भारतीय संस्कृति में स्त्री शक्ति को सदैव पूजनीय माना गया है। प्राचीन ग्रंथों में नारी के सम्मान को सर्वोपरि रखा गया है। मनुस्मृति में कहा गया है, “जहाँ महिलाओं का सम्मान किया जाता है, वहाँ देवता वास करते हैं।” भारतीय समाज में नारी को माता का स्थान दिया गया है, और यही कारण है कि इस देश को भारत माता कहा जाता है। आधुनिक काल में, सत्ययुग की पूजनीय माता शबरी के वंश से आने वाली द्रौपदी मुर्मू आज दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राष्ट्रपति हैं, जो महिलाओं के सशक्तिकरण का जीवंत उदाहरण हैं।

-प्रियंका सौरभ

दलित महिलाओं का संघर्ष और योगदान

भारत में दलित महिलाएँ समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जिन्होंने लंबे समय से सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव का सामना किया है। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आख्यानों में अक्सर हाशिए के समुदायों की महिलाओं के योगदान को अनदेखा किया जाता है। लेकिन इन दलित महिला नायिकाओं के संघर्ष और उपलब्धियों को याद करके हम उन संस्थागत बाधाओं को चुनौती दे सकते हैं जिनका सामना उन्होंने पीढ़ियों से किया है। आज की महिला नेता न केवल अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता और नस्लीय भेदभाव के खिलाफ वैश्विक आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।

इतिहास की प्रेरणादायक महिलाएँ

रामायण में शबरी की कहानी निस्वार्थ भक्ति और प्रेम का प्रतीक है। इतिहास में कई दलित महिलाओं ने सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाई है। उदाहरण के लिए:

  • संत निर्मला और सोयराबाई ने पारंपरिक हिंदू मान्यताओं को चुनौती दी।
  • नांगेली ने स्तन कर (निचली जाति की महिलाओं पर लगाया गया अन्यायपूर्ण कर) का विरोध किया।
  • कुइली ने तमिलनाडु में शिवगंगा की रानी वेलु नचियार की सेना का नेतृत्व करते हुए 1780 में ब्रिटिश सेना से संघर्ष किया।
  • झलकारीबाई, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई की विश्वसनीय सहयोगी थीं।
  • सावित्रीबाई फुले ने 1848 में भारत में महिला शिक्षा की आधारशिला रखी और महिला सेवा मंडल की स्थापना की।
  • दक्षायनी वेलायुधन संविधान सभा के लिए चुनी गई पहली दलित महिला थीं।
  • मूवलुर राममिर्थम अम्मैयार ने देवदासी प्रथा के खिलाफ अभियान चलाया।

इन महिलाओं की कहानियाँ हमें याद दिलाती हैं कि सामाजिक बदलाव लाने में शिक्षा और जागरूकता कितनी महत्वपूर्ण होती हैं।

महिलाओं के सशक्तिकरण की दिशा में आगे बढ़ते कदम

दलित महिलाओं को सशक्त करने के लिए कुछ ठोस कदम आवश्यक हैं:

  1. श्रम कानूनों में सुधार: महिलाओं को कार्यस्थल में सुरक्षित और समान अवसर मिलें।
  2. शिक्षा और कौशल विकास: अधिक महिलाओं को शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना।
  3. रोजगार के नए अवसर: सरकार को महिलाओं के लिए अधिक स्थिर-मजदूरी वाली नौकरियाँ सुनिश्चित करनी चाहिए।
  4. महिला आरक्षण विधेयक: राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए इसे शीघ्र पारित करना चाहिए।
  5. स्वास्थ्य और कल्याण नीतियाँ: मातृ और बाल स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
  6. स्वयं सहायता समूह: केरल के कुदुम्बश्री मॉडल की तरह महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनाने की दिशा में कदम उठाना।

निष्कर्ष

भारत में दलित महिलाओं को जाति, वर्ग और पितृसत्ता की तिहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सामाजिक संरचना के इन तीनों पहलुओं को समझे बिना उनके सशक्तिकरण की राह प्रशस्त करना कठिन है। समाज को चाहिए कि वह महिलाओं को समान अवसर देने के लिए आगे आए, ताकि वे सशक्त होकर देश की प्रगति में योगदान दे सकें। महिला शक्ति के सम्मान और सशक्तिकरण से ही एक समृद्ध और न्यायसंगत समाज की स्थापना संभव है।

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