वैश्विक स्तरपर आतंक को वित्त पोषित करने वाले देशों पर सख़्त पाबंदियाँ लगाना समय की मांग
वैश्विक मंचोंपर अब दुनियाँ की आतंक सरपरस्त सरकारों और उनके आकाओं को आतंकवाद के खिलाफ़ जीरो टॉलरेंस की संधियों समझौता में सख़्ती व कठोरता से बांधना ज़रूरी
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

आज की दुनियाँ में आतंकवाद एक ऐसी वैश्विक समस्या बन चुका है, जिसने हर देश को अपने भयावह प्रभाव से प्रभावित किया है। आतंकवाद और भ्रष्टाचार दोनों ही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जिनमें से एक आतंक को पोषण देता है और दूसरा उसके अस्तित्व को वैधता। आतंकवाद की जड़ में सबसे सशक्त हथियार है—वित्त पोषण। इसीलिए आज वैश्विक स्तर पर यह आवश्यक हो गया है कि जो देश आतंकवाद को आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं, उन पर कठोर प्रतिबंध लगाए जाएं।
भारत का सख्त रुख और हालिया घटनाएं:
22 अप्रैल 2025 को भारत में एक भीषण आतंकी हमला हुआ, जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई। पीड़ितों का धर्म और जाति पूछकर की गई हत्या इस कुकृत्य की क्रूरता को दर्शाता है। इसके पश्चात भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए सीमा पार सैकड़ों आतंकियों के ठिकाने तबाह किए और 10 मई 2025 को दोपहर 3:35 बजे सीजफायर हुआ।

12 मई 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए आतंक के खिलाफ देश की नीति को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को आतंक को पनाह देना बंद करना होगा और अब भारत उससे केवल “आतंकवाद” और “पीओके” पर ही बात करेगा। उन्होंने दो टूक कहा:
“टेरर और टॉक, टेरर और ट्रेड एक साथ नहीं चल सकते।”
प्रधानमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि अब भारत आतंकवाद को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेगा और देश के स्वदेशी हथियारों से सेना को सशक्त बनाया गया है। उन्होंने बताया कि किस प्रकार “ऑपरेशन सिंदूर” जैसे अभियानों से आतंकियों को करारा जवाब दिया गया।
वैश्विक एकता और नो मनी फॉर टेरर:

वर्तमान डिजिटल युग में आतंकवाद और भ्रष्टाचार की जड़ें तेजी से फैल रही हैं। अतः अब समय आ गया है कि ‘नो मनी फॉर टेरर’ जैसे अभियानों के माध्यम से वैश्विक स्तर पर आतंक के आर्थिक स्रोतों को समाप्त किया जाए। भारत ने ‘नो मनी फॉर टेरर’ सम्मेलन, इंटरपोल की आम सभा और संयुक्त राष्ट्र की आतंकवाद विरोधी समिति की मेजबानी कर यह संदेश दिया है कि वह इस वैश्विक चुनौती के समाधान में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
यह सम्मेलन न केवल आतंकवाद के वित्तपोषण के औपचारिक व अनौपचारिक माध्यमों पर चर्चा करता है, बल्कि उभरती टेक्नोलॉजी और उसके दुरुपयोग से जुड़ी चुनौतियों पर भी सहयोग और समाधान तलाशने का मंच प्रदान करता है।
निष्कर्ष
आतंकवाद का कोई धर्म, जाति या मजहब नहीं होता। यह समस्त मानवता का शत्रु है। अमेरिका का 9/11 हो या भारत का 26/11, हर घटना ने वैश्विक चेतना को झकझोरा है। अतः आज आवश्यकता इस बात की है कि समूचा विश्व एक मंच पर आकर ज़ीरो टॉलरेंस नीति को अपनाए, और उन सरकारों व संगठनों पर सख्त कार्रवाई करे जो आतंक का समर्थन या वित्तपोषण करते हैं।
आइए, हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि आतंक और उसके समर्थकों के खिलाफ एकजुट होकर खड़े होंगे और एक शांतिपूर्ण, सुरक्षित और विकसित विश्व की नींव रखेंगे।
-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र