ग्लोबल साउथ का लीङर बनने की फिराक में चीन-संयुक्त राष्ट्र व अमेरिका को चुनौती देने के मूड में चीन 

चीन अंतरराष्ट्रीय विवादों को सुलझाने के बजाय पहले भारत फिलिपींस वियतनाम सहित अनेको पड़ोसियों से सीमा विवाद सुलझाए तो बेहतर होगा

-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

गोंदिया महाराष्ट्र – वैश्विक स्तर पर  दुनिया के मंच पर हर देश और संगठन नेतृत्व की आकांक्षा रखता है। हर पार्टी, मंच, समिति, यहां तक कि व्यक्ति विशेष तक नेतृत्व का सपना देखता है। इसी संदर्भ में चीन ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है – अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता संगठन (IOMED) की स्थापना।

चीन की वैश्विक आकांक्षा और नया संगठन

30 मई 2025 की रात, मीडिया जगत में खबरें छाईं कि चीन ने हांगकांग में IOMED की स्थापना की। इस सम्मेलन में 85 देशों और 20 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लगभग 400 उच्च-स्तरीय प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस आयोजन में बेलारूस, पाकिस्तान, इंडोनेशिया और क्यूबा सहित कई देशों ने हिस्सा लिया।

चीन का यह कदम वैश्विक दक्षिण (Global South) में नेतृत्व स्थापित करने की दिशा में है। ग्लोबल साउथ शब्द उन देशों के लिए प्रयुक्त होता है जो आर्थिक दृष्टि से कम विकसित हैं। चीन इस संगठन को संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका के प्रभाव को संतुलित करने के इरादे से आगे बढ़ा रहा है।

चीनी विदेश मंत्री ने कहा कि उनका देश लंबे समय से आपसी समझ और बातचीत के ज़रिए मतभेद सुलझाने का पक्षधर रहा है। उन्होंने कहा कि हांगकांग स्थित यह संगठन देशों के बीच सौहार्दपूर्ण समाधान और वैश्विक संबंधों में सामंजस्य बढ़ाने की दिशा में काम करेगा।

संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका को चुनौती

यह स्पष्ट है कि चीन इस नए संगठन के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका की भूमिका को चुनौती देना चाहता है। संयुक्त राष्ट्र पर हाल के वर्षों में अपनी भूमिका को लेकर प्रश्न उठते रहे हैं, और ऐसे में चीन ने एक नया मंच तैयार कर अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश की है।

बीजिंग ने IOMED को विश्व का पहला अंतर-सरकारी कानूनी संगठन बताया है जो संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों की सुरक्षा के लिए काम करेगा। इसके साथ ही हांगकांग को एशिया में अंतरराष्ट्रीय कानूनी और विवाद समाधान सेवा केंद्र के रूप में स्थापित करने की बात कही गई।

विरोधाभास और आलोचना

चीन की यह पहल कई सवाल भी खड़े करती है। चीन स्वयं भारत, फिलीपींस, वियतनाम जैसे देशों के साथ सीमा विवादों में उलझा हुआ है। इसके अतिरिक्त, दक्षिण चीन सागर विवाद में अंतरराष्ट्रीय अदालत के फैसले को चीन ने मानने से इनकार कर दिया था। रूस-यूक्रेन युद्ध में भी चीन की मध्यस्थता की कोशिशों को महत्व नहीं दिया गया।

एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी का कहना है कि चीन को पहले अपने पड़ोसियों के साथ लंबित विवाद सुलझाने चाहिए, फिर वैश्विक मध्यस्थता की भूमिका का दावा करना चाहिए।

निष्कर्ष

चीन की यह पहल उसके ग्लोबल साउथ में नेतृत्व की महत्वाकांक्षा और संयुक्त राष्ट्र तथा अमेरिका को चुनौती देने की रणनीति को दर्शाती है। लेकिन उसकी अपनी सीमाओं और विवादों को देखते हुए यह प्रयास कितनी दूर तक सफल होगा, यह देखना दिलचस्प रहेगा।

-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र 

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