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वैशाख शुक्ल नवमी – 5 मई 2025
प्रस्तुति: श्री गुरु शंकराचार्य पदाश्रित आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा ‘महेश’

“कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा
बुद्ध्यात्मना वा प्रकृते: स्वभावात्।
करोमि यद्यत्सकलं परस्मै
नारायणाय समर्पयामि॥”

???? भूमिजा सीता: सहिष्णुता की साक्षात प्रतिमूर्ति

भगवान श्री जानकी जयंती के पावन अवसर पर यह जानना आवश्यक है कि माता सीता का प्राकट्य केवल एक दिव्य घटना नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता को सहिष्णुता, धैर्य और धर्म के प्रथम लक्षण ‘धृति’ की साक्षात प्रेरणा है।
भूमिजा अर्थात भूमि से उत्पन्न – सीता जी धरती की तरह ही सहनशील, सहिष्णु और धैर्यवान हैं। जब राजा जनक अपने राज्य में दुर्भिक्ष दूर करने हेतु भूमि जोत रहे थे, तब उस धर्ममय प्रयास से भूमिदेवी से जानकी का प्राकट्य हुआ – यह दृश्य स्वयं में प्रतीक है कि धर्म और धृति से ही जीवन में नवसंचार होता है।

???? धृति के नवतत्व – जानकी जी के आचरण में

माता सीता के व्यक्तित्व में धृति के नौ गुण समाहित हैं –

  • काया – तप और त्याग से युक्त जीवन
  • वाचा – मृदु, मितभाषी, मर्यादित वाणी
  • मन – परम समर्पणशील
  • इंद्रियाँ – आत्मनियंत्रण की साक्षात प्रतिमूर्ति
  • बुद्धि-आत्मा – सात्विक विवेक और करुणा
  • प्रकृति – सहज और सहजता में ही दिव्यता
  • संकल्प – किसी का अहित न करने का प्रण
  • ज्ञान – ‘जाही विधि राखे राम’ की भावना
  • त्याग – हर स्थिति में धर्ममय जीवन

इन्हीं गुणों के कारण वे भक्तिस्वरूपा बनीं और ज्ञानस्वरूप श्रीराम की अर्धांगिनी हुईं।

???? नारायण तत्व और अनुशासन का संदेश

‘नारायण’ का अर्थ है – “जिसका आयन (आवास) जल में है।”
जैसे जल हर पात्र में समा जाता है, वैसे ही जब मनुष्य विपरीत परिस्थितियों में भी ईश्वरीय इच्छा मानकर स्थिति को स्वीकार करता है, वही नारायणतुल्य बनता है। यह जानकी नवमी का संदेश है – अनुशासित जीवन ही धर्ममय जीवन का आधार है।

⚖️ शक्ति और शक्तिमान: समरसता का बोध

“एवं परस्परापेक्षा शक्तिः शक्तिमतो स्थिता।
न शिवेन विना शक्तिः न शक्तिः शिवेन विना॥”

शक्ति और शक्तिमान परस्पर पूरक हैं। जैसे श्रीराम आदिपुरुष हैं, वैसे सीता आदिशक्ति। शक्ति के बिना शिव शव हैं, और शक्तिमान बिना शक्ति के निष्प्रभावी।

राम को ‘श्रीराम’ बनाने वाली शक्ति स्वयं सीता हैं। उनके मिलन में भक्ति और ज्ञान का समागम है, शक्ति और कल्याण का अद्भुत संतुलन है।

???? श्री राम दरबार – समरसता का आदर्श प्रतीक

शिव परिवार में विषमता के प्रतीकों – नंदी, सिंह, मूषक, मोर – सभी एक साथ रहते हैं। यही सिखाता है कि विषमता में समता संभव है, जब दृष्टिकोण ईश्वरीय हो।
यही दर्शन श्रीराम दरबार में भी है – वहाँ करुणा है, मर्यादा है, और सौम्यता की प्रेरणा है। यह सभी का परिवार है – रावण से युद्ध किया गया, परंतु कभी प्रतिशोध नहीं पाला गया।

???? कालिया प्रसंग का प्रतीकात्मक बोध

जब कालिया नाग भगवान श्रीकृष्ण से प्रश्न करता है कि “मुझे ऐसा बनाया गया, तो फिर मुझ पर क्रोध क्यों?”, तो भगवान उत्तर देते हैं – “मानव के पास विवेक है, धर्म का ज्ञान है, अनुशासन और सिद्धांतों के निर्वहन की क्षमता है।”
इसीलिए हम मनुष्यों पर यह उत्तरदायित्व है कि हम अपने कर्मों और विचारों में सात्विकता को अपनाएं, और अपनी प्रवृत्तियों पर संयम रखें।

उपसंहार: जानकी नवमी का सन्देश

सीता जी त्याग, धैर्य, और धर्म की साक्षात मूर्ति हैं। उनका चरित्र हमें सिखाता है कि जीवन में सहिष्णुता और समर्पण ही वास्तविक शक्ति हैं।
श्री जानकी नवमी का यह पर्व हमें आह्वान करता है कि हम हिंसा, क्रोध, द्वेष और भोग की प्रवृत्तियों को त्याग कर सत्य, संयम और समरसता के मार्ग पर चलें।

???? श्री जानकी नवमी की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं

ईश्वर से प्रार्थना है कि समस्त विश्व में शांति, सहिष्णुता, करुणा और धर्म का आलोक फैलता रहे।
जय सीता-राम! जय जानकी माता!

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