क्या नागरिक कथित राजनीतिक तानाशाही से उत्पीड़ित महसूस कर रहे हैं और ब्रिटिश राज की याद कर रहे हैं? क्या लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण चुनावी प्रक्रिया में रुचि कम हो रही है? ये ज्वलंत प्रश्न समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उठाए जा रहे हैं, जो चुनावों में मतदाताओं की संख्या में उल्लेखनीय गिरावट से उजागर होते हैं। चुनाव आयोग के सामने एक बड़ी चुनौती है कि मतदान प्रतिशत कैसे बढ़ाया जाए। चुनाव प्रक्रिया में अधिकतम भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए प्रभावी रणनीतियाँ खोजना आवश्यक है।

-डॉ सत्यवान सौरभ

लोकतंत्र और मतदान की अनिवार्यता

मतदाता जागरूकता बढ़ाना महत्वपूर्ण है, लेकिन इसे राजनीतिक विमर्श को ऊपर उठाने के साथ जोड़ा जाना चाहिए। राजनीति की गुणवत्ता में सुधार किए बिना मतदाताओं को लुभाने के प्रयास व्यर्थ सिद्ध हो सकते हैं। लोकतंत्र को जीवंत और सार्थक बनाए रखने के लिए प्रत्येक नागरिक को मतदान के प्रति प्रतिबद्ध होना आवश्यक है। मतदान केवल एक अधिकार नहीं, बल्कि एक मौलिक कर्तव्य है जिसे एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र के नागरिकों को निभाना चाहिए। मतदान दिवस केवल एक छुट्टी का अवसर नहीं है; यह देश के भविष्य को आकार देने की जिम्मेदारी है।

युवा पीढ़ी की उदासीनता

राजनीति और लोकतंत्र की ताकत इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में निहित है। यह हर नागरिक के लिए महत्वपूर्ण है कि वह अपने मताधिकार का प्रयोग करे। दुर्भाग्यवश, युवा मतदाताओं के लिए मतदान प्राथमिकता नहीं बन पाया है। वे इसे केवल एक और छुट्टी के रूप में देखते हैं और अक्सर लंबी कतारों के कारण मतदान केंद्र तक जाने का विचार त्याग देते हैं। यह प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है। बुजुर्गों द्वारा मतदान के महत्व को समझाने के प्रयास भी अक्सर अनसुने रह जाते हैं।

राजनीति में भरोसे की कमी

राजनीतिक अस्थिरता और अवसरवादिता ने मतदाताओं का भरोसा कमजोर कर दिया है। जब राजनेता अपनी सुविधा के अनुसार पार्टियाँ बदलते हैं और अपने ही पूर्व संगठनों की आलोचना करने लगते हैं, तो जनता में विश्वास कम होता है। आजादी के 75 वर्षों बाद भी भारत में लोकतंत्र के प्रति घटती रुचि वैश्विक चिंता का विषय बन गई है। यह केवल युवा मतदाता ही नहीं, बल्कि पूरे समाज की सामूहिक विफलता है कि वे राष्ट्रवाद और नागरिक कर्तव्यों की भावना को मजबूत नहीं कर पाए। अगर ये मूल्य प्रारंभिक शिक्षा से ही सिखाए जाते, तो शायद आज हम इस स्थिति का सामना नहीं कर रहे होते।

लोकतंत्र को मज़बूत करने की दिशा में कदम

राजनीति में सिद्धांतों को प्राथमिकता देना आवश्यक है। नेताओं को यह समझना चाहिए कि अवसरवादी राजनीति से जनता का भरोसा कमजोर होता है। पार्टी बदलने से पहले उन्हें यह सोचना चाहिए कि यह फ़ैसला उनके समर्थकों को कैसे प्रभावित करेगा। लोकतंत्र को सशक्त बनाने के लिए जरूरी है कि राजनीति में आदर्शवाद और नैतिकता को बढ़ावा दिया जाए।

हमें ऐसा वातावरण बनाना होगा जहाँ मतदाता स्वेच्छा से मतदान करने के लिए प्रेरित हों। यह केवल राजनीतिक व्यवस्था में सुधार लाकर ही संभव हो सकता है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अवसरवादी नेताओं को दूर रखा जाए, ताकि जनता के बीच राजनीतिक दलों और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के प्रति सम्मान की भावना बढ़े। केवल सशक्त और ईमानदार राजनीति के माध्यम से ही हम मतदान प्रतिशत में उल्लेखनीय वृद्धि कर सकते हैं और लोकतंत्र को नई ऊँचाइयों तक ले जा सकते हैं।

Share via
Copy link