सेहत के लिए शक्कर एक धीमा जहर है,इसके खिलाफ़ भारत के साथ यूएई ने भी कमर कसी- दीर्घकालीन रणनीति पर काम शुरू

मधुमेह मोटापे जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों को कम करने,स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों को वित्तीय प्रोत्साहन की वैश्विक रणनीति सराहनीय

-एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानीं

गोंदिया महाराष्ट्र-वैश्विक स्तर पर शक्कर को स्वास्थ्य विशेषज्ञ एक “धीमा जहर” मानते हैं। इसकी अधिकता से मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग, लीवर डैमेज और दांतों की सड़न जैसी बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। अब इस स्वास्थ्य संकट को देखते हुए कई देश इसके खिलाफ निर्णायक कदम उठा रहे हैं। भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) इस वैश्विक मुहिम में सबसे आगे हैं।

यूएई का ऐतिहासिक निर्णय: चीनी पर टैक्स आधारित मूल्य प्रणाली

यूएई सरकार ने 18 जुलाई 2025 को घोषणा की कि 1 जनवरी 2026 से शक्कर की मात्रा के आधार पर टैक्स वसूला जाएगा। यह टैक्स अब फ्लैट रेट पर नहीं, बल्कि पेय पदार्थों में मौजूद प्रति 100 मिलीलीटर चीनी की मात्रा पर निर्धारित किया जाएगा। अर्थात, जितनी अधिक चीनी, उतना अधिक टैक्स

यह पहल यूएई की दीर्घकालिक स्वास्थ्य रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य मधुमेह और मोटापे जैसी बीमारियों को कम करना है। वित्त मंत्रालय और फेडरल टैक्स अथॉरिटी (FTA) ने इस नई प्रणाली को “जनस्वास्थ्य और सतत् कल्याण के प्रति प्रतिबद्धता” बताया।

भारत में भी शक्कर पर सख्ती जरूरी

भारत में फिलहाल कार्बोनेटेड ड्रिंक्स पर 28% GST और 12% क्षतिपूर्ति उपकर, यानी कुल 40% टैक्स लगता है। हालांकि, महाराष्ट्र जैसे राज्य सरकारों ने केंद्र से इस टैक्स को और अधिक तार्किक बनाने का आग्रह किया है।

शराब, तंबाकू, और ई-सिगरेट पर भारी टैक्स की तर्ज पर, अब जरूरी है कि शक्कर युक्त उत्पादों पर भी सख्त कर नीति बनाई जाए। साथ ही, स्कूलों, सरकारी कार्यालयों व सार्वजनिक स्थानों पर चीनी की मात्रा दर्शाने वाले बोर्ड लगाना भी अनिवार्य किया जाए, ताकि लोग जागरूक हों।

दुनिया भर में चीनी पर कर लगाने की पहल

  • मेक्सिको: 10% शुगर टैक्स से 12% खपत में गिरावट
  • फ्रांस व चिली: प्रभावी कर प्रणाली से जनस्वास्थ्य को लाभ
  • ब्रिटेन: 10 वर्षों में 37 लाख मोटापे के शिकार लोगों में कमी की संभावना (UK Health Forum रिपोर्ट)
  • 106+ देश: किसी न किसी रूप में शुगर टैक्स लगा चुके हैं

अत्यधिक शक्कर सेवन: गंभीर स्वास्थ्य खतरे

अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के अनुसार, चीनी एक एडिक्टिव ड्रग की तरह काम करती है और इसके सेवन से शरीर पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं:

  1. थकान व ऊर्जा की कमी
  2. मूड स्विंग व चिड़चिड़ापन
  3. सूजन और पेट की तकलीफ
  4. लगातार भूख लगना
  5. दांत सड़ना और मुंहासे
  6. मोटापा और वजन बढ़ना
  7. हाई ब्लड प्रेशर और हृदय रोग
  8. अल्जाइमर व स्ट्रोक का खतरा

WHO (2015) की गाइडलाइन के अनुसार, प्रतिदिन की कुल कैलोरी का केवल 5% ही शक्कर से आना चाहिए, यानी सिर्फ 6 चम्मच चीनी प्रतिदिन

वित्तीय प्रोत्साहन और स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों की ओर वैश्विक झुकाव

अब दुनियाभर की सरकारें यह समझ चुकी हैं कि हेल्थ इज वेल्थ सिर्फ नारा नहीं, बल्कि भविष्य की रणनीति है। इसलिए:

  • स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों को वित्तीय प्रोत्साहन दिया जा रहा है
  • चीनी-युक्त उत्पादों पर उच्च कर लगाकर लोगों को स्वस्थ विकल्पों की ओर प्रेरित किया जा रहा है
  • स्कूल, कॉलेज, सरकारी संस्थान और पब्लिक प्लेसेज़ में स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी बोर्ड अनिवार्य किए जा रहे हैं

निष्कर्ष:

सेहत के लिए शक्कर के खिलाफ छेड़ी गई यह वैश्विक जंग अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। भारत और यूएई जैसे देश न केवल नीति निर्धारण में आगे हैं, बल्कि जागरूकता फैलाने और कार्रवाई करने में भी अग्रणी बनते जा रहे हैं। शक्कर के सेवन में कटौती, स्वास्थ्यवर्धक विकल्पों का प्रोत्साहन और जागरूकता ही आने वाले वर्षों में जनस्वास्थ्य की दिशा तय करेगा।

 संकलनकर्ता / लेखक:एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी कर विशेषज्ञ | स्तंभकार | अंतरराष्ट्रीय लेखक | कवि | चिंतक | गोंदिया, महाराष्ट्र

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