“चौधर संघर्ष” केवल स्थानीय राजनीति नहीं है — यह हरियाणा बीजेपी की अंदरूनी संरचना, सत्ता-प्राप्ति, और भविष्य की रणनीति पर गहरे प्रभाव डाल सकता है।

रेवाड़ी, 22 जुलाई 2025 – स्वयंसेवी संस्था ‘ग्रामीण भारत’ के अध्यक्ष वेदप्रकाश विद्रोही ने हरियाणा भाजपा की अंदरूनी राजनीति पर तीखा हमला बोलते हुए कहा है कि अहीरवाल से शुरू हुई गुटबाजी और चौधर की लड़ाई अब खुलकर सामने आने लगी है। उन्होंने कहा कि इसकी नींव 15 जून को मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और केंद्रीय मंत्री राव इन्द्रजीत सिंह के बीच रेवाड़ी की भाजपा रैली में छिड़े ‘शब्द युद्ध’ से पड़ी थी, और अब यह संघर्ष आगे बढ़ता जा रहा है।

विद्रोही ने कहा कि रैली में राव इन्द्रजीत सिंह ने तीसरी बार भाजपा सरकार बनाने का श्रेय खुद को दिया था, लेकिन हाल ही में एक सरकारी कार्यक्रम में उनकी पुत्री और राज्य की स्वास्थ्य मंत्री आरती राव ने यह दावा कर इस संघर्ष को और तीखा कर दिया कि “हरियाणा में कोई सोच भी नहीं सकता था कि भाजपा तीसरी बार सरकार बनाएगी, लेकिन मेरे पिता और मैंने अहीरवाल में भाजपा की हवा बनाकर सरकार बनवा दी।”

विद्रोही का कहना है कि इस बयान के माध्यम से आरती राव ने राज्य में भाजपा की सत्ता की तीसरी पारी का सारा श्रेय अपने पिता राव इन्द्रजीत सिंह को देकर पार्टी के भीतर नेतृत्व की लड़ाई को और भड़का दिया है। उन्होंने कहा, “यह बयान सीधे तौर पर मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेताओं की भूमिका को नकारने वाला है।”

इस बीच पूर्व मंत्री और भाजपा नेता अभय सिंह यादव भी इस विवाद में कूद पड़े हैं। उन्होंने राव इन्द्रजीत सिंह पर कांग्रेस से सांठगांठ कर चुनाव लड़ने का आरोप लगाया है। यह आरोप अहीरवाल की राजनीति के भीतर उबाल को दर्शाता है, जो अब पार्टी के व्यापक दायरे में फैलने की आशंका जता रहा है।

वहीं, राव इन्द्रजीत सिंह ने एक साक्षात्कार में अपनी भविष्य की राजनीतिक दिशा को लेकर बड़ा संकेत देते हुए कहा कि वे भाजपा में रहेंगे या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि पार्टी उनकी बेटी आरती राव के साथ कैसा राजनीतिक व्यवहार करती है। विद्रोही ने इसे भाजपा में चौधर की लड़ाई का खुला इशारा बताते हुए कहा कि यह संघर्ष अब पर्दे के पीछे नहीं, बल्कि खुले मंच पर लड़ा जाएगा और आगे चलकर इसका असर पार्टी की संगठनात्मक एकता पर भी पड़ सकता है।

विश्लेषण: अहीरवाल से उठी चिंगारी क्या भाजपा की चौधर को जला देगी?

हरियाणा की राजनीति में अहीरवाल एक प्रभावशाली इलाका माना जाता है — न केवल जनसंख्या के लिहाज से, बल्कि राजनैतिक दबदबे के तौर पर भी। इस क्षेत्र से कई दिग्गज नेता निकले हैं, जिनमें राव इन्द्रजीत सिंह का नाम अग्रणी है। वहीं दूसरी ओर, मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की पृष्ठभूमि पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से जुड़ी है और वे भाजपा की नई सोशल इंजीनियरिंग का चेहरा बने हैं।

15 जून की रेवाड़ी रैली को लेकर शुरू हुई बयानबाज़ी अब भाजपा के भीतर गहरे असंतोष और गुटबाजी का संकेत बन चुकी है। राव इन्द्रजीत सिंह का तीसरी बार सरकार बनने का श्रेय खुद को और अब उनकी पुत्री आरती राव द्वारा सार्वजनिक मंच से उस दावे को दोहराना, पार्टी के भीतर सत्ता केंद्रों के बीच संघर्ष को उजागर करता है।

भाजपा की ‘डबल लीडरशिप’ चुनौती

मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी का नेतृत्व फिलहाल केंद्र की पसंद माने जाने वाले नेता के रूप में सामने आया है। वहीं राव इन्द्रजीत सिंह एक अनुभवी, क्षेत्रीय जनाधार वाले नेता हैं, जो लंबे समय से खुद को मुख्यमंत्री पद के योग्य मानते रहे हैं। जब वे कहते हैं कि उनका भविष्य भाजपा के आरती राव से “राजनीतिक व्यवहार” पर निर्भर करेगा, तो यह एक परोक्ष चेतावनी भी है और चुनौती भी — कि अगर भाजपा ने उन्हें नजरअंदाज किया, तो वे विकल्पों की ओर देख सकते हैं।

आरती राव की एंट्री: अगली पीढ़ी की सियासत

आरती राव को मंत्रिमंडल में शामिल कर भाजपा ने यह संकेत जरूर दिया था कि पार्टी परिवारवाद से परहेज़ नहीं कर रही, अगर नेता जनाधार वाला हो। लेकिन उनका ताज़ा बयान दिखाता है कि वे खुद को केवल मंत्री नहीं, बल्कि सत्ता निर्माण की प्रमुख भूमिका में देख रही हैं। इससे भाजपा की अनुशासन की छवि को ठेस पहुंच सकती है, खासकर तब जब पार्टी संगठनात्मक अनुशासन और सामूहिक नेतृत्व की बात करती है।

अभय सिंह यादव की एंट्री: खट्टर कैंप का पलटवार

पूर्व मंत्री अभय सिंह यादव का राव इन्द्रजीत पर कांग्रेस से ‘सांठगांठ’ का आरोप एक रणनीतिक पलटवार माना जा सकता है। यह सीधे-सीधे राव खेमे को पार्टी-विरोधी छवि में ढालने की कोशिश है, ताकि संगठन में उनकी स्वीकार्यता को सीमित किया जा सके। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के वफादार नेता अभी भी सक्रिय हैं और वे राव-आरती गठजोड़ के उभार से चिंतित हैं।

भविष्य की राजनीति पर प्रभाव

यह टकराव अगर यूं ही चलता रहा तो 2029 के चुनावों तक भाजपा को दो समानांतर सत्ता केंद्रों के बीच संतुलन साधना मुश्किल हो सकता है। साथ ही यह विपक्ष के लिए अवसर भी बन सकता है — खासकर कांग्रेस के लिए, जो अहीरवाल में अपनी खोई जमीन वापस पाने के लिए तत्पर है।

निष्कर्ष:
हरियाणा भाजपा के भीतर अहीरवाल के बहाने शुरू हुई यह “चौधर की लड़ाई” सिर्फ दो नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा नहीं, बल्कि संगठनात्मक संतुलन की परीक्षा भी है। यदि पार्टी इसे समय रहते नहीं सुलझा पाई, तो इसका प्रभाव सिर्फ अहीरवाल ही नहीं, पूरे हरियाणा की राजनीति पर पड़ सकता है।

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