पूरे भारत में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण होगा

बिहार में 2003 की मतदाता सूची को प्रमाणिक धार माना गयासंभावित 2.93 करोड़ वर्तमान मतदाताओं पर असर पड़ने की संभावना

पूरे भारत की मतदाता सूचियों में संभवतःकरोड़ों मतदाताओं के नाम मृत्यु, एक से अधिक सूचियां में नाम दर्ज, जाली प्रमाण व आधार के कारण हटाने से पारदर्शिता बढ़ेगी

-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

गोंदिया महाराष्ट्र- विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के एक राज्य बिहार से शुरू हुए इस विशेष अभियान ने देशभर में हलचल मचा दी है। भारत निर्वाचन आयोग ने मतदाता सूचियों की व्यापक पुनरीक्षण प्रक्रिया शुरू की है, जिसमें पुराने और गलत दर्ज मतदाताओं के नाम हटाकर पारदर्शिता सुनिश्चित करने का लक्ष्य रखा गया है। बिहार में इसका प्रभाव सबसे पहले दिखा, जहां 3.5 लाख नाम हटाने की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है।

मतदाता सूची में गड़बड़ियों के कारण हटाए जाएंगे नाम मृत्यु, एक से अधिक सूचियों में नाम, जाली प्रमाण और आधार लिंकिंग की भूमिका अहम गोंदिया, महाराष्ट्र निवासी एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी  का मानना है कि भारत जैसे विशाल लोकतंत्र की गरिमा को और मज़बूत करने के लिए यह पुनरीक्षण ज़रूरी है। इसमें पुराने रिकॉर्ड्स, जाली दस्तावेजों, एक से अधिक स्थानों पर नाम दर्ज होना, और मृत्यु के बावजूद नाम न हटने जैसी गड़बड़ियों को ठीक किया जाएगा।

1950 से चलती आ रही पुनरीक्षण प्रक्रिया, पर इस बार है कुछ खास

इस बार दो नए पहलुओं ने इस अभियान को विशेष बना दिया है:

  1. पहली बार पहले से रजिस्टर्ड वोटरों से दोबारा दस्तावेज मांगे जा रहे हैं।
  2. दूसरी बार आयोग ने खुद अपनी पुरानी वोटर लिस्ट की वैधता पर सवाल खड़ा किया है।

इन दो पहलुओं ने इस पुनरीक्षण को कानूनी और सामाजिक रूप से काफी संवेदनशील बना दिया है।

शहरों में बढ़ते पलायन से वोटर लिस्ट में दोहराव की समस्या
एक ही व्यक्ति के नाम दो जगह – एक बड़ी चुनौती

आयोग का कहना है कि लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थायी रूप से बस जाते हैं, लेकिन पुराने पते से नाम नहीं हटवाते। इससे एक ही व्यक्ति दो जगह वोटर लिस्ट में शामिल हो जाता है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए एक खतरा है।

बिहार में दस्तावेजों की मांग और सुप्रीम कोर्ट की सलाह

बिहार में मतदाता पंजीकरण के लिए 11 दस्तावेज मांगे जा रहे थे, परंतु ज़मीनी हकीकत यह है कि अधिकतर लोगों के पास सिर्फ आधार, वोटर आईडी और राशन कार्ड ही उपलब्ध हैं। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट की सलाह पर आयोग ने इन्हीं तीन प्रमुख दस्तावेजों पर फोकस किया है।

स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के तहत बिहार में चौंकाने वाले आंकड़े

14 जुलाई 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में अब तक 35.5 लाख मतदाताओं के नाम हटाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
चुनाव आयोग के अनुसार:

  • 1.59% मतदाता मृत पाए गए।
  • 2.2% मतदाता स्थायी रूप से अन्यत्र चले गए।
  • 0.73% मतदाता दो स्थानों पर दर्ज थे।

यह कुल मिलाकर 4.52% या लगभग 35.5 लाख मतदाता बनते हैं, जो 7.89 करोड़ कुल मतदाताओं में से हटाए जा सकते हैं।

गणना फॉर्म और डिजिटल प्लेटफॉर्म की भूमिका

अब तक 83.66% मतदाताओं के गणना फॉर्म जमा हो चुके हैं।
88.18% मतदाता या तो मृत पाए गए, या उनका नाम एक स्थान पर कायम रखा गया, या वे स्थानांतरित हो चुके हैं।
25 जुलाई अंतिम तिथि है फॉर्म जमा करने की, जिसके बाद ड्राफ्ट रोल प्रकाशित होगा।

आयोग के एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अब तक 5.74 करोड़ फॉर्म अपलोड हो चुके हैं। इस प्लेटफॉर्म को पहले की 40 ऐप्स को मिलाकर तैयार किया गया है, जिससे घर बैठे नाम ढूंढने, दस्तावेज अपलोड करने और फॉर्म भरने में सुविधा हो रही है।

बीएलओ और बूथ लेवल एजेंटों की व्यापक भूमिका

  • लगभग 1 लाख बीएलओ एक बार फिर घर-घर जाकर फॉर्म एकत्र करेंगे।
  • 1.5 लाख बूथ लेवल एजेंट हर दिन 50 फॉर्म तक प्रमाणित करने में जुटे हैं।
  • 5,683 वार्डों में विशेष कैंप लगाकर यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि कोई भी योग्य मतदाता सूची से बाहर न हो।

देशभर में एसआईआर लागू करने की तैयारी
पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल होंगे अगले लक्ष्य

आयोग ने सभी राज्यों को पत्र भेजकर 1 जनवरी 2026 तक आधार बनाकर मतदाता सूची को फिर से जांचने के निर्देश दिए हैं। यह अभियान अगले दो वर्षों में चरणबद्ध तरीके से पूरे देश में लागू किया जाएगा।

हाशिए पर मौजूद तबकों में डर का माहौल

ईबीसी, दलित, मुसलमान और गरीब तबकों में इस अभियान को लेकर चिंता व्याप्त है कि कहीं उनका नाम गलत तरीके से न कट जाए। कुछ लोग इसे “पीछे से लाया गया एनआरसी” भी कह रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने प्रक्रिया को रोकने से मना किया, लेकिन यह सलाह दी कि दस्तावेजी प्रक्रिया को सरल और सुलभ बनाया जाए।

 अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन करें इसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि इस व्यापक विश्लेषण से स्पष्ट है कि देशभर में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया ने एक बड़ा लोकतांत्रिक सुधार आंदोलन शुरू किया है।
बिहार में 3.5 लाख से अधिक नाम हटाए जा रहे हैं। 2003 की मतदाता सूची को आधार मानने से लगभग 2.93 करोड़ लोगों पर असर पड़ सकता है। यह प्रक्रिया अगर पारदर्शिता और न्याय के साथ आगे बढ़ी, तो भारत के लोकतंत्र को और अधिक मजबूत और विश्वसनीय बनाएगी।

संकलनकर्ता लेखक -क़र विशेषज्ञ, स्तंभकार, साहित्यकार, अंतरराष्ट्रीय लेखक, चिंतक, कवि, संगीत माध्यमा, सीए (ATC), एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं, गोंदिया, महाराष्ट्र

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