– डॉo सत्यवान सौरभ

महिलाओं के वस्तुकरण की समस्या
आज के डिजिटल युग में, सोशल मीडिया महिलाओं की छवि को एक ‘सेक्स ऑब्जेक्ट’ के रूप में प्रस्तुत करने का मुख्य माध्यम बन गया है। लड़कियों को अक्सर लड़कों की तुलना में अधिक यौन रूप से चित्रित किया जाता है, जिससे वे समाज की विशिष्ट यौन अपेक्षाओं के अनुरूप ढलने के लिए बाध्य होती हैं। विज्ञापन, फिल्में और टेलीविजन लगातार महिलाओं को एक वस्तु के रूप में पेश कर रहे हैं, जिससे उनकी असली पहचान और गरिमा प्रभावित हो रही है।
एक अध्ययन के अनुसार, मीडिया में लड़कियों को अक्सर ऐसे कपड़ों, मुद्राओं और चेहरे के भावों के साथ दिखाया जाता है, जो यौन उपलब्धता का संकेत देते हैं। यह प्रवृत्ति केवल अपमानजनक नहीं है, बल्कि महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को भी बढ़ावा देती है। इसके परिणामस्वरूप, कई युवा लड़कियाँ आत्म-सम्मान की कमी, अवसाद, और खाने से जुड़ी समस्याओं का शिकार हो जाती हैं।
मनोरंजन और विज्ञापनों में महिलाओं की छवि
भारतीय फिल्मों, संगीत वीडियो, सोशल मीडिया और टेलीविजन में महिलाओं को अक्सर एक ‘यौन वस्तु’ के रूप में दिखाया जाता है। यह प्रवृत्ति समाज में गलत धारणाओं को बढ़ावा देती है और महिलाओं को केवल पुरुषों के लिए आकर्षण का केंद्र बना देती है। उदाहरण के लिए, कई डिओडोरेंट और गारमेंट विज्ञापन महिलाओं को ऐसे चित्रित करते हैं जैसे वे केवल पुरुषों को लुभाने के लिए ही मौजूद हैं।
गाँव के मेलों, स्थानीय थिएटर और कला रूपों में भी महिलाओं का वस्तुकरण जारी रहता है, जहाँ ‘आइटम डांस’ के माध्यम से महिलाओं को मनोरंजन का साधन बना दिया जाता है। ऐसे चित्रण महिलाओं की स्वतंत्रता और पहचान को धूमिल करते हैं और उन्हें केवल शारीरिक सुंदरता तक सीमित कर देते हैं।
बढ़ती साइबर हिंसा और ‘स्व-वस्तुकरण’
सोशल मीडिया पर ‘बॉयज लॉकर रूम’ जैसी घटनाएँ यह दर्शाती हैं कि महिलाओं के प्रति समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी यौन मानसिकता किस प्रकार उभरकर सामने आ रही है। हाल के वर्षों में साइबरबुलिंग और ऑनलाइन उत्पीड़न के मामलों में वृद्धि देखी गई है। यह न केवल महिलाओं के प्रति अवमानना की भावना को उजागर करता है बल्कि उनके लिए डिजिटल दुनिया को भी असुरक्षित बनाता है।
महिलाओं पर डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म में यौन टिप्पणियों और अपमानजनक चित्रण की घटनाएँ भी आम हो गई हैं। यह ‘स्व-वस्तुकरण’ की भावना को जन्म देता है, जहाँ महिलाएँ खुद को समाज की यौन अपेक्षाओं के अनुरूप ढालने की कोशिश करने लगती हैं। इससे वे शर्म, चिंता और आत्मसम्मान की कमी जैसी मानसिक समस्याओं का शिकार हो जाती हैं।
समाधान और महिला सशक्तिकरण की दिशा में कदम
महिलाओं के वस्तुकरण और उनके खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए हमें कई ठोस कदम उठाने होंगे:
- मीडिया में महिलाओं का सकारात्मक चित्रण: फिल्मों, विज्ञापनों और सोशल मीडिया में महिलाओं को एक मजबूत और स्वतंत्र व्यक्तित्व के रूप में दिखाया जाना चाहिए।
- कानूनी सुधार: महिलाओं के खिलाफ साइबर हिंसा को रोकने के लिए सख्त कानून बनाए जाने चाहिए। मौजूदा आईटी अधिनियम और आईपीसी में बदलाव कर डिजिटल अपराधों के लिए सख्त दंड निर्धारित किए जाने चाहिए।
- सामाजिक जागरूकता अभियान: समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान और समानता की भावना को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए।
- शिक्षा और माता-पिता की भूमिका: माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों में लैंगिक समानता और महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए।
- युवाओं के लिए जीवन-कौशल शिक्षा: स्कूलों और कॉलेजों में लैंगिक समानता, आत्म-सम्मान और महिलाओं की गरिमा को लेकर पाठ्यक्रम तैयार किए जाने चाहिए।
निष्कर्ष
महिलाओं का वस्तुकरण और यौन शोषण एक गहरी सामाजिक समस्या है, जिसे जड़ से खत्म करने के लिए व्यापक प्रयासों की आवश्यकता है। जब तक मीडिया, समाज और कानून एकजुट होकर इस मुद्दे को हल करने के लिए कदम नहीं उठाते, तब तक महिला सशक्तिकरण केवल एक विचार मात्र बना रहेगा। हमें न केवल महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना होगा, बल्कि समाज की मानसिकता को भी बदलने की दिशा में ठोस कार्य करने होंगे।