कैलाश मानसरोवर यात्रा,5 वर्षों के बाद रजिस्ट्रेशन शुरू- 30 जून से 25 अगस्त 2025 तक होगी यात्रा-रजिस्ट्रेशन की अंतिम तारीख 13 मई 2025

पहलगाम तनाव के बीच मानसरोवर यात्रा, भारत चीन के बीच सांस्कृतिक वह जनसंपर्क आदान-प्रदान का महत्वपूर्ण हिस्सा है

भारत-चीन राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ पर, मानसरोवर यात्रा को द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने में मील का पत्थर साबित होगी

– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

 गोंदिया महाराष्ट्र—भारत-चीन के बीच सांस्कृतिक एवं जनसंपर्क आदान-प्रदान का प्रतीक कैलाश मानसरोवर यात्रा पांच वर्षों के अंतराल के बाद पुनः प्रारंभ हो रही है। यह यात्रा 30 जून से 25 अगस्त 2025 के बीच आयोजित की जाएगी और इसके लिए पंजीकरण की अंतिम तिथि 13 मई 2025 निर्धारित की गई है।

सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व

कैलाश मानसरोवर न केवल हिंदुओं के लिए बल्कि जैन और बौद्ध श्रद्धालुओं के लिए भी अत्यंत पवित्र स्थल है। यह तीर्थयात्रा, भारत और चीन के बीच राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर सांस्कृतिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाने में एक मील का पत्थर सिद्ध हो सकती है।

वर्तमान में भले ही पहलगाम में तनावपूर्ण स्थिति हो, लेकिन इसके बावजूद भक्तों में मानसरोवर यात्रा के प्रति उत्साह बना हुआ है। यह दर्शाता है कि आध्यात्मिक आस्था भय से परे होती है।

यात्रा के मार्ग और व्यवस्थाएँ

कैलाश मानसरोवर यात्रा दो प्रमुख मार्गों से आयोजित की जाएगी:

  1. उत्तराखंड का लिपुलेख दर्रा – इस मार्ग से पांच जत्थे भेजे जाएंगे।
  2. सिक्किम का नाथू ला दर्रा – इस मार्ग से 15 जत्थे प्रस्थान करेंगे।

प्रत्येक जत्थे में 50 श्रद्धालु शामिल होंगे। यह यात्रा कठिन एवं शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण होती है, क्योंकि इसमें लगभग 51 किलोमीटर की कठिन पैदल चढ़ाई करनी पड़ती है, और यह क्षेत्र समुद्र तल से 21,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।

यात्रा का राजनीतिक पृष्ठभूमि में महत्व

पिछले पांच वर्षों से यह यात्रा स्थगित थी। कारण थे – कोविड-19 महामारी और भारत-चीन सीमा विवाद, विशेषकर डोकलाम, देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों में।

हालांकि अक्टूबर 2024 में रूस के कजान शहर में हुई भारत-चीन शिखर बैठक के बाद हालात बदले। दोनों देशों की सेनाओं ने विवादित क्षेत्रों से पीछे हटने का निर्णय लिया, और अब 2025 में कैलाश यात्रा और सीधी हवाई सेवाएँ दोनों बहाल की जा रही हैं।

पूर्व समझौते और चीन की भूमिका

भारत और चीन के बीच दो प्रमुख समझौते हुए:

  1. 20 मई 2013: लिपुलेख दर्रा मार्ग से यात्रा को अनुमति देने का समझौता।
  2. 18 सितंबर 2014: नाथू ला दर्रे से यात्रा के लिए दूसरा समझौता।

इन समझौतों के अनुसार हर पांच वर्षों में अनुमति स्वतः नवीनीकृत होती है।

चीन के विदेश मंत्रालय ने हाल ही में कहा कि वह भारत के साथ मिलकर कैलाश मानसरोवर यात्रा की पुनः शुरुआत के लिए तैयारियों को आगे बढ़ा रहा है। उन्होंने इसे दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक और जनसंपर्क का महत्वपूर्ण सेतु बताया।

कैलाश पर्वत का रहस्य

कैलाश पर्वत अब तक अजेय बना हुआ है। इसकी ऊंचाई 6638 मीटर है, जो माउंट एवरेस्ट से कम है, फिर भी आज तक कोई इसे फतह नहीं कर पाया। इसका शिखर शिवलिंग के आकार का है, जो इसे और भी पवित्र बनाता है।

निष्कर्ष

कैलाश मानसरोवर यात्रा का फिर से शुरू होना सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं है, बल्कि यह भारत-चीन के बीच टूटे संबंधों की पुनर्स्थापना की पहल भी है। यह सांस्कृतिक, राजनयिक और आध्यात्मिक दृष्टि से एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है।

-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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