अंतरराष्ट्रीय खेल दिवस का उद्देश्य खेलों को संरक्षित रखना,बढ़ावा देनां व विशेष रूप से बच्चों को इसका लाभ उठाने के लिए प्रेरित करना है 

भारतीय खेलों गिल्ली-डंडा, ख़ो-ख़ो, लंगडी, कांचे सहित अनेको पारंपरिक खेलों को राष्ट्रीय परिपेक्ष में लाकर फिर अंतरराष्ट्रीय मंच के लक्ष्य का संज्ञान लेना ज़रूरी

– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

गोंदिया महाराष्ट्र- वैश्विक स्तरपर हर वर्ष 11 जून को अंतरराष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य बच्चों के जीवन में खेल के महत्व को उजागर करना है – न केवल मनोरंजन के रूप में, बल्कि उनके शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास के मूल स्तंभ के रूप में। इस वर्ष 2025 की थीम “खेल चुनें – हर दिन” हमें इस बात की याद दिलाती है कि हमें हर दिन बच्चों के लिए खेलने के अवसर सुनिश्चित करने चाहिए।

खेल: विकास की पहली पाठशाला
बचपन में खेले गए खेल जैसे गिल्ली-डंडा, ख़ो-ख़ो, लंगड़ी, कंचे आदि न केवल आनंद का स्रोत थे बल्कि शारीरिक स्फूर्ति, मानसिक सजगता और सामाजिक सहभागिता के अद्भुत माध्यम भी। खेलों से बच्चे सहयोग, नेतृत्व, निर्णय क्षमता, रचनात्मकता और प्रतिस्पर्धा जैसी जीवन उपयोगी क्षमताएं विकसित करते हैं।

आज की डिजिटल पीढ़ी तकनीक और शैक्षणिक दबावों के कारण खेल से दूर होती जा रही है। ऐसे में यह दिवस एक चेतावनी और अवसर दोनों है, ताकि हम बच्चों को पुनः खेल की ओर प्रेरित करें।

पारंपरिक खेलों का संरक्षण: समय की मांग
हमारे देश की हजारों वर्ष पुरानी सांस्कृतिक विरासत में पारंपरिक खेलों का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। महाभारत काल से जुड़ी कुश्ती, तीरंदाजी, रथ दौड़ और बाँस वाली छड़ी जैसे खेल न केवल हमारे इतिहास की झलक देते हैं, बल्कि उनमें छिपे शारीरिक और रणनीतिक अभ्यास आज भी प्रासंगिक हैं।

आज आवश्यकता इस बात की है कि इन खेलों को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में स्थान देकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई जाए। सरकार द्वारा इन खेलों को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए विशेष मंच या योजनाएं बनाना समय की पुकार है।

खेल और बाल अधिकार
संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनुच्छेद 31 में यह स्पष्ट किया गया है कि खेल हर बच्चे का मौलिक अधिकार है। खेल सामाजिक समावेशन, मानसिक स्वास्थ्य, तनावमुक्ति, लचीलापन और संवाद क्षमता को बढ़ावा देते हैं। विशेष रूप से आपदा, संघर्ष या विस्थापन झेलने वाले बच्चों के लिए खेल एक प्रकार की चिकित्सा भूमिका निभाते हैं।

खेल आधारित शिक्षा की भूमिका
आज की शिक्षा व्यवस्था में खेल आधारित शिक्षण विधियों को अपनाया जा रहा है, जिससे छात्र सक्रिय रूप से सीखते हैं और सीखने को आनंदमय बनाया जाता है। यह दृष्टिकोण केवल संज्ञानात्मक लाभ नहीं, बल्कि सृजनात्मक, भावनात्मक और सामाजिक विकास को भी बढ़ावा देता है।

थीम 2025: “खेल चुनें – हर दिन”
इस वर्ष की थीम हमें याद दिलाती है कि खेल केवल एक विकल्प नहीं, बच्चों के सर्वांगीण विकास का एक आवश्यक हिस्सा हैं। यह सभी हितधारकों — सरकार, संस्थाएं, स्कूल, अभिभावक और समाज — को प्रेरित करता है कि वे खेल को प्राथमिकता में रखें।

निष्कर्ष
अंतरराष्ट्रीय खेल दिवस केवल एक दिन मनाने का पर्व नहीं, बल्कि एक संकल्प है — बच्चों को उनके बचपन का मूल अधिकार वापस देने का, खेलों को उनकी दिनचर्या का हिस्सा बनाने का और भारत की पारंपरिक विरासत को संजोकर वैश्विक स्तर तक पहुंचाने का।

जब हमारे प्रधानमंत्री और गृह मंत्री मातृभाषा में शिक्षा के माध्यम से संस्कृति को जीवंत करने की बात करते हैं, तो हमें भी पारंपरिक खेलों को पुनर्जीवित करने का संकल्प लेना चाहिए।

आज के इस वैश्विक अवसर पर हमें यह प्रण लेना चाहिए कि हम अपने बच्चों को खेलों से जोड़ेंगे, ताकि वे स्वस्थ, रचनात्मक और सामर्थ्यवान नागरिक बन सकें।

“खेलिए, बढ़िए, सशक्त बनिए – खेल चुनें, हर दिन!”

-संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यमा सीए(एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

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