न तो फाइल, न सिफारिश — फिर किसके भरोसे बनेगा पटौदी जिला?

फ़तेह सिंह उजाला

पटौदी।हरियाणा में जिला बनाने की मांग को लेकर सियासी गलियारों में एक बार फिर हलचल है, लेकिन इस बार पटौदी की उम्मीदों पर खुद उसकी विधायक के बयान ने पानी फेर दिया है। पटौदी क्षेत्र से लगातार दूसरी बार विधायक बनीं बिमला चौधरी ने सार्वजनिक मंच पर यह स्वीकार किया कि “जिला बनाने के लिए कोई फाइल ही सरकार को नहीं दी गई।”

यह बयान उन्होंने एक सोशल मीडिया चैनल से बातचीत में दिया — और यही वह बयान है, जिसने पटौदी को जिला बनाने की मांग की बुनियाद को ही हिला दिया है।

कभी ज़ोरदार वकालत, अब साफ़ इनकार!

अब तक बार-बार यह दावा किया जाता रहा था कि मुख्यमंत्री को, जिला निर्माण कमेटी को और सरकार के संबंधित मंत्रियों को पटौदी को जिला बनाने का प्रस्ताव सौंपा गया है। फोटो, प्रेस नोट और मंच से वादों की भरमार थी। लेकिन अब खुद विधायक का यह कहना कि “कोई फाइल ही नहीं गई”, न सिर्फ जनप्रतिनिधित्व की गंभीरता पर सवाल खड़े करता है, बल्कि सरकार की नीयत पर भी संशय पैदा करता है।

“मानेसर और पटौदी दोनों ही मेरे लिए बराबर हैं” — बिमला चौधरी

अपने बयान में विधायक बिमला चौधरी ने कहा, “मानेसर और पटौदी दोनों को जिला बनाना चाहिए। दोनों मेरे लिए एक समान हैं। जो भी मांग पत्र मानेसर और पटौदी के लोगों ने दिया, वह सरकार और मुख्यमंत्री तक पहुंचा दिया गया है।”

यह बयान सुनकर यह सवाल उठता है — जब दोनों की मांग को एक साथ रखकर कोई ठोस प्रस्ताव नहीं दिया गया, तो फिर जिला कैसे और कौन बनाएगा?

नेतृत्व की कमी या जनता की अनदेखी?

शनिवार को पटौदी में सर्व समाज और जिला निर्माण कमेटी की बैठक हुई। 4 जून बुधवार को ‘पटौदी बंद’ का आह्वान भी किया गया है। इन सबके बीच विधायक का यू-टर्न न केवल आंदोलन को कमजोर करता है, बल्कि जनता की भावनाओं के साथ खिलवाड़ जैसा महसूस होता है।

क्या यह सिर्फ आश्वासन की राजनीति है?
जिन नेताजी के नेतृत्व में जिला निर्माण कमेटी अब तक उम्मीदों का झंडा उठाए हुए थी, वो भी अब केवल “देखेंगे-करेंगे” की राजनीति में खोते दिख रहे हैं।

अब जनता के दरबार में गेंद — कौन लड़ेगा पटौदी की लड़ाई?

पटौदी के मतदाताओं ने अपना कीमती वोट देकर प्रतिनिधि चुना, ताकि उनकी मांगें विधानसभा में पहुंच सकें। लेकिन अब जिला निर्माण का मुद्दा उलझता जा रहा है।

बड़ा सवाल यही है — जब विधायक ही वकालत से पीछे हटें, तो फिर जनता की उम्मीदों का बोझ कौन उठाएगा?

Share via
Copy link