विजय गर्ग

आत्मनिर्भरता एक महत्वपूर्ण गुण है, जो न केवल मनुष्य को स्वावलंबी बनाता है, बल्कि मानसिक रूप से भी सशक्त करता है। महिलाओं के संदर्भ में यह केवल अपने पैरों पर खड़े होने तक सीमित नहीं है, बल्कि आर्थिक आत्मनिर्भरता, स्वतंत्रता, सुरक्षा और शक्ति का प्रतीक भी है। यह परिवर्तन उनके व्यक्तिगत जीवन से लेकर समाज और अगली पीढ़ियों तक व्यापक प्रभाव डाल सकता है।

आधुनिक नारी की नई उड़ान

घर की चारदीवारी और चूल्हे-चौके तक सीमित रहने की धारणा अब बीते जमाने की बात हो गई है। आज की नारी न केवल परिवार संभाल रही है, बल्कि आर्थिक रूप से भी योगदान दे रही है। कई महिलाएं पारंपरिक नौकरी की बजाय स्वरोज़गार अपनाने की इच्छुक हैं। वे किसी महानगर की उच्च शिक्षित महिला ही नहीं, बल्कि किसी छोटे गांव या कस्बे की साधारण स्त्री भी हो सकती हैं, जिनके भीतर कुछ अलग कर दिखाने का जज़्बा है।

महिला उद्यमिता की ओर बढ़ते कदम

नीति आयोग के महिला उद्यमिता मंच, ट्रांस यूनियन सिबिल और माइक्रोसेव कंसल्टिंग द्वारा जारी ताज़ा रिपोर्ट इस बात का प्रमाण है कि देश में महिलाओं की वित्तीय प्रगति और क्रेडिट जागरूकता तेजी से बढ़ रही है। इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं सरकारी योजनाएँ, जो महिलाओं को बैंकिंग प्रणाली से जोड़कर स्वरोज़गार के लिए ऋण सुविधाएँ उपलब्ध करवा रही हैं। इनमें प्रमुख योजनाएँ हैं:

  • जन धन योजना
  • महिला उद्यमी मुद्रा योजना
  • स्टैंड-अप इंडिया योजना
  • प्रधानमंत्री रोज़गार प्रोत्साहन योजना

इसके अलावा माइक्रोफाइनेंस संस्थान और महिला-केंद्रित क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म, जैसे कि ग्रामीण फाउंडेशन इंडिया और मिलाप, भी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में सहायक सिद्ध हो रहे हैं।

बढ़ती वित्तीय भागीदारी

महिलाओं की वित्तीय स्वायत्तता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के अनुसार:

  • पिछले पाँच वर्षों में महिलाओं द्वारा लिए गए ऋणों की संख्या तीन गुना बढ़ी है।
  • इनमें से 60% महिलाएँ ग्रामीण या अर्ध-शहरी क्षेत्रों से हैं, जो एक सकारात्मक संकेत है।
  • डिजिटल भुगतान और बैंकिंग सुविधाओं की आसानी ने महिलाओं के लिए वित्तीय प्रबंधन को सरल बना दिया है।
  • महिलाओं की व्यावसायिक ऋण भागीदारी में 14% की वृद्धि दर्ज की गई है।
  • हर चौथा शेयर बाजार निवेशक महिला है, जो उनके वित्तीय प्रबंधन कौशल को दर्शाता है।

वित्तीय स्वतंत्रता: आत्मविश्वास और सामाजिक परिवर्तन का आधार

वित्तीय आत्मनिर्भरता केवल आर्थिक स्वतंत्रता ही नहीं, बल्कि आत्मसम्मान और सामाजिक बदलाव का भी आधार है। जब महिलाएँ वित्तीय संसाधनों को नियंत्रित और प्रबंधित करती हैं, तो उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और वे अपने परिवार के भविष्य के लिए अधिक सुनिश्चित महसूस करती हैं। यह सुरक्षा भावना उनके करियर और व्यक्तिगत रिश्तों को भी सशक्त बनाती है।

अभी भी हैं कई चुनौतियाँ

हालाँकि, महिलाओं की भागीदारी बढ़ रही है, लेकिन देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में उनकी हिस्सेदारी अभी भी केवल 18% है। इसके पीछे मुख्य बाधाएँ हैं:

  • पर्याप्त जानकारी का अभाव
  • व्यवसायिक नेटवर्क और मार्गदर्शन की कमी
  • कानूनी एवं तकनीकी संसाधनों की सीमाएँ
  • सामाजिक दबाव और पारंपरिक मान्यताएँ

सशक्तिकरण से समृद्धि की ओर

समाज में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण बदल रहा है, लेकिन समानता के लक्ष्य तक पहुँचने के लिए अभी लंबा सफर तय करना बाकी है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, यदि महिलाओं की श्रमशक्ति भागीदारी पुरुषों के बराबर हो जाए, तो भारत की GDP में 27% तक वृद्धि हो सकती है

पर्याप्त अवसर और संसाधन मिलें, तो महिलाएँ देश की अर्थव्यवस्था में निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं। जरूरत है, महिलाओं को सही मंच, मार्गदर्शन और आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित करने की। क्योंकि जब एक महिला सशक्त होती है, तो वह न केवल अपना बल्कि पूरे समाज का भविष्य उज्जवल बनाती है।

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