
नेत्रदान मर के भी जिंदा रहने का अनमोल वरदान है
आओ अपनी आंखें दान करने का संकल्प लेकर, अपनी जिंदगी के बाद दूसरों की दुनियाँ रोशन करें-आत्मा की खिड़की रूपी आंखों को मृत्यु के बाद भी जीवित रखें
– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

“नेत्रदान महादान है, जो मरकर भी किसी की जिंदगी को रोशनी दे सकता है।”
गोंदिया महाराष्ट्र वैश्विक स्तर पर-10 जून 2025 को विश्व नेत्रदान दिवस के अवसर पर यह आवश्यक हो जाता है कि हम समाज को इस अमूल्य उपहार के महत्व से अवगत कराएं, जिससे जीवन की अंधेरी गलियों में भटक रहे लाखों नेत्रहीनों की दुनिया रोशन हो सके।
नेत्र – आत्मा की खिड़की
84 लाख योनियों के जीवों में आंखें एक ऐसा अनमोल उपहार हैं जो केवल देखने का ही नहीं, बल्कि जीने का ज़रिया भी हैं। विशेषतः मनुष्य के लिए दृष्टि केवल देखने तक सीमित नहीं रहती, बल्कि अनुभव, संवेदना और ज्ञान की पहली सीढ़ी भी है। यह एकमात्र अंग है जिससे मरने के बाद भी हम किसी अन्य के जीवन में उजाला भर सकते हैं।
भारत में दृष्टिहीनता की भयावह तस्वीर

भारत में लगभग 1.25 करोड़ लोग दृष्टिहीन हैं, जिनमें से 30 लाख लोग कॉर्निया प्रत्यारोपण के माध्यम से देख सकते हैं। अगर हर मृत्यु के साथ नेत्रदान हो, तो भारत एक वर्ष में अंधत्व-मुक्त बन सकता है। लेकिन दुर्भाग्यवश, अंधविश्वास, जानकारी की कमी और जागरूकता के अभाव के कारण नेत्रदान की दर बेहद कम है। कोरोना काल में यह स्थिति और भी गंभीर हो गई थी।
अंधत्व: रोका जा सकने वाला संकट
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मोतियाबिंद, ग्लूकोमा और कॉर्नियल बीमारियां दृष्टिहीनता के प्रमुख कारण हैं। 92.9% दृष्टिहीनता को रोका जा सकता है, यदि समय पर जांच, चश्मा, सर्जरी और इलाज लिया जाए।
वर्तमान में मोबाइल, कंप्यूटर, तनाव और अनियमित दिनचर्या के कारण आंखों की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। विशेषकर युवा और बच्चे सूखी आंखों (Dry Eyes) की समस्या से जूझ रहे हैं।
अपनी आंखों की करें देखभाल
- संतुलित आहार लें – हरी सब्जियां, गाजर, अंडे, फलियां
- नियमित नेत्र जांच कराएं
- स्क्रीन टाइम सीमित करें
- धूप में चश्मा पहनें
- आंखों को पर्याप्त आराम दें
नेत्रदान की प्रक्रिया क्या है?
नेत्रदान एक सरल प्रक्रिया है। मृत्यु के 6 घंटे के भीतर नेत्रों का दान संभव है। इसकी मुख्य प्रक्रिया निम्नलिखित है:

- प्रतिज्ञा: किसी नेत्र बैंक में प्रतिज्ञा पत्र भरें
- प्रियजनों को जानकारी दें ताकि मृत्यु के समय वे नेत्र बैंक से संपर्क कर सकें
- मृत्यु के तुरंत बाद नेत्र बैंक को सूचित करें
- आंखें सुरक्षित रखने हेतु उपाय करें:
- आंखें बंद करें, नम रूई से ढंकें
- शव को ठंडी और बंद जगह रखें
- पंखा बंद कर दें
- सिर को थोड़ा ऊंचा रखें
सम्पूर्ण प्रक्रिया में मात्र 15-20 मिनट का समय लगता है और चेहरा बिल्कुल सामान्य रहता है।
कौन कर सकता है नेत्रदान?
- कोई भी उम्र, लिंग, ब्लड ग्रुप का व्यक्ति
- मोतियाबिंद/चश्मा/डायबिटीज/अस्थमा/हाइपरटेंशन वाले
- जिनकी आंखें अच्छी स्थिति में हैं
कौन नहीं कर सकता नेत्रदान?
- एड्स, हैपेटाइटिस, रेबीज, ब्लड कैंसर, सेप्टीसीमिया आदि गंभीर संक्रामक रोगों वाले
- जहर, ब्रेन ट्यूमर, गैंगरीन आदि से मृत व्यक्ति
नेत्रदान को लेकर भ्रांतियां
एक अध्ययन के अनुसार भारत में नेत्रदान न करने का कारण धार्मिक नहीं, बल्कि गलत सूचना, भ्रांतियां और डर हैं:
- अगले जन्म में नेत्रहीन हो जाएंगे
- चेहरा खराब हो जाएगा
- धार्मिक रूप से मना है
- पूरी आंख निकाल ली जाती है
तथ्य:
केवल कॉर्निया (आंख की पारदर्शी परत) ही निकाली जाती है, और चेहरा पूरी तरह सामान्य रहता है।
नेत्रदान का सामाजिक महत्व
हमारा एक निर्णय, किसी अन्य की पूरी जिंदगी को रोशनी दे सकता है।
आज जब लाखों लोग कॉर्निया ट्रांसप्लांट की प्रतीक्षा में हैं, तो हमें अपने प्रियजनों को यह संकल्प लेकर प्रेरित करना चाहिए कि मृत्यु के बाद भी हमारी आंखें किसी और की दुनिया को उजाला दें।
निष्कर्ष: आओ संकल्प लें…
इस विश्व नेत्रदान दिवस पर हम सब संकल्प लें:
“मैं अपनी मृत्यु के पश्चात नेत्रदान करूंगा, ताकि मेरी आंखों से कोई और इस खूबसूरत दुनिया को देख सके।”
नेत्रदान केवल एक दान नहीं, यह मानवता का महादान है।
-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र