शस्त्र शास्त्र आभूषण जिनके चारों वेद भुजाएं हैं
जप तप दया दान और करुणा ब्राह्मण की ऋचाएं हैं

दिक् बलं क्षत्रिय बलं ब्राह्मण तेजोबलं बलम्।
एकेन दण्ड हस्तेन सर्वशस्त्र हतानि मे ll

वसुन्धरा पर ब्राह्मण के जन्म होना दुर्लभ है और उससे दुर्लभ है ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति …

आचार्य डॉ महेन्द्र शर्मा ‘महेश’

क्षमातेज आवेशोवतार श्री भगवान परशुराम जी का प्राकट्य उत्सव अक्षय तृतीया आने वाला है, मेदिनी पर जैसा गर्मी आंधी तूफान का वातावरण तब था वैसा ही वातावरण बन रहा है तेजोवतार होना है तो गर्मी लू तो चलेगी ही … आधी रात से भगवान ने मुझे जगा रखा कि मेरा कुछ और चिन्तन करो … तो जो ईश्वर ईश्वररीय आज्ञा हुई तो शब्दों से ईश्वर को प्रकट कर रहा हूं l यद्यपि श्री परशुराम पर साहित्य छितरा हुआ है किसी ग्रंथ या किसी पुराण में एक स्थान पर संकलित नहीं है लेकिन जितना पढ़ा, महापुरुषों के प्रवचन सुने और अपनी मनोर्बुद्धि के अश्व दौङाए तो मिला वही अंकित कर रहा हूं l मुझ को जो लिखने की आज्ञा (Divine Order) हुई है उसी को लिख रहा हूं कि भगवान विष्णु के 24 अवतारों के छट्ठे अवतार श्री भगवान परशुराम रुद्रावतार श्री हनुमानजी महाराज,श्री भगवान परशुराम जी के पितामह ऋषि ऋचीक और पिता जमदग्नि, ब्रह्मर्षि नारद जी,ऋषि शृगी ब्रह्मर्षि उद्दालक और उनके पौत्र नचिकेता, धर्म के प्रथम लक्षण धृति के परम पराकाष्टक तपोमूर्ति ब्रह्मर्षि गुरु वशिष्ठ तपोबलविज्ञान के चरम और परम अन्वेषक राजर्षि से ब्रह्मर्षि बने विश्वामित्र को ही अष्ट सिद्धियों का विज्ञान प्राप्त था l रावण आदि दैत्यों के पास अष्टसिद्धियों के विज्ञान केकुछ अंश अवश्य थे लेकिन पूर्ण विज्ञान का ज्ञान नहीं था इसलिए तो श्री हनुमान जी औरश्री भगवान परशुराम रावणपर हावी रहे इसका प्रमाण श्री सुन्दरकाण्ड और भगवान शिव द्वारा श्री भगवान परशुराम को आधी गुरु दक्षिणा के रूप में शिवभक्त रावण को महावीर श्री विष्णु उपासक सहस्त्रार्जुन को बंधन से मुक्त करवाना था l राजकुमार विश्वामित्र ने जब गुरु वशिष्ट जी के आश्रम से नंदिनी नामक कामधेनु को बलात उठा लिया तो उन्होंने नंदिनी मां से क्षमा मांगते हुए कहा था कि यह ब्राह्मण आपकी रक्षा न कर सका … आप स्वयं ही अपनी रक्षा करो और आश्रम में लौट आओ l तभी गौमाता के नथुनों से असंख्य शस्त्रधारी अश्वों पर सवार सैनिक प्रकट हुए जिन्होंने विश्वामित्र के सैनिकों खदेड़ दिया और अपने आश्रम लौट आयीl गायत्री के प्रवर्तक ऋषि विश्वामित्र जी ने त्रिशंकु को सशरीर स्वर्गलोक भेजने का प्रयास किया जब स्वर्गलोक से त्रिशंकु को नीचे धकेल दिया गया तो इन्होंने नवीन सृष्टि का निर्माण कर दियाl यद्यपि सहस्त्रार्जुन जैसे दैत्य को मारना कोई आसान कार्य नहीं था लेकिन श्री भगवान परशुराम जी ने इसे दो बार परास्त किया , इसके पास हजार बाजुओं का बल अवश्य था, लेकिन अष्ट सिद्धियों का पूर्ण विज्ञान नहीं , भगवान श्रीकृष्ण तो स्वर्गलोक से अपने गुरुपुत्र को वापिस लाए थे तो नचिकेता अपने पिता उद्दालक की आज्ञा से यमराज के द्वार पर जाकर बैठ गए थे और यमराज को उन्हें प्रतीक्षा करवाने के लिए न केवल क्षमा याचना करनी पड़ी अपितु वसुन्धरा पर वापिस भेजना पड़ाl अष्ट सिद्धियों का आंशिक विज्ञान महाराज दशरथ जी के पास भी था जब शनि ग्रह के रोहिणी नक्षत्र के द्वितीय चरण में प्रवेश न करने की प्रार्थना लेकर सशरीर शनि ग्रह पर गए थे क्यों कि शनि ग्रह का रोहिणी नक्षत्र के द्वितीय चरण में आरोहण विनाश कारी होता, चर्चा चल रही है तो यह भी लिखने में क्या हर्ज है ऐसी विनाशकारी स्थिति 2032 ईस्वी में 15 मई से 16 जून के मध्य बनेगी इसका ज्योतिषीय विशलेषण मेरे आगामी ग्रंथ ‘अन्तराल’ में ‘नौतपा’ कथानक में है l ब्राह्मणों के अष्टसिद्धी विज्ञान को और पराकाष्ठा पहुंचा देते हैं कि जब श्री भगवान परशुराम की माता रेणुका से नदी पर जलक्रीड़ा कर रहे गन्धर्व चित्ररथ को देख कर एकाग्रता का अनुशासन टूटा तो पूजा के लिए वह जल न ला सकी तो अनुशासन की अग्नि ऋषि जमदग्नि