“तू अपनी खूबियां ढूंढ, कमियां निकालने के लिए लोग हैं।”
“अगर रखना ही है कदम, तो आगे रख, पीछे खींचने के लिए लोग हैं।”

जिंदगी के नियम भी कबड्डी के खेल जैसे हैं- सफ़लता की लाइन टच करते ही लोग हमारे पैर खींचने लग जाते हैं

श्रेष्ठतम सफ़लता,कांटो का ताज-हिम्मत, हौसला और जज़्बा रूपी मंत्रों का प्रयोग ज़रूरी

– एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं 

गोंदिया महाराष्ट्र- वैश्विक स्तरपर यह दो पंक्तियाँ केवल प्रेरणात्मक कथन नहीं, बल्कि आज की सामाजिक, राजनैतिक, व्यावसायिक और व्यक्तिगत वास्तविकताओं का गहन प्रतिबिंब हैं। वास्तव में, ज़िन्दगी के नियम कबड्डी के खेल जैसे हो गए हैं—जैसे ही सफलता की रेखा छूने लगो, लोग पैर खींचने को तत्पर रहते हैं।

पुरानी कहावतें: आज भी उतनी ही प्रासंगिक

भारतीय संस्कृति में बुज़ुर्गों की कही कहावतें, सदियों बाद भी प्रासंगिक हैं। “बंद मुट्ठी लाख की, खुल गई तो ख़ाक की”, “घर का भेदी लंका ढाए”, “बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय”—ये कहावतें आज के हर दौर की मानसिकता को बख़ूबी बयां करती हैं। आज के संदर्भ में दो कहावतें अत्यंत सटीक हैं:

  • “तू अपनी खूबियां ढूंढ, कमियां निकालने के लिए लोग हैं।”
  • “अगर रखना ही है कदम तो आगे रख, पीछे खींचने के लिए लोग हैं।”

यह कथन आज के सामाजिक व्यवहार में कई स्तरों पर सत्य प्रतीत होता है—राजनीति से लेकर कॉर्पोरेट, शिक्षा से लेकर खेल, रिश्तों से लेकर प्रतिस्पर्धा तक।

सफलता की राह में अवरोध: क्यों होते हैं ये ‘पैर खींचने वाले’?

सफलता के मार्ग में रुकावटें अकसर द्वेष, आत्मविश्वास की कमी, नकारात्मक मानसिकता, और दूसरों से आगे निकलने के डर से पैदा होती हैं। कई बार ये प्रवृत्ति प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि अस्तित्व बचाने के भय से उपजती है।
आज हम अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी यही मानसिकता देखते हैं—कभी एक देश दूसरे को नीचा दिखाने में जुटा रहता है, तो कभी व्यापारिक प्रतिस्पर्धा दुश्मनी का रूप ले लेती है। इसी तरह देश के भीतर भी राजनीति, खेल, और फिल्म जगत तक में यह प्रवृत्ति देखने को मिलती है।

निंदा: स्वादिष्ट लेकिन विषैली खुराक

निंदकों की मानसिकता को भी समझना आवश्यक है। निंदा का रस बड़ा मीठा होता है, और यह व्यक्ति के अहं को तुष्ट करता है—“मैं अच्छा हूं, वह बुरा है।”
जैसा सत्संग में भी कहा गया है, “निंदक निंदित व्यक्ति का धोबी होता है”—जो उसके दोष धोकर खुद के कर्म और भारी कर लेता है। इसलिए कबीरदास जी का यह दोहा सदैव याद रखना चाहिए:

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।

सफलता के शत्रु नहीं, प्रेरणा बनें

किसी की सफलता देखकर जलना नहीं, प्रेरणा लेना एक विवेकशील समाज की निशानी है।
दूसरों की टांग खींचने वाले अक्सर खुद ही खोदे हुए गड्ढे में गिर जाते हैं।
हमें चाहिए कि सफल लोगों को आदर्श बनाएं, उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलें, उनसे सीखें।

सफलता के 10 मंत्र

  1. लक्ष्य निर्धारण – जब तक लक्ष्य तय नहीं, तब तक राह भी नहीं।
  2. मजबूत इच्छाशक्ति – इच्छाशक्ति से असंभव को संभव किया जा सकता है।
  3. नकारात्मकता से दूरी – “नहीं कर पाएंगे” जैसे विचार सबसे बड़ा अवरोध हैं।
  4. सत्य के मार्ग पर अडिग रहना
  5. धैर्य – हर चीज समय से होती है, धैर्य उसका मूल है।
  6. कड़ी मेहनत – बिना परिश्रम सफलता असंभव है।
  7. अपनी क्षमताओं की पहचान – खुद को जानना, सबसे बड़ी सफलता है।
  8. तुलना नहीं, आत्मनिर्भरता – अपने रास्ते खुद बनाओ।
  9. साहस – डर को हराकर आगे बढ़ना सफलता की कुंजी है।
  10. आत्मविश्वास – यही सफलता की पहली सीढ़ी है।

निष्कर्ष: कांटों का ताज पहनने को हौसला चाहिए

श्रेष्ठता कांटों का ताज है। सफल व्यक्ति को आलोचना, ईर्ष्या, षड्यंत्र से नहीं डरना चाहिए।
हिम्मत, जज़्बा और दृढ़ निश्चय—ये ही जीवन की असली सफलता के मंत्र हैं।
दूसरों की निंदा से बचते हुए, खुद की खूबियों पर ध्यान केंद्रित कर, प्रेरणास्त्रोत बनें—यही समाज की असल प्रगति का रास्ता है।

-संकलनकर्ता लेखक – क़र विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार अंतरराष्ट्रीय लेखक चिंतक कवि संगीत माध्यम सीए (एटीसी) एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं गोंदिया महाराष्ट्र

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