किताबी ज्ञान बनाम व्यवहारिक ज्ञान 

तुम तो पढ़े लिखे हो! हम तो ठहरे अनपढ़!

व्यंग्य – व्यवहारिक शिक्षा और ज्ञान में परिपक्व व्यक्तियों द्वारा किताबी शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों पर तानों की बौछार!

व्यवहारिक शिक्षा और ज्ञान के साथ किताबी ज्ञान की डिग्री सोने पर सुहागा – हर व्यक्ति शिक्षित है कोई व्यवहारिक तो कोई किताबी

– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

तुम तो पढ़े-लिखे हो, हम तो ठहरे अनपढ़!”

गोंदिया महाराष्ट्र- वैश्विक स्तरपर यह वाक्य एक व्यंग्य है, जो अक्सर व्यवहारिक ज्ञान से परिपक्व लोग किताबी ज्ञान प्राप्त लोगों को सुनाते हैं। यह सिर्फ एक कथन नहीं, बल्कि सामाजिक विडंबना है जिसमें जिम्मेदारियों से बचने और हालात के अनुसार अपनी बात को सही साबित करने की चतुराई छिपी होती है।

 किताबी बनाम व्यवहारिक शिक्षा — दो पहलू, एक उद्देश्य

सृष्टि के सबसे बुद्धिमान प्राणी मनुष्य को जन्म के साथ ही परिवार, समाज और परिवेश से व्यवहारिक ज्ञान मिलना शुरू हो जाता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, यह ज्ञान उसके अनुभव और मानवीय संपर्कों से समृद्ध होता है। वहीं, किताबी शिक्षा विद्यालय, कॉलेज और विश्वविद्यालयों से प्राप्त होती है जो प्रमाणपत्रों और डिग्रियों के रूप में सामने आती है।

दोनों ज्ञान आवश्यक हैं। किताबी शिक्षा मार्ग दिखाती है, जबकि व्यवहारिक शिक्षा उस मार्ग पर चलना सिखाती है

वास्तविक जीवन में ज्ञान की कसौटी

हम देख सकते हैं कि सिर्फ किताबी ज्ञान से व्यक्ति जीवन की समस्याओं का समाधान नहीं निकाल सकता। उदाहरणस्वरूप, एक इंजीनियर चाहे जितनी किताबें पढ़ ले, वह वायरिंग तब तक नहीं कर सकता जब तक उसे प्रैक्टिकल ज्ञान न हो। थॉमस एडिसन ने भी अपने हजारों प्रयोगों में असफलता के बाद ही बल्ब का आविष्कार किया — यह व्यवहारिक ज्ञान का उत्तम उदाहरण है।

कौन शिक्षित है — जो डिग्रीधारी है या जो कचरा नहीं फैलाता?

यह प्रश्न विचारणीय है कि अगर एक शिक्षित व्यक्ति कचरा फेंकता है और एक अशिक्षित सफाईकर्मी उसे साफ करता है — तो कौन ज्यादा शिक्षित है? आज की शिक्षा व्यवस्था में रट्टा मार संस्कृति हावी है, जिसमें अर्थ नहीं, अंकों पर जोर है। इसलिए किताबी पढ़े-लिखे अनपढ़ों की संख्या बढ़ती जा रही है।

शब्दों के मायने और समाज में अंतर

  • किताबी अनपढ़: जिसने पढ़ाई नहीं की, पर व्यवहारिक ज्ञान से परिपूर्ण है।
  • किताबी शिक्षित: जिसने डिग्रियाँ पाई हैं, पर व्यवहारिकता से दूर है।
  • अशिक्षित: जिसमें न तो किताबी ज्ञान है और न ही व्यवहारिक समझ।

शिक्षित व्यक्ति सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास नहीं करता जबकि एक अनपढ़ बिना सोचे-समझे निर्णय ले सकता है। परंतु व्यवहारिक ज्ञान वाले अनपढ़ व्यक्ति, कई बार डिग्रीधारी शिक्षित से अधिक समझदार और सामाजिक रूप से जिम्मेदार होते हैं।

संस्कार और विचारधारा का महत्व

व्यवहारिक ज्ञान से समृद्ध व्यक्ति अक्सर अपने पारिवारिक संस्कारों और कुल की परंपराओं पर कायम रहते हैं। वहीं, कुछ डिग्रीधारी लोग आधुनिकता के नाम पर इन्हें पुराना और बोझिल मानने लगते हैं। ऐसे में रिश्ते-नाते और सामाजिक मूल्य बिखरने लगते हैं।

 शिक्षा का सही उद्देश्य

सच्ची शिक्षा वही है जो मनुष्य में—

  • संवेदनशीलता
  • सहनशीलता
  • समाज के प्रति जिम्मेदारी
  • लोकाचार
  • संस्कार
    विकसित करे। प्राचीन गुरुकुल प्रणाली इसी का आदर्श उदाहरण थी, जहाँ आध्यात्मिक, सामाजिक, व्यवहारिक और शास्त्र ज्ञान समान रूप से सिखाया जाता था।

 निष्कर्ष

शिक्षा का अर्थ सिर्फ डिग्री नहीं, बल्कि विवेक, मूल्य, और व्यावहारिक निर्णय क्षमता है। अगर कोई व्यक्ति शिक्षित होकर भी सामाजिक जिम्मेदारी से मुंह मोड़े, सड़कों पर गंदगी फैलाए, दूसरों की निजता का सम्मान न करे — तो उसकी शिक्षा व्यर्थ है।
आज ज़रूरत है कि हम शिक्षा को किताबी और व्यवहारिक दोनों रूपों में संतुलित करें, जिससे हम न केवल अपने लिए, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी उपयोगी सिद्ध हों।

-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यम सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र

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