अमित शर्मा ने दोबारा थामा कमल, वाइस चेयरमैन पद के प्रबल दावेदार

फतह सिंह उजाला

पटौदी, 3 जुलाई। पटौदी-जाटौली मंडी परिषद के वार्ड-6 से पार्षद निर्वाचित हुए अमित शर्मा ने एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर राजनीतिक हलचलों को गर्मा दिया है। सवाल यह उठता है कि क्या 16 मार्च को भाजपा विधायक विमला चौधरी की उपस्थिति में हुई पूर्व सदस्यता को भाजपा संगठन ने मान्यता नहीं दी थी?

गौरतलब है कि 16 मार्च को पटौदी कार्यालय में विधायक विमला चौधरी की मौजूदगी में अमित शर्मा समेत आधा दर्जन से अधिक पार्षदों ने भाजपा का दामन थामा था। इस अवसर पर कमल के फूल वाले पटके पहनाए गए और मिठाई भी बांटी गई थी। लेकिन तीन महीने बाद दोबारा अमित शर्मा की ‘पुनः ज्वाइनिंग’ को लेकर राजनीतिक गलियारों में कई सवाल खड़े हो गए हैं।

दोबारा ज्वाइनिंग की जरूरत क्यों पड़ी?

हाल ही में गुरुग्राम महानगर व मानेसर भाजपा जिलाध्यक्ष अजीत यादव और प्रदेशाध्यक्ष पं. मोहनलाल बडोली की मौजूदगी में एक बार फिर अमित शर्मा को औपचारिक रूप से पार्टी में शामिल किए जाने की तस्वीरें और खबरें सामने आई हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या पहली बार विधायक विमला चौधरी द्वारा करवाई गई ज्वाइनिंग को संगठन ने वैध नहीं माना?

वाइस चेयरमैन पद की दौड़ में सबसे आगे अमित शर्मा

अमित शर्मा ने भाजपा के आधिकारिक प्रत्याशी सुभाष यादव को हराकर वार्ड 6 से जीत दर्ज की थी। इसके बाद से ही उन्हें पटौदी जाटौली मंडी परिषद के वाइस चेयरमैन पद के लिए सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा है। पार्टी में उनकी सक्रियता और दोबारा ज्वाइनिंग को इस पद की रणनीतिक तैयारी के रूप में भी देखा जा रहा है।

संगठनात्मक उलझन या गुटबाज़ी?

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पार्टी के भीतर गुटबाज़ी या समन्वय की कमी के कारण दोहरी सदस्यता प्रक्रिया अपनाई गई है। कुछ जानकारों का मानना है कि पार्टी में अब ज्वाइनिंग तभी मान्य मानी जाती है जब वह जिलाध्यक्ष या प्रदेशाध्यक्ष स्तर पर हो, चाहे वह पहले विधायक की मौजूदगी में क्यों न हुई हो।

पुराने भाजपा कार्यकर्ता भी रेस में

अमित शर्मा के साथ-साथ भाजपा के कुछ पुराने व समर्पित कार्यकर्ताओं के समर्थक पार्षद भी वाइस चेयरमैन पद की दौड़ में सक्रिय बताए जा रहे हैं। ऐसे में पार्टी के भीतर खींचतान की स्थिति भी बनी हुई है।

क्या कहते हैं स्थानीय लोग?

स्थानीय स्तर पर लोग पूछ रहे हैं कि “अगर पहली बार भाजपा में शामिल होना ही पर्याप्त नहीं था, तो विधायक की मौजूदगी में हुई ज्वाइनिंग का क्या महत्व रहा?” यह सवाल संगठन की आंतरिक प्रक्रिया और तालमेल पर भी प्रश्नचिन्ह लगा रहा है।

नतीजा?

अब सभी की निगाहें मंडी परिषद के वाइस चेयरमैन चुनाव की तारीख पर टिकी हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि संगठनात्मक भ्रम के बीच अमित शर्मा को पद मिलेगा या कोई और बाजी मार ले जाएगा।

यह घटनाक्रम न सिर्फ पटौदी की स्थानीय राजनीति बल्कि भाजपा की संगठनात्मक पारदर्शिता और निर्णय प्रक्रिया पर भी एक गंभीर सवाल खड़ा करता है।

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