क्रोधित हुए और अपने बालकों से अपनी माता सिर उतारने का आदेश दिया और आज्ञा का पालन न होने पर उनके मस्तिष्क को संज्ञाहीन कर दिया लेकिन भगवान परशुराम तो अपने पिता की क्षमता के जानकार थे उन्होंने पितृ आज्ञा का पालन किया और अपनी माता का सिर उड़ा दिया जिससे पिता प्रसन्न हुएऔर उन्हें वरदान मांगने को कहा तो श्री भगवान परशुराम ने अपनी माता को पुनर्जीवित करवा लिया और अपने भाइयों को संज्ञा युक्त करवा लिया l इनके पितामह ऋषि ऋचिक भी परम ज्ञानी थे जो काम से निस्प्रह थे उन्हीं के कृपा प्रसादी चरु से ऋषि विश्वामित्र और जमदग्नि का जन्म हुआ था अब कथानक को विश्राम दें जिस पर कभी भी चिन्तन नहीं होता कि श्री भगवान परशुराम क्षमामूर्ति कैसे थे … जब महाबली सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने अपने मित्रों के साथ ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी तो यह प्रश्न उठा था कि जब सहस्रबाहु के क्रूर पुत्रों ने पहले. ही वार में ऋषि जमदग्नि का सिर उड़ा दिया था तो फिर 20 वार और क्यों किए … क्यों कि सहस्त्रार्जुन के पुत्र अपने सगे मौसा की ज्ञान क्षमता और शक्ति से परिचित थे कि उन्होंने अपनी पत्नि को पुनर्जीवित कर दिया था कहीं आज भी यह अपने ज्ञानबल से पुनः जीवित हो गया तो उनमें से कोई भी अपने घर वापस नहीं जा सकेगा , जब इस घटना का पता सहस्त्रार्जुन की धर्मपत्नी मृणमयी जो श्री भगवान परशुराम जी की मौसी भी थी तो वह यहां पर हरियाणा में जिला जींद के इक्कस ग्राम में पहुंची जहां पर घटना हुई थी जैसे ही वह पहुंची तो उसने अपने पति और पुत्रों के द्वारा किए गए जघन्य अपराध के लिए अपने भांजे श्री भगवान परशुराम से क्षमा प्रार्थना की तो श्री भगवान परशुराम बोले … हे माते ! ईश्वर की ऐसी ही इच्छा थी मेरी माताश्री भी इस वीभत्स दृश्य से आहत होकर विलाप करते करते रेणुका में लीन हो गई है उसने 21 बार विलाप करते हुए मुझसे वचन लिया है कि इन दुष्टों को इसलिए मार डालो कि सेवा करने वाले ब्राह्मणों से कोई इस तरह से क्रूर व्यवहार न करे l हे माते! मेरे पिता ने आप के पति पुत्र उनके मित्रों और लश्कर की भूख प्यास मिटा कर उन्हें जीवनदान ही तो दिया था … क्या किसी के प्राणों की रक्षा करना अपराध है तो मृणमयी भी विलाप करने लगी कि यद्यपि उसके पुत्रों का अपराध क्षम्य नहीं है कि उन्होंने एक गलत दृष्टांत स्थापित किया है और दिवंगत आत्माओं को भी वापिस नहीं लाया जा सकता लेकिन आप तो ब्रह्मज्ञानी हैं , आप ही प्रायश्चित का कोई अन्य मार्ग सुझाएं… तो श्री भगवान परशुरामजी ने कहा कि माते! यदि आप के पति पुत्र और मित्र यहां आकर यह प्रण लें और क्षमा मांगे कि सेवा करने वाले ब्राह्मणों के साथ वह ऐसा व्यवहार नहीं करेंगे तो भृगुवंश उन्हें क्षमा कर देगा l लेकिन भगवान ने दैत्यबुद्घि अहंकारी राजाओं को ऐसी सुमति नहीं दी थी कि वह अपने अपराधों पर प्रायश्चित करें और क्षमा मांगे तो परमात्मा को तो अहंकार प्रिय नहीं है तो इसका परिणाम जो हुआ यह हम सभी जानते हैं l हम सभी को यह संज्ञान होना चाहिए कि कर्म का जो बीज बोया जाएगा उसका फल तो भोगना ही होगा चाहे वह जीवन का कोई भी क्षेत्र हो.. पारिवारिक सामाजिक राजसिक और अर्थिक …. सब में क्षणिक लाभ के भाव को त्यागते हुए क्षेत्रे क्षेत्रे धर्म कुरु l

अन्तमें नवम गुरु श्री अर्जुनदेवजी महाराजश्री को प्रणाम करता हूं जिन्होंने शीर्ष बलिदान देकर सनातन धर्म की रक्षा की l

युद्ध नहीं जिनके जीवन में
वो लोग बड़े अभागे होंगे
या तो प्रण को तोड़ा होगा
या फिर युद्ध से भागे होंगे
दीपक का कोई अर्थ नहीं है
जब तक तम से नहीं लड़ेगा
सूरज नहीं प्रभा बांटेगा
जब तक स्वयं नहीं धधकेगा

श्री भगवान परशुराम जयंती पर अग्रिम शुभकामनाएं क्योंकि आज रात्रि ही उनका आदेश हुआ था कि मुझे शब्दों में प्रकट करें… जो उन्होंने लिखवाया निवेदन कर दिया है l
पुनः प्रणाम l
श्री निवेदन …… आचार्य डॉ महेन्द्र शर्मा ‘महेश’

देवभूमें पानीपत 92157 00495

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