पटौदी बंद की अपील, लेकिन सवाल — सरकार पर दबाव कौन बनाएगा?

औद्योगिक क्षेत्र और वेयरहाउस — सरकार की नब्ज यहां धड़कती है

फतह सिंह उजाला

पटौदी / मानेसर / जाटोली। पटौदी को जिला बनाने की माँग को लेकर आंदोलन की रफ्तार तेज हो गई है। 4 जून, बुधवार को पटौदी बंद के ऐलान के साथ ही सर्व समाज और जिला निर्माण कमेटी ने जन समर्थन जुटाने की मुहिम शुरू कर दी है। दुकान-दुकान जाकर व्यापारियों से समर्थन की अपील की जा रही है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि — इस बंद से सरकार पर वास्तव में कितना असर पड़ेगा?

फलों की ठेली या चाय की दुकान बंद होने से क्या बदलेगी सरकार की सोच?

सड़कों किनारे फल बेचने वाले, कुल्फी-आइसक्रीम वाले, चाय-पान के खोखे, छोले-कुलचे और जूस की रेहड़ियों के बंद होने से, भले ही बाजारों में सन्नाटा पसरे, लेकिन सरकारी राजस्व पर इनका असर बेहद सीमित होता है। यही वजह है कि सरकार पर दबाव की वास्तविक ताकत औद्योगिक प्रतिष्ठानों और बड़े संस्थानों से आने वाली आवाज में होती है।

एक ठेले वाले ने नाम न छापने की शर्त पर कहा — “हम रोज का माल लाते हैं, रोज की बिक्री पर घर चलता है। एक दिन दुकान बंद किया, तो नुकसान हमारा है, सरकार को क्या फर्क पड़ेगा?”

औद्योगिक क्षेत्र और वेयरहाउस — सरकार की नब्ज यहां धड़कती है

पटौदी और उसके आसपास के क्षेत्रों — मानेसर, बिनोला, खेड़की दौला में बड़ी संख्या में उद्योग, वेयरहाउस और फैक्ट्रियां हैं, जहाँ हजारों लोग कार्यरत हैं। ऑनलाइन ऑर्डर और सप्लाई चेन यहाँ बेरोक-टोक जारी है। ये ही वो इकाइयाँ हैं जो राज्य सरकार को सबसे ज्यादा टैक्स और राजस्व देती हैं।

अगर इन प्रतिष्ठानों ने बंद का समर्थन किया होता, या औद्योगिक संगठनों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला होता, तो सरकार को आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर ठोस दबाव का सामना करना पड़ता।

छोटा दुकानदार सहम कर चुप, जनप्रतिनिधि खामोश, दबाव बनाने की रणनीति अधूरी

आंदोलनकारी बाजारों में घूमकर अपील कर रहे हैं कि फल-सब्जी मत लाना, दुकान मत खोलना, लेकिन छोटे दुकानदारों की खुलकर प्रतिक्रिया नहीं आ रही। उनमें डर और अनिश्चितता का माहौल है — कहीं विरोध की कीमत आजीविका से न चुकानी पड़े।

उधर, जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता भी बंद के असर को सीमित बना रही है। जब विधायक खुद यह कह दें कि जिला बनाने की कोई फाइल सरकार को नहीं भेजी, तो फिर सवाल उठता है कि सरकार के सामने मजबूती से बात कौन रखेगा?

साफ है — असर तभी होगा जब राजस्व पर चोट होगी

पटौदी बंद का नैतिक और जनभावनात्मक महत्व जरूर है, लेकिन सरकार पर वास्तविक असर तब पड़ेगा जब उसे आर्थिक नुकसान महसूस होगा। इसके लिए जरूरी है कि बंद का दायरा बड़े उद्योगों, परिवहन, और आपूर्ति श्रृंखला तक फैले।

जब तक बंद महज चाय-पान, फल-सब्ज़ी, या रेहड़ी-खोखे तक सीमित रहेगा, तब तक सरकार के लिए यह सिर्फ एक “स्थानीय असंतोष” बना रहेगा — कोई गंभीर चेतावनी नहीं।

अंत में, सवाल सरकार से नहीं, रणनीति से है

क्या पटौदी जिला बनने की मांग सिर्फ नारों और पोस्टरों से पूरी होगी? या फिर इसके लिए विचारशील रणनीति, व्यापक समर्थन और आर्थिक दबाव जरूरी होगा?

सरकार को झुकाना है, तो उसे वहाँ चोट करनी होगी जहाँ उसे सबसे ज्यादा दर्द होता है — ‘राजस्व’।

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