्ग को सुख सुविधाएं व धन नहीं चाहिए जबकि उसकी जरूरत तो सिर्फ परिवार के सदस्यों द्वारा मिलने वाले सम्मान और अच्छे व्यवहार की है ।
बुजुर्गों और युवाओं के बीच परस्पर समन्वय कैसे बनाएं-
आज के युवा को अपनी जीवन शैली में आधुनिकता के साथ-साथ अपने बुजुर्गों के सानिध्य में रहकर उनको सम्मान देते हुए उनके जीवन के खटे-मीठे अनुभवों व संघर्षों से शिक्षा लेनी चाहिए और जिससे युवा पीढ़ी को अपने जीवन को ओर भी सार्थक बनाने में मदद मिलेगी ।
आधुनिकता के कारण युवाओं में आ रहे बदलाव को ध्यान में रखते हुए, बुजुर्ग भी युवाओं से वार्तालाप करें। इससे दोनों पीढ़ीयो में आपसी समझ बढ़ेगी ओर दूरियां कम होंगी ।
दादा-दादी. नाना-नानी का अपने पोता-पोती व नातिन से ‘लगाव और दूरियां होना’ दोनों के लिए बीच की पीढी माता-पिता काफी हद तक जिम्मेदार होते हैं इन दोनों पीढ़ियों को जोड़े रखना, माता-पिता को अपनी जिम्मेवारी समझनी चाहिए जिससे हमारा पारिवारिक ढांचा ओर भी मजबूत होगा और समाज में पनप रही सामाजिक बुराईयां भी कम होंगी।
गुणों का भंडार हैं हमारे बुजुर्ग –
हमारे बुजुर्ग से ही दुआओं की दुनिया आबाद और रिश्तो की अहमियत बरकरार है उनकी कंपकपाती उंगलियों से मिलता आशीर्वाद हमारे लिए स्नेह का नजराना और ऊर्जा का संचार है वृद्धावस्था जीवन का सच है जो लोग आज युवा हैं उन्हें भविष्य में बूढ़ा भी होना है ऐसे में हमें एक बात जरूर समझनी चाहिए कि हमारा जीवन एक गतिशील समय चक्कर है जो हमेशा निरंतर चलता रहता है यह समय चक्कर सबके लिए एक समान है। हमें बुजुर्गों का आदर करते हुए उनकी सेवा करनी चाहिए बुजुर्गों के अनुभव और उनके द्वारा दी गई शिक्षाएं भी हमारे जीवन शैली को खुशहाल बनाती हैं।