सफल बंद के बाद सवाल बड़ा—अब अगला कदम क्या होगा? क्या जनप्रतिनिधियों पर भी बढ़ेगा दबाव?

फतह सिंह उजाला

मानेसर/बोहड़ाकला/जाटोली। बुधवार को पटौदी को जिला बनाए जाने की माँग को लेकर पटौदी जिला निर्माण कमेटी और सर्व समाज के आह्वान पर किए गए बंद ने क्षेत्र में नई चेतना और ज़िम्मेदारी की हवा भर दी है। बंद की सफलता ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब जनता ने पगड़ी कमेटी के सिर बांध दी है—यानी अब जवाबदेही भी उन्हीं की है।

गाँव-गाँव, गली-गली बंद का व्यापक असर, लेकिन औद्योगिक क्षेत्र रहा उदासीन

बंद के दौरान बिलासपुर, बोहड़ाकला, पटौदी सब्जी मंडी, पुराना हेली मंडी, जाटोली सहित कई गाँवों और बाज़ारों में पूर्णतः शटर डाउन रहा। रेहड़ी, फड़ी, चाय-पान, छोले-भटूरे और खोमचा विक्रेताओं ने दिल खोलकर समर्थन दिया।
हालाँकि औद्योगिक क्षेत्रों जैसे मानेसर, खेड़कीदौला, बिनोला और वेयरहाउस बेल्ट में बंद का कोई प्रभाव नहीं दिखा। इन क्षेत्रों में कमर्शियल गतिविधियाँ सामान्य दिनों की तरह जारी रहीं।

जनता की भावना स्पष्ट, लेकिन क्या उद्योगपति और बड़े कारोबारी आगे आएंगे?

सवाल यह उठता है कि अगर सरकार पर वास्तव में दबाव बनाना है, तो बड़े औद्योगिक प्रतिष्ठानों और उद्योगपतियों का समर्थन जरूरी है। सरकार ऐसे बंद को तभी गंभीरता से लेती है जब आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़े। इस मोर्चे पर अभी कमेटी को और काम करना बाकी है।

“बुधवार का बंद सिर्फ़ ट्रेलर था, ज़रूरत पड़ी तो पूरी फ़िल्म दिखाएँगे”: जिला निर्माण कमेटी

पटौदी जिला निर्माण कमेटी के सदस्यों—अजीत यादव, राजेंद्र यादव, दलीप पहलवान, राधेश्याम मक्कड़, चंद्रभान सहगल, भूपेंद्र परासोली, इमरान खान, तेजभान पटवारी, सुभाष यादव समेत दर्जनों प्रमुख नागरिकों ने मीडिया से कहा कि

“पटौदी जिला बनाने की माँग अब केवल माँग नहीं रही, यह क्षेत्र की आवाज बन चुकी है। यदि सरकार ने अनसुना किया तो आमरण अनशन जैसे कठोर कदम उठाए जाएंगे।”

उनका यह भी कहना था कि पटौदी सभी प्रशासनिक मानकों पर जिला बनाए जाने के लिए उपयुक्त है, और पाँच प्रस्तावित नए जिलों की सूची में इसका नाम भी जोड़ा जाना चाहिए।

अब सवाल बड़ा: क्या जनप्रतिनिधियों पर भी होगा दबाव?

बंद के दौरान जनता की भागीदारी से यह साबित हो गया कि पटौदी जिला की माँग ज़मीनी हकीकत है।
लेकिन अब जनता पूछ रही है—
क्या यही दबाव चुने हुए जनप्रतिनिधियों (विधायक, सांसद और केंद्रीय मंत्री) पर भी बनाया जाएगा?
क्या कमेटी अब अगला धरना जनप्रतिनिधियों के आवासों पर देगी?
लोकतंत्र में जनता की ताक़त ही जनप्रतिनिधियों की असली ताक़त है, और जब जनता उठ खड़ी हो, तो राजनीतिक चुप्पी टिक नहीं सकती।

फिर सवाल: कब तक इंतजार और अगला कदम क्या?

जनता का समर्थन कमेटी के साथ है, लेकिन अब सवाल उठता है कि

“कमेटी कब तक इंतज़ार करेगी? क्या अगला कदम तय है? क्या सरकार को अंतिम चेतावनी दी जाएगी?”

जब सरकार की ओर से बार-बार जारी प्रस्तावित जिलों की सूची में पटौदी का नाम नहीं आता, तो क्या यह आवाज़ नक्कारखाने में तूती बनकर रह जाएगी? या फिर इतिहास में दर्ज होने वाला आंदोलन तैयार किया जाएगा?

निष्कर्ष: पगड़ी सिर पर, अब कदम भी ठोस हों

बुधवार का बंद एक चेतावनी था, जनता का समर्थन एक अवसर है। अब कमेटी को तय करना होगा कि

  • क्या जनप्रतिनिधियों पर खुलकर दबाव बनाया जाएगा?
  • क्या उद्योगपतियों का सहयोग लिया जाएगा?
  • और क्या आंदोलन को एक रणनीतिक रूप दिया जाएगा?

पटौदी जिला की जिद अब आंदोलन के मोड़ पर है। जनता ने पगड़ी बाँध दी है, अब कमेटी को यह साबित करना होगा कि वह इसे जमीन पर उतार सकती है।

